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विशेष : देश के संविधान और देहरादून का है गहरा संबंध 

पंकज कुशवाल,देहरादून। देश इस वर्ष अपने लोकतंत्र की स्थापना का 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। आजादी के तीन साल की अथक मेहनत के बाद आजाद देष को अपना संविधान व गणतंत्र हासिल हुआ। 26 जनवरी 1950 को ही देश  ने अपना संविधान लागू किया। भारत के संविधान और देहरादून का गहरा संबंध है। जब पहली बार संविधान की प्रतियां प्रकाशित की गई तो इसके लिए जिम्मेदारी गई, देहरादून स्थित सर्वे ऑफ इंडिया को। संविधान की पहली एक हजार प्रतियां इसी संस्‍थान की प्रेस में छापी गई थीं। इस विषेश उपलब्धि को यादगार बनाने के लिए आज भी देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया के म्यूजियम में इसकी एक प्रति रखी हुई है। हालांकि, मूल संविधान हाथ से लिखा गया था लेकिन जब इसके प्रकाशित करने की बारी आई तो इसके लिए देहरादून को चुना गया। दरअसल, आजादी के समय आज की तरह छपाई की उन्नत तकनीक नहीं थी। ऐसे में जब लिहाजा जब संविधान के प्रकाशन की बात आई तो संविधान सभा ने इस काम को सर्वे ऑफ इंडिया को सौंप दिया। देहरादून के नॉदर्न प्रिटिंग ग्रुप में पहली बार इसकी एक हजार प्रतियां प्रकाशित की गईं। इसे फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से प्रकाशित किया गया था। गौरतलब है कि यह तकनीक तब सर्वे ऑफ इंडिया के पास ही उपलब्‍ध थी।

सर्वे के लिए अंग्रेजों ने बनाए थे चार ग्रुप

सन 1776 में अंग्रेज़ों ने सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया का गठन कर चार प्रिंटिंग ग्रुपों (नॉर्दर्न, ईस्टर्न, साउदर्न और वेस्टर्न प्रिटिंग ग्रुप) की स्‍थापना की। जिसमें नॉर्दर्न प्रिंटिंग ग्रुप का ऑफ़िस और प्रिटिंग प्रेस देहरादून में बनाया। इसी प्रेस की नौ नंबर मशीन से भारत के संविधान की पहली प्रति छापी गई। प्रिंटिंग मशीन में फोटोलीथोग्राफिक तकनीकी से कैलिग्राफी कर भारतीय संविधान को कागज पर उतारा गया था।

प्रेम बिहारी ने हाथ से लिखी थी मूल प्रति

आपको जानकारी हैरानी होगी कि संविधान लिखने का बेहद मुश्किल  काम हाथ से किया गया था। लगातार लंबी लंबी बैठकों, बहसों और  दुनिया भर के संविधानों के अवलोकन से लिए गए नोट्स को हाथ से मिनट्स के रूप में लिखा जाता। जिसे संविधान की शक्ल देते हुए हाथ से ही लिखा गया। मूल प्रति को बेहद खूबसूरती से दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने इसे इटेलिक स्टाइल में लिपिबद्ध किया। वहीं, संविधान की मूल प्रति आकर्षक लगे इसके लिए भी विशेष प्रयास किए गए। हर पन्ना बेहद आकर्षक हो इसके लिए शांति निकेतन के कलाकारों ने हर पन्ने को बखूबी सजाया-संवारा है। दून में ही हर पन्ने को कैलीग्राफ कर फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से संविधान को प्रकाशित किया गया गया। सर्वे ऑफ इंडिया की वेबसाइट में इसे ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में दर्ज किया गया है।

आजादी से पहले ही हो गई थी संविधान सभा की स्थापना

अंग्रेज देश से अपना बोरिया बिस्तर समेट कर जाने की तैयारी में थे तो जाने से पहले ही वह इस देश को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में छोड़ना चाहते थे। वहीं, आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भी तय कर लिया था कि आजादी के बाद वह अपने मुल्क को किस रूप में संचालित करना चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी का मत स्पष्‍ट था कि अंग्रेजों की दासता के बाद जब भारत के लोग अपना मुस्तकबिल खुद लिख रहे हो तो यह पूरी तरह से जनता द्वारा जनता के लिए चुना गया तंत्र हो। लिहाजा आजादी से एक साल पहले ही 1946 में संविधान सभा की स्थापना हुई। जिसमें 389 सदस्य थे। सभा की पहली बैठक नौ दिसम्बर, 1946 को हुई। जिसमें वरिष्ठतम सांसद डा.सचिदानंद सिन्हा अस्थाई अध्यक्ष चुने गये थे। दिसम्बर 11,  1946 को डा. राजेन्द्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष चुना गया। देश के विभाजन से सदस्य संख्या घट कर 299 रह गई। संविधान सभा में आठ मुख्य समितियां और 15 अन्य समीतियां थी। डा.बीआर अम्बेडकर ड्रॉप्‍टिंग कमेटी के चेयरमैन थे। संविधान में 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं। ये 22 भागों में विभाजित हैं। हस्तलिखित संविधान पर 24 जनवरी 1950 को 284 संसद सदस्यों ने साइन किए। ठीक दो दिन बाद यानि 26 जनवरी 150 को देश ने संविधान को अंगीकृत कर गणतांत्रिक स्‍वरूप पाया।

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