SPECIAL जानिए अपने संविधान से जुड़ी खास बातें
पेन पॉइंट, देहरादून : नौ दिसंबर 1946 को जब भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक बुलाई गई उससे ठीक आठ माह पहले जापान में नया संविधान प्रस्तुत किया गया। वहां कि संसद डाइट के सामने प्रस्तुत संविधान का दस्तावेज पूरी तरह विदेशियों द्वारा लिखा गया था। इसके लिए चौबीस लोगों के समूह की टोकियो में एक बैठक हुई थी। जिसमें सभी अमेरिकन थे और उनमें से सोलह सैन्य अधिकारी थे। इन लोगों ने करीब एक सप्ताह की बैठक कर संविधान तैयार किया जिसे जापानियों को स्वीकार करना था। महज दिखावे के लिए उसे जापानी संसद यानी वहां के राजनेताओं के सामने प्रस्तुत किया। जापानी नेताओं का काम सिर्फ उसे अपनी भाषा में अनुवादित करना था, इसमें छोटे से छोटे संशोधनों के लिए भी अमेरिकियों से इजाजत लेनी पड़ी। यानी यह संविधान पूरी तरह गुप्त रूप से तैयार और लागू किया गया था। जिस पर एक इतिहासकार टिप्प्णी करते हुए लिखा है कि यह आश्चर्यजनक है, इससे पहले किसी देश ने एक विदेशी संविधान को इस तरह अंगीकार नहीं किया।
दूसरी ओर, भारत के संविधान के निर्माण की प्रक्रिया इसके उलट और मानवतावादी रही। जापान का संविधान जहां गुप्त रूप से बनाया गया, जबकि दूसरे संविधान की निर्माण प्रक्रिया में पूरे मीडिया के सामने उसकी एक एक पंक्ति पर बहस की गई। एक संविधान को आनन फानन में विदेशी लोगों द्वारा तैयार किया गया, जबकि भारत के संविधान को यहां के लोगों ने सालों की लंबी बहस, चर्चा और मेहनत के अंतिम रूप दिया। इतिहासकार ग्रेनविली ऑस्टिन के मुताबिक सन् 1787 में शुरू हुई अमेरिकन संविधान लिखने की परियोजना के बाद संभवत: भारतीय संविधान का निर्माण सबसे महान राजनीतिक कवायद थी। यह भारतीयों के लिए प्रगति की राह पर बढ़ने का महान कदम था जो पहले तर्कविहीन साधनों से दुनियावी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध थे।
महिलाओं ने किया महिला आरक्षण के विचार को खारिज
आजादी के बाद देश में महिलाओं का वर्ग सबसे ज्यादा असुरक्षित था। संविधान सभा में 11 महिला सदस्य शामिल थीं। ये सभी आजादी के आंदोलन से निकली हुई महिलाएं थीं, और देश की एकजुटता को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध थीं। मुंबई की हंसा मेहता ने आरक्षित सीट, नौकरियों में आरक्षण और पृथक निर्वाचन के विचार का विरोध किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा- हमने कभी सुविधाओं की मांग नहीं की, हमने सिर्फ, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय की मांग की है। हमने सिर्फ उस समानता की मांग की है जो परस्पर सम्मान और आपसी समझ का आधार हो सकती है। बंगाल की रेणुका राय ने उनकी इस बात का समर्थन किया और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं को बराबरी का भागीदार बनाए जाने की कामना की।
भाषा पर विवाद, हिंदी नहीं बन सकी राष्ट्रभाषा
संविधान निर्माण में भाषा का विषय सबसे विवादित विषय था। सबसे ज्यादा विवाद सदन में बोली जाने वाली भाषा, संविधान की भाषा और राष्ट्रीय भाषा के दर्जे को लेकर था। इससे विषय पर बहुत लंबी बहसें यहां तक कि आरोप प्रत्यारोप तक हुए। यहां तक कि देश उत्तर दक्षिण व पूरब पश्चिम में साफ तौर पर बंटा हुआ दिखा। आखिर में सभा में एक समझौते पर राजीनामा किया गया कि- संघ की आधिकारिक भाषा हिंदी होगी जिसकी लिपि देवनागरी होगी, लेकिन संविधान लागू होने के 15 साल बाद तक संघ की भाषा के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा। जैसा कि संविधान लागू होने से पहले किया जा रहा था। किसी भी सूरत में साल 1965 तक अदालतों की
कार्यवाही और उसके नोट, सरकारी सेवाओं, नौकरशाही आदि का काम अंग्रेजी में किया जाएगा। यहीं से हिंदी राष्ट्रभाषा का दर्जा पाने से चूक गई।
जनता से मांगे गए सुझाव
संविधान को अधिक जनापेक्षी बनाने के मकसद से इसकी निर्माण प्रक्रिया में जनता से भी सुझाव आमंत्रित किए गए। देश के विभिन्न क्षेत्रों, समुदायों और संस्थानों की ओर से बड़ी तादाद में सुझाव आए। जिनमें गोहत्या पर पाबंदी, प्राचीन भारतीय गणतांत्रिक प्रणालि का पालन जैसी मांगों के साथ ही पिछड़ी जातियों और जनजातियों की ओर से भेदभाव खत्म करने, अत्याचारों पर रोक लगाने के सुझाव दिए गए। इन सुझावों के आधार पर भारतीय संविधान को मानवतावादी स्वरूप देने में मदद मिली।