झुंझला कर हाथ ही जगह हाथी चुनाव चिन्ह चुनने वाली थी इंदिरा गांधी
– साल 1979 में कांग्रेस ने तीसरी बाद बदला था अपना चुनाव चिन्ह, पार्टी से बेदखल होने के बाद इंदिरा गांधी ने बनाई अलग कांग्रेस, हाथ को चुना था चुनावी चिन्ह के लिए
– हाथ के साथ हाथी और साइकिल चुनाव चिन्ह चुनने का चुनाव आयोग ने दिया था इंदिरा गांधी की कांग्रेस को विकल्प, हाथ पर जताया इंदिरा गांधी ने भरोसा
PEN POINT, DEHRADUN (PANKAJ KUSHWAL) मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलांगाना में विधानसभा चुनावों का बिगुल बच चुका है। अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव से पहले इन राज्यों के चुनाव परिणामों पर सबकी निगाहें हैं। इस चुनावी माहौल में PEN POINT पेश करता है राजनीति से जुड़े कुछ रौचक किस्से कहानियां –
कांग्रेस पार्टी, अंग्रेजों की जमाने का यह राजनीतिक दल आजादी के बाद देश में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहा। पिछले दशक भर से विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी के लिए हर जोड़ तोड़ में जुटी है। उसे उम्मीद है कि अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव में देश के मतदाता फिर से ‘हाथ’ पर विश्वास जताएंगे और कांग्रेस को वापिस सत्ता सौंपेंगे। कांग्रेस का हमेशा से ही चुनावी चिन्ह ‘हाथ‘ नहीं रहा है। चुनाव में पार्टी का चुनाव चिन्ह ही पार्टी की पहचान होता है। भारत में माना जाता है कि वोट डालने जा रहा मतदाता प्रत्याशी को नहीं बल्कि पार्टी के चुनाव चिन्ह को अपना वोट देता है। हाल के सालों में यह साबित भी हुआ है कि जनता ने व्यक्ति से ज्यादा पार्टी के चुनाव चिन्ह को तहरीज दी है और सिर्फ चुनाव चिन्ह को देखते हुए ही प्रत्याशी को विजयी बनाया। कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह हमेशा से हाथ नहीं रहा। आजादी के बाद अब तक कांग्रेस पार्टी तीन बार अपना चुनाव चिन्ह बदल चुकी है। आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी, जिनके कंधे पर जुआ लगा था। पहले आम चुनाव से लेकर साल 1969 तक कांग्रेस ने इसी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े और सरकार बनाते रहे। 1969 के बाद कांग्रेस में इंदिरा गांधी युग शुरू हो चुका था। कांग्रेस के पुराने नेता या तो राजनीति से रिटायर हो रहे थे या फिर इंदिरा गांधी की कांग्रेस में अनफिट होकर अन्य दलों का रूख कर रहे थे।
इंदिरा गांधी का विचार था कि कांग्रेस का पुराना चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी पार्टी का आधिकारिक चुनाव चिन्ह लिया जाए लेकिन हाल के राजनीतिक झगड़ों के चलते चुनाव आयोग इस चुनाव चिन्ह को प्रतिबंधित कर चुका था। कांग्रेस के गाय और उसके दूध पीते बछड़े चुनाव चिन्ह से इंदिरा गांधी पीछा छुड़वाना चाहती थी।
1971 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने लिए नया चुनाव चिन्ह चुना। पार्टी को चुनाव चिन्ह मिला गाय और उसका दूध पीता बछड़ा। इस चुनाव चिन्ह के साथ इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी ने भारी बहुमत के साथ आम चुनाव में जीत हासिल की। 1975 में इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया। साल 1977 में आपातकाल हटाकर इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा कर दी। इसी साल कांग्रेस को आजादी के बाद पहली बार हार का सामना करना पड़ा और वह आजादी के बाद पहली बार सत्ता से बेदखल हो गई। केंद्र में जनता पार्टी की मिली जुली सरकार बन गई। लेकिन, यह सरकार ज्यादा लंबी नहीं चल सकी। वरिष्ठ पत्रकार, लेखक व बीते कई दशकों से कांग्रेस पार्टी को नजदीक से देखने वाले रशिद किदवई अपनी किताब बेलेट – टेन ऐपिसोड्स देट हेव शेप्ड इंडियाज डेमोक्रेसी में इससे जुड़ा एक किस्सा लिखते हैं कि 1977 में कांग्रेस ने पहली सबसे बड़ी हार देखी थी। साल 1978 के पहले दिन ही कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ब्रह्मानंदन रेड्डी ने इंदिरा गांधी को पार्टी