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कुछ मीठा हो जाए: पहाड़ की वह मिठाईयां जो बन गई उत्तराखंड की पहचान

PEN POINT : आज  मिठाई दिवस National Dessert Day मनाया जाता है।  खान पान के शौकीनों के लिए यह विशेष दिन होता है अपनी पसंदीदा मिठाई या मीठा खाने का। उत्तराखंड के लोगों की जुबान जितनी मीठी है, उसमें मिठास घोली है उत्तराखंड की पहचान बन गई कुछ खास मिठाईयों ने। उत्तराखंड में बनने वाली इन मिठाईयों की पहचान अब उत्तराखंड से और उत्तराखंड की पहचान इन मिठाईयों से होने लगी है। आईए जानते हैं उत्तराखंड में बनने वाली इन मिठाईयों के बारे में जिन्होंने घोली है मिठास दूर देश विदेश तक…

बाल मिठाई 

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अल्मोड़ा की बाल मिठाई। दशकों से अपने अनूठे स्वाद के चलते देश दुनिया की पसंदीदा मिठाईयों में शुमार बाल मिठाई अल्मोड़ा की पहचान बनी हुई है। चाकलेट पर शक्कर के पाउडर के दानों से लपेटी गई यह मिठाई पूरे राज्य समेत देश भर में खूब पसंद की जाती है। आलम यह है कि अल्मोड़ा में पारंपरिक रूप से बनने वाली बाल मिठाई अब देश भर की मिठाई की दुकानों पर भी मिलने लगी है लेकिन असल जो स्वाद अल्मोड़ा में खीम सिंह रौतेला की दुकान पर बनने वाली बाल मिठाई में वह मिठास शायद ही कहीं ओर मिले।

सिंगोरी 

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दूध के खोए से बननी वाली सिंगोरी यूं तो टिहरी बाजार की पहचान हुआ करती थी लेकिन टिहरी बांध के लिए जब टिहरी शहर डूबो दिया गया तो सिंगोरी की मिठास यूं ही बरकरार रही। दूध के खोए को मालू के पत्ते से लपेटकर आईसक्रीम के कोन की तरह पेश करने का तरीका इसे खास बनाता है। मालू के पत्ते का जायका भी सिंगोरी की मिठास पर महसूस किया जा सकता है। टिहरी के जलसमाधि लेने के बाद अब सिंगोरी के तलबगारों को इसका स्वाद लेने के आगराखाल बाजार का रूख करना पड़ता है। टिहरी जनपद के कुछ छोटे बाजारों में स्थानीय मिठाई निर्माता सिंगोरी अब भी बनाते हैं लेकिन इन दिनों लोगों की जुबान पर आगराखाल में बननी वाली सिंगोरी की मिठास चढ़ी हुई है।

अरसे 

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ससुराल गई बेटियों को कलेवे के रूप में देने के लिए घरों में बनाए जाने वाले अरसे भी सदियों से उत्तराखंड की लोक संस्कृति में मिठास घोलते रहे हैं। चावल के आटे और गुड़ को मिलाकर बनाए जाने वाले अरसे उत्तराखंड की लोक संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। माघ के महीने में जब ब्याही बेटियों को कलेवे देने का समय आता है तो गांव भर में अरसे बनाने का उत्सव रूपी माहौल बन जाता है। चावल को भिगोकर रखने के बाद पारंपरिक रूप से ओखल में कूट कर गुड़ के साथ मिलाकर इसे तेल में पकाया जाता है। गुड़ की जगह चीनी मिलाने पर अरसे का स्वाद और मिजाज दोनों बदल जाते हैं लिहाजा आज भी इसे गुड़ के साथ ही पकाया जाता है। सफेद व लाल रंग के चावल का आटा गुड़ के साथ मिलकर घोल के रूप में तेल में पकाया जाता है तो वह हल्का लाल रंग अख्तियार कर लेता है। सदियों से लोक के जीवन में मिठास घोल रहा अरसा बेटियों के ससुराल को मायके से जोड़ने का भी पुल बन जाता है।

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