क्रांति भवन बता रहा है किस हाल में है उत्तराखंड क्रांति दल
Pen Point, Dehradun : देहरादून शहर के बीचोंबीच है क्रांति भवन यानी उत्तराखंड क्रांति दल का प्रदेश कार्यालय। राज्य की राजनीति में हाशिये पर पहुंच चुके इस दल के पास यही भवन कुल जमा पूंजी है। कभी राज्य आंदोलन का नेतृत्व करने वाले दल की हालत आज कैसी है, उसकी दास्तान ये कार्यालय खुद बयां करता है। आस पास के लोग बताते हैं कि साल में एकाधबार यहां खूब मजमा जुटता है। शोर शराबा होता है, आपस में लानत मलानत होती है। फिर लंबे समय के लिये सन्नाटा पसर जाता है, जो समय के साथ और गहराता जा रहा है।
देहरादून में एसएसपी ऑफिस के सामने 10 कोर्ट रोड पर उत्तराखंड क्रांति दल के कार्यालय पर नजर डालें तो कोई चहल पहल नजर नहीं आती। राज्य आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले दल के कार्यालय पर जब पेन प्वाइंट की टीम पहुंची तो वहां महज तीन लोग मौजूद थे। कार्यालय प्रभारी सुनील ध्यानी अपनी कुर्सी पर मौजूद थे। उनके साथ कंप्यूटर पर काम कर रहा एक सहायक भी था। प्रदेश अध्यक्ष के कमरे में दल के शीर्ष नेता रहे स्व.इंद्रमणी बडोनी की बड़ी सी श्वेत श्याम फोटो लगी है। इसके अलावा अब तक के प्रदेश अध्यक्षों की तस्वीरें भी टंगी हैं।
कार्यालय प्रभारी के कक्ष में आलमारी के उपर दल के पहले विधायक जसवंत सिंह बिष्ट की छोटी सी तस्वीर रखी है। कार्यालय प्रभारी से फोटो के बाबत पूछने पर उन्हें अपने पहले विधायक को पहचानने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। इस दौरान बातचीत में कार्यालय प्रभारी दल के भविष्य को बेहतर बताते रहे। उन्होंने बताया कि अब संगठन को मजबूत बनाया जा रहा है, नए पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी जा रही है। नवरात्रों में पार्टी का विस्तार किया जा रहा है, श्राद्ध पक्ष होने के कारण फिलहाल यह काम रूका हुआ था। कंप्यूटर सहायक नए पदाधिकारियों को पदभार ग्रहण करने के लिये
पत्र तैयार कर रहा था। कार्यालय प्रभारी बीच बीच में उसे जरूरी निर्देश देते। इसके अलावा सभी पुराने पदाधिकारियों की सूची भी तैयार हो रही है। पार्टी छोड़ चुके लोगों को नोटिस भेजे जाने की भी उन्होंने जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने कंप्यूटर सहायक को निर्देश दिया कि फलां आदमी के घर नोटिस भेज दो। नोटिस में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
पेन प्वाइंट की टीम को कार्यालय प्रभारी ने जलपान के लिये पूछा और उसके बाद बाहर एक दुकान से चाय मंगवाई। हालांकि अब कार्यालय का अपना नयी रसोई बन गई है और टॉयलेट और बाथरूम भी व्यवस्थित कर दिये गए हैं।
राज्य आंदोलन की बात चलने पर हर आंदोलकारी की तरह सुनील ध्यानी भी जोश में आ जाते हैं। आंदोलन से जुड़ी तमाम बातों को साझा करते हुए वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक तौर पर यूकेडी को सफलता नहीं मिल सकी जिसकी वो हकदार थी। इसके लिये पार्टी के नेताओं की बजाए वो जनता के मिजाज में आ रहे बदलाव को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं।
यूकेडी कार्यालय से बाहर निकलने के बाद जिज्ञासा हुई कि राज्य आंदोलन को खड़ा करने वाली पार्टी को लेकर राज्य की नई पीढ़ी क्या सोचती हैं,,
24 साल के एक युवक हैं योगेंद्र 1999 में उनका जन्म हुआ यानी राज्य गठन के पहले की पैदाइश होने बावजूद जब उन्हें राज्य गठन और आंदोलन के बारे में बहुत ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। पूछे जाने पर वे बीजेपी कांग्रेस, एबीवीपी, एनएसयूआई के बारे में तो थोड़ा बहुत जानकारी रखते हैं। लेकिन पूछे जाने पर उनका साफगोई से कहना है कि यूकेडी और राज्य आंदोलन के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है।
ठीक ऐसा ही कहना है 2003 में पैदा हुई अंजलि का। वे उत्तराखंड के एक राज्य विश्व विद्यालय से एक प्रोफेसनल कोर्स की पढ़ाई कर रही हैं। सामान्य तौर पर पूछे जाने पर उनका कहना है कि उत्तराखंड की राजनीति और यहां सक्रिय सियासी पार्टियों में उन्हें बीजेपी कांग्रेस और उसकी छात्र इकाइयों के बारे में ही थोड़ी बहुत जानकारी है। बाकी किसी भी क्षेत्रीय दल या राज्य आंदोलन से जुड़े हुए विषयों, नेताओं, शहीदों के बारे में जानने का उन्हें बहुत ज्यादा मौक़ा नहीं मिला।
यूकेडी का सियासी सफर
उत्तराखंड राज्य में यूकेडी के सियासी सफर पर नजर डालें तो 2002 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के चार विधायक चुनकर आए थे। दूसरे विधानसभा चुनाव 2007 में यह संख्या घटकर तीन हो गई। तीसरे चुनाव में प्रीतम सिंह पंवार पार्टी के इकलौते विधायक चुने गए। लेकिन यूकेडी ने अनुशासन हीनता के आरोप में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। प्रीतम सिंह फिर निर्दलीय हो गए और 2017 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय ही जीते। जबकि यूकेडी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी खाली हाथ रही।
1998 में हुई बड़ी राजनीति भूल
जानकारों का मानना है कि अगर 1998 में अलग राज्य की मांग को लेकर लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करना यूकेडी की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल रही। पार्टी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भी इस बात स्वीकार करते हैं। उनके मुताबिक यह राजनीतिक भूल नही होती तो यूकेडी के चार सांसद होते। जिसका असर पहले विधानसभा चुनाव में दिखता और यूकेडी के विधायकों की संख्या भी बढ़ जाती। उल्लेखनीय है कि पहले विधानसभा चुनाव में यूकेडी के चार विधायक जीतकर आए थे और करीब एक दर्जन सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी बहुत मामूली अंतर से हारे थे।