से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस आई पार्टी बना ली जबकि ब्रह्मानंदन रेड्डी के समर्थन वाली पार्टी कांग्रेस आर बन गई। लोक सभा में इंदिरा गांधी की कांग्रेस (I) 153 सदस्यों के मुकाबले केवल 76 सांसदों को ही अपने पक्ष में ला सकी लिहाजा अब वह कांग्रेस पार्टी व चुनाव चिन्ह दोनों गंवा चुकी थी। अब इंदिरा गांधी की कांग्रेस आई अपना घर भी गंवा चुकी थी और साथ में ही चुनाव चिन्ह भी। नए चुनाव चिन्ह लेने की तैयारियां शुरू हुई, इंदिरा गांधी का विचार था कि कांग्रेस का पुराना चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी पार्टी का आधिकारिक चुनाव चिन्ह लिया जाए लेकिन हाल के राजनीतिक झगड़ों के चलते चुनाव आयोग इस चुनाव चिन्ह को प्रतिबंधित कर चुका था। कांग्रेस के गाय और उसके दूध पीते बछड़े चुनाव चिन्ह से इंदिरा गांधी पीछा छुड़वाना चाहती थी।
फोन लाइन साफ नहीं थी और बूटा सिंह का उच्चारण भी साफ नहीं था। बूटा सिंह जहां इंदिरा गांधी को हाथ चुनने की सलाह दे रहे थे इंदिरा गांधी को वह हाथी सुनाई दे रहा था। कुछ देर तक संवाद में दिक्कत के चलते झुंझला कर इंदिरा गांधी ने फोन साथ में बैठे नरसिम्हा राव को थमा दिया। करीब दर्जन भर भाषाओं के जानकार नरसिम्हा राव ने बूटा सिंह से बात करते ही समझ लिया कि वह हाथी नहीं हाथ बोलना चाह रहे थे
आपातकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी का यह चुनाव चिन्ह इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रयोग होने लगा था। विपक्षी दल और इंदिरा गांधी के आलोचक गाय का दूध पीते बछड़े चुनाव चिन्ह में गाय को इंदिरा गांधी और बछड़े को संजय गांधी का संज्ञा देकर खूब प्रचारित किया गया। लिहाजा, इंदिरा गांधी ने इस चुनाव चिन्ह से मुक्ति पर राहत की सांस ली और अपने सलाहकारों से नया चुनाव चिन्ह लेने के लिए विचार करने को कहा। इंदिरा गांधी ने यह जिम्मेदारी पार्टी के तत्कालीन महासचिव बूटा सिंह को सौंप कर खुद विजयवाड़ा में नरसिम्हा राव के साथ चुनाव प्रचार में चली गई। बूटा सिंह ने चुनाव आयोग में नए चुनाव चिन्ह के लिए याचिका दाखिल की। चुनाव आयोग ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस को तीन चुनाव चिन्ह में एक चुनाव चिन्ह चुनने का विकल्प दिया। चुनाव आयोग की ओर से दिए गए चुनाव चिन्ह थे – हाथी, साइकिल और खुली हथेली। बूटा सिंह चुनाव चिन्ह चुनने में खुद फैसला नहीं ले सके लिहाजा उन्होंने विजयवाड़ा में चुनाव प्रचार के लिए गई इंदिरा गांधी को फोन कर तीनों विकल्पों में से एक विकल्प चुनने को कहा। फोन लाइन साफ नहीं थी और बूटा सिंह का उच्चारण भी साफ नहीं था। बूटा सिंह जहां इंदिरा गांधी को हाथ चुनने की सलाह दे रहे थे इंदिरा गांधी को वह हाथी सुनाई दे रहा था। कुछ देर तक संवाद में दिक्कत के चलते झुंझला कर इंदिरा गांधी ने फोन साथ में बैठे नरसिम्हा राव को थमा दिया। करीब दर्जन भर भाषाओं के जानकार नरसिम्हा राव ने बूटा सिंह से बात करते ही समझ लिया कि वह हाथी नहीं हाथ बोलना चाह रहे थे तो उन्होंने बूटा सिंह को जोर से कहा कि वह हाथ की बजाए पंजा बोले और फोन फिर इंदिरा गांधी को थमा दिया। नरसिम्हा राव के कहे अनुसार बूटा सिंह ने हाथ की बजाए पंजा कहा तो इंदिरा गांधी को समझ आया कि बूटा सिंह क्या कहना चाह रहा है, उन्होंने फोन पर ही इस चुनाव चिन्ह के लिए हामी भर दी। बताते हैं कि अगर नरसिम्हा राव साथ में न होते तो इंदिरा गांधी को हाथ हाथी सुनाई दे रहा था और संभव था कि वह झुंझला कर हाथी को ही चुनाव चिन्ह के तौर पर लेने में सहमति देती।
हालांकि, कांग्रेस के पास उस दिन हाथी और साइकिल चुनाव चिन्ह का भी विकल्प था। लेकिन, हाथ चुनने के बाद यह दोनों चुनाव चिन्ह बाद में उत्तर प्रदेश की राजनीति से कांग्रेस को बाहर करने वाले दल के रूप में उभरे। साइकिल जहां बाद में समाजवादी पार्टी ने चुनाव चिन्ह के तौर पर चुना तो हाथी को बहुजन समाज पार्टी ने अपना चुनावी चिन्ह बनाया। साल 1979 में कांग्रेस को उसका तीसरा चुनाव चिन्ह हाथ के रूप में मिला जो अब कांग्रेस की पहचान बन चुका है।