इन्फेंट्री दिवस: जब भारतीय सेना अपनी पहली जंग में उतरी और कश्मीर को बचा लिया
Pen Point, Dehradun : भारतीय सेना के इतिहास में आज का दिन काफी अहम हैं। 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना अपने पहले मिशन पर उतरी थी। इसीलिये इस दिन को इन्फेंटी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद पहली बार जंग में उतरी भारतीय सेना ने पाकिस्तान प्रायोजित कबायली हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया। यह जंग और जीत कई मायनों में खास थी। दरअसल, 15 अगस्त 1947 तक देश की सभी रियासतों का भारत संघ में विलय हो चुका था, लेकिन कश्मीर के राजा हरि सिंह इसे अलग देश के रूप में रखना चाहते थे। लेकिन भीषण कबायली हमले का सामना नहीं कर सके और 26 अक्टूबर 1947 को उन्न्होंने भारत संघ में शामिल होने के मसौदे पर दस्तखत कर दिये। उसके बाद भारतीय सेना इंफेंट्री बटालियन तुरंत कार्रवाई करते हुए कश्मीर को बचाने के मिशन को अंजाम दिया।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा India After Gandhi में लिखते हैं- महाराजा हरि सिंह पहले से ही आजाद कश्मीर के ख्वाब में जी रहे थे। 12 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर के उप प्रधानमंत्री ने दिल्ली में कहा कि “हम भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ दोस्ताना संबंध रखना चाहते हैं। लगातार उड़ रही अफवाहों के बावजूद हमारा भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है, एक ही चीज हमारी राय बदल सकती है कि अगर दोनों देशों में से कोई भी हमारे खिलाफ शक्ति का इस्तेमाल करता है तो हम अपनी राय पर पुनर्विचार करेंगे”
इन शब्दों के बोले जाने के दो हफ्ते बाद 22 अक्टूबर को कई हजार कबायली पठानों ने उत्तर दिशा की ओर से हमला कर दिया। कश्मीर के उत्तर पश्चिमी प्रांत में तबाही मचाते हुए ये लश्कर झेलम पार श्रीनगर की ओर बढ़ रहा था। यह खबर 24 अक्टूबर को दो चैनलों के माध्यम से दिल्ली पहुंची। जनरल औचिनलेक और लोचार्ट को पाकिस्तानी सेना के कार्यवाहक सी-इन-सी, जनरल ग्रेसी द्वारा सूचित किया गया था, और शाम तक, दूसरा इनपुट कश्मीर के उप प्रधान मंत्री आरएल बत्रा के माध्यम से आया, जो उनके साथ दिल्ली के लिए उड़ान भर चुके थे। तत्काल मदद के लिए अनुरोध करने वाले महाराजा ने अपने राज्य को बचाने के लिए भारत में शामिल होने का फैसला किया।
ब्रिगेडियर अमर चीमा की किताब The Crimson Chinar बताती है- अगले दिन लॉर्ड माउंटबेटन की अध्यक्षता में रक्षा कैबिनेट समिति (डीसीसी) की पहली बैठक हुई। सेवा प्रमुखों और स्वयं लॉर्ड माउंटबेटन के कड़े विरोध के बावजूद, कश्मीर को सैन्य रूप से मदद करने का निर्णय लिया गया। हालांकि कहा जा सकता है कि यह फैसला रणनीति के तहत देरी से लिया गया था।
उधर, दिल्ली में इन घटनाक्रमों के साथ ही शेख अब्दुल्ला ने बख्शी गुलाम मोहम्मद और जीएम सादिक को जिन्ना और लियाकत अली खान से मिलने के लिए पाकिस्तान भेजा। शेख अब्दुल्ला का यह कदम विफल साबित हुआ क्योंकि जीत को भांपते हुए जिन्ना ने दूतों से मिलना उचित नहीं समझा। अब जबकि सफलता उनकी पहुंच में थी। इससे शेख गुस्सा हो गये और दिल्ली आकर पंडित नेहरू से मिले।
स्वतंत्र भारत की पहली अभियान सैन्य तैनाती
ब्रिगेडियर चीमा के मुताबिक आजाद भारत की ओर से युद्ध में जाने वाली पहली यूनिट का सम्मान 1-सिख इंफेंट्री बटालियन को दिया गया, जिसके कमांडिंग ऑफिसर (सीओ), लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय ने हाल ही में यूनिट का कार्यभार संभाला था। संयोगवश, बटालियन गुड़गांव में आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों का पालन कर रही थी। मुख्यालय 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड, जिसकी कमान ब्रिगेडियर जे सी कटोच ने संभाली, जो आंतरिक सुरक्षा कार्यों के लिए रांची से आए थे, उपलब्ध थे।
इस मिशन में जाने वाली फौज को जरूरी सूचनाएं और निर्देश दिये गए थे। जिसमें बताया गया कि हमलावर जनजातियों की संख्या और हथियार अज्ञात लेकिन मज़बूती से बड़ी संख्या में होने की सूचना दी जाती है। उनके राज्य के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों से श्रीनगर की ओर आने की सूचना दी जाती है। इसके अलावा श्रीनगर में स्थिति विश्वसनीय रिपोर्ट भी दी गई।
फौज को करने थे ये काम-
-सुरक्षित श्रीनगर हवाई अड्डा और नागरिक उड्डयन वायरलेस स्टेशन
-ऐसी कार्रवाईं, जैसा आपका पहला कार्य और उपलब्ध सैनिक इसकी अनुमति दें
-कबायलियों को श्रीनगर से दूर भगाना
-श्रीनगर में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में स्थानीय सरकार की सहायता करना
बंटवारे के दर्द से जूझ रहे सिख सैनिकों की बहादुरी
ब्रिगेडियर चीमा बताते हैं कि यह 1 सिख बटालियन का भी श्रेय है कि बटालियन को इतने कम समय में इतनी आसानी से शामिल किया जा सका। यह बताने जरूरी है कि ये लोग पंजाब से थे, वह राज्य जो विभाजन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। इन लोगों के घर और परिवार उजड़ गए थे और वे शरणार्थी के रूप में भारतीय पंजाब में आ गए थे। कई लोगों के प्रियजनों की हत्या कर दी गई। उन्हें अपंग बना दिया गया या अलग कर दिया गया। उनमें से अधिकांश बेघर थे। ये लोग अपने व्यक्तिगत नुकसान को भुलाकर अपने राष्ट्र के लिए इतनी दृढ़ता से लड़ सकते थे। एक ऐसे राज्य में जो उनका अपना राज्य नहीं था।