भू गर्भ में कितना संवेदनशील है वो इलाका जहां सुरंग खोदी जा रही है?
Pen Point, Dehradun : भू गर्भीय हलचलों के लिहाज से उत्तराखंड हिमालय बेहद संवेदनशील है। विभिन्न भू वैज्ञानिक अध्ययन इस बात की तस्दीक भी कर रहे हैं। इसके बावजूद इस इलाके में बांध और सुरंगें खोदने का सिलसिला जारी है। हाल ही में सिलक्यारा टनल में हुए धंसाव ने एक बार फिर इस ओर ध्यान दिलाया है। जहां दस दिन से टनल में फंसे मजदूर किसी तरह खुद को जिंदा रखे हुए हैं। ऐसे में सवाल यही है कि इतनी बड़ी घटना के बाद क्या ये परियोजना आगे बढ़ेगी या नहीं। दरअसल, जहां सिलस्यारा सुरंग बन रही है, उसके ठीक नीचे श्रीनगर थ्रस्ट लाइन गुजरती है। यह थ्रस्ट लगातार सक्रिय है और एक बहुत बड़े इलाके में जमीन के भीतर होने वाली हलचल और उसके बाहरी नतीजों के लिये जिम्मेदार है। सिलक्यारा से पॉलगांव सुरंग जिस पहाड़ पर बन रहा है उसे राड़ी डांडा कहा जाता है। श्रीनगर थ्रस्ट इस राड़ी डांडा को यमुना से लेकर गंगा तक काट रही है। राड़ी डांडा के पश्चिम में यमुना किनारे नौगांव से लेकर पूर्वी हिस्से में गंगा किनारे धरासू के पास श्रीनगर थ्रस्ट गुजर रही है।
यह बात देश के जाने माने भू विज्ञानी प्रो. केएस वल्दिया की किताब “हाई डैम्स इन हिमालयाज” में बताई गई है। जिसमें प्रो. वल्दिया ने टिहरी बांध समेत हिमालयी क्षेत्र में बन रहे अन्य बांधों की भूगर्भीय स्थिति को विस्तार से मानचित्रों के जरिये समझाया है। इसमें दर्शाए गए एक मानचित्र यहां साझा किया जा रहा है। जिसमें पेन से किये गए गोल घेरे में सिलक्यारा टनल एरिया दर्शाया गया है। जिसमें देखा जा सकता है कि श्रीनगर थ्रस्ट जहां सिलक्यारा टनल एरिया के नीचे से गुजर रहा है। वहीं टोंस थ्रस्ट भी इससे कुछ किलोमीटर दूर है। इसके अलावा कुछ स्थानीय फॉल्ट भी राड़ी डांडा को जमीन के अंदर काटते हैं।
टिहरी बांध निर्माण को करीब से देख चुके वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी लिखते हैं- प्रो. वल्दिया की किताब बताती है कि पहाड़ों में भ्रंस यानी शेयर जोन 2 मीटर से लेकर 22 मीटर तक भी फैले हो सकते हैं। सवाल यह है कि सिलक्यारा टनल में जहां सुरंग में भूस्खलन हुआ, क्या वह एक बड़ा शेयर जोन है। और ऐसे कितने और शेयर जोन 4.5 किलोमीटर की सुरंग के निकट होंगे। भू-सक्रियता के कारण शेयर जोन के खुलने का डर रहता है। क्या ब्लास्टिंग और कटिंग से शेयर जोन पर असर नहीं पड़ा होगा ? मशीनों से भी भूकंपन तो होता ही है। क्योंकि राड़ी डांडा भी लघु हिमालय श्रृंखला का हिस्सा है, जोकि फिलाइटी क्वार्टजाइटी चट्टानों से भरा पड़ा है। चट्टानें भुरभरी और दरारों से कटी फटी है।
नेगी के मुताबिक- ख़ास बात यह भी कि दो दिन पहले सुरंग में मलवा साफ करने के दौरान जब मजदूरों ने चट्टानों के चटकने की आवाज़ें सुनी, उसका उल्लेख भी प्रोफेसर वाल्दिया की किताब में है। उन्होंने इसे ष्शॉक वेवष् कहा है। यह भी कहा गया है की जकड़े गए भ्रंशों को छेड़ना भी घातक हो सकता है।
और ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि भ्रंस और पहाड़ी को दो स्थानीय फॉल्ट उन्हीं जगह उत्तर से दक्षिण काट रहे हैं, जहां सुरंग बन रही है। सुरंग के निकट शेयर जोन की बात एक भूगर्भ विज्ञानी कल ही इस सुरंग स्थल पर सुरंग विशेषज्ञ अर्नाेल्ड डिक्स को बता रहे थे, संयोग से टी वी पर मैंने भी यह बात सुनी।
सुप्रीम कोर्ट की पर्यावरण समिति के सदस्य डा.हेमंत ध्यानी भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि सुरंगों के निर्माण में भू वैज्ञानिक अध्ययनों की अनदेखी हो रही है। ध्यानी कहते हैं कि ऐसे निर्माण कार्यों में केवल भूगर्भ की संरचना ही नहीं बल्कि उसकी संवेदनशीलता का भी अध्ययन जरूरी है, अगर ऐसा नहीं किया गया तो हमें बहुत बड़े पर्यावरणीय नुकसान उठाने होंगे। लेकिन फिलहाल 41 मजदूरों की सही सलामत वापसी जरूरी है।