बाल साहित्य: अब गढ़वाली भाषा में पढ़ें नेशनल बुक ट्रस्ट की इन पुस्तकों को
Pen Point, Dehradun : आज के डिजिटल युग में बच्चे किताबों से दूर हो रहे हैं। बच्चों के इर्द गिर्द किताबें हैं भी तो उनके मतलब की नहीं। बाल साहित्य की इस कमी से बच्चों का ज्यादा समय मोबाइल और इसी तरह के गैजेट्स की तरफ जा रहा है। ठेठ ग्रामीण इलाकों तक बच्चे इस आदत का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में नेशनल बुक ट्रस्ट की पहल को सराहा जाना चाहिए। पढ़ने-लिखने के चलन को बढ़ावा देने की दिशा में ट्रस्ट ने हिंदी भाषा की तीन बाल पुस्तकों का गढ़वाली में अनुवाद करवाया है। अनुवाद के इस काम को अंजाम दिया साहित्यकार बीना कंडारी ने। पेशे से शिक्षिका रही बीना कंडारी का नाम गढ़वाली साहित्य में बड़े अदब से लिया जाता है।
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नेशनल बुक ट्रस्ट की इन तीन सचित्र बाल पुस्तकों में पहली है हैर्याली अर पाणी यानी हरियाली और पानी। जिसमें पानी और हरियाली के बीच के रिश्ते को बेहद असरकारक तरीके से बताया गया है। बालमन को इन दोनों की अहमियत का अहसास कराने में कहानी पूरी तरह सक्षम है। हिंदी में इसे रामेश्वर कांबोज हिमांशु ने लिखा है। अरूप गुप्ता के चित्रों ने कहानी को और जीवंत बनाया है।
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दूसरी पुस्तक है बंसुळी का सुर जिसका हिंदी अर्थ है बांसुरी के सुर। यह कहानी एक भूरे भालू, बालक संजीव और उसकी बांसुरी के जरिए बच्चों को मिल जुल कर रहने को प्रेरित करती है। बाल साहित्य लेखन में सक्रिय मीनाक्षी स्वामी की यह कहानी भी बच्चों के लिये रूचिकर है। फजरूद्दीन के बेहतरीन चित्र कहानी को समझने में पूरी मदद करते हैं।
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तीसरी पुस्तक का शीर्षक है एक परंपरा कु अंत, जिसका हिंदी अर्थ बहुत समानता लिये हुए है-एक परंपरा का अंत। नरेंद्र की लिखी यह कहानी स्कूली बच्चों को जाति के भेदभाव से बचने की अपील करती है। देश में जातिवाद का जहर किस कदर व्याप्त है, इसकी झलक दिखाते हुए कहानी इससे होने वाले नुकसान को दर्शाती है। कहानी के शब्दों को मनोविराम चक्रवर्ती के चित्र और गहराई देते हैं।
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बीना कंडारी ने तीनों पुस्तकों का अनुवाद बेहद कसे हुए शब्दों में किया है। जिससे यह अनुवाद जितना सरल लगता है उतना ही सुबोध भी। एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद की अपनी सीमाएं और कठिनाईयां होती हैं। वहीं बाल मन को ध्यान में रखते हुए यह काम और चुनौती भरा होता है। लेकिन अनुवादक ने बड़ी कुशलता से इसे निभाया है। एक शिक्षिका होने के नाते बच्चों के मनोभावों से वे बखूबी परिचित हैं, गढ़वाली शब्द संपदा भी उनके पास है। यही वजह है कि तीनों पुस्तकें बच्चों के लिये बेहद उपयोगी बन पड़ी हैं।