टिहरी की रानी कर्णावती ने बनवाई थी देहरादून की पहली नहर
Pen Point. Dehradun : कभी देहरादून को नहरों का शहर भी कहा जाता था। हालांकि आबादी के विस्तार और अंधाधुंध निर्माण से शहर की ये पहचान खोती जा रही है। सींचाई और पीने के लिये पानी के इस्तेमाल का बेहतरीन मिसाल पेश करती ये नहरें इस शहर की धरोहर रही हैं। पुरातात्विक महत्व की ये नहरें अब भी शहर के कई हिस्सों में देखी जा सकती हैं। वैसे तो ब्रिटिश अफसर इंजीनियर प्रोवी कॉटली को देहरादून में नहरों का जाल बिछाने का श्रेय जाता है, लेकिन यहां की पहली नहर उन्होंने नहीं बनवाई थी। दरअसल, देहरादून की सबसे पुरानी नहर राजपुर-देहरा नहर है, जिसे टिहरी की महारानी कर्णावती ने बनवाया था। उन्होंने ही देहरादून का करनपुर भी बसाया था। नवादा में रानी के महल से उनका इस इलाके में प्रशासन चलता था। यहां उन्होंने कुएं और बावड़ियों का निर्माण भी करवाया। पहाड़ में घुसने वाले मुगल सैनिकों की नाक काट कर भगाने वाली इस रानी को इतिहास में नकटी रानी के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तराखंड के इतिहास में रानी कर्णावती को सबसे ज्यादा बहादुर और समाज सुधारक बताया गया है। राजा महिपत शाह की मृत्यू के बाद संवत 1631 में राजा के पुत्र पृथ्वीपत की उम्र उस वक्त महज सात साल थी, तब उनकी रानी कर्णावती ने राजकाज संभाला था। अपने शासन के दौरान कर्णावती ने टिहरी राज्य की सीमा में अनेक काम करवाए। इतिहासकार डॉ्. अजय रावत अपनी किताब गढ़वाल हिमालय: हिस्टोरीकल प्रोस्पेक्टिव में लिखते हैं कि राजपुर देहरा नहर का काम सत्रहवीं शताब्दि में रानी कर्णावती ने करवाया था। शुरूआत में इस नहर से पीने के पानी की आपूर्ति होती थी बाद में इसे सिंचाई के लिये भी विकसित किया गया। मसूरी की पहाड़ियों के जलागम वाली रिस्पना नदी से यह नहर निकलती है और देहरा शहर पानी लाती है। नहर के मुख्य भाग में जलद्वार और हाथ से संचालित लकड़ी के दरवाजे हैं। जिससे पानी का स्तर बढ़ाया और घटाया जा सकता है। नदी के बाईं ओर से निकलने वाली इस नहर का हेड राजपुर गांव से लगभग 500 मीटर दक्षिण में है। निर्माण के कुछ साल बाद इस नहर के रखरखाव और मरम्मत का काम देहरा में गुरु राम राय के मंदिर के महंतों को सौंपा गया।
शुरूआत में यह नहर आठ किमी लंबाई की थी, लेकिन बाद में इसका विस्तार होता गया। सिंचाई के लिये विकसित किये जाने पर इस नहर से देहरा से आगे धर्मपुर, अजबपुर कलां, अजबपुर खुर्द, कारगी और बंजारावाला गांव तक सिंचाई होने लगी।
उत्तराखंड सिंचाई विभाग से उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 1817 में, महंत हर सेवक ने नहर पर पूर्ण मालिकाना अधिकार का दावा किया। जिस दावे को तत्कालीन नगर आयुक्तों के बोर्ड ने अस्वीकार कर दिया। दलील दी गई कि रानी नानक शाह के अस्तित्व से पहले जीवित थीं। ऐसे में नहर पर मंदिर या महंत का कोई दावा नहीं बनता। देहरादून में अंग्रेज जब पूरी तरह जम गए तब इंजीनियर कॉटली ने नहर को पक्का बनाने के लिए नवंबर 1840 में एक परियोजना पेश की। जिस पर 1841 में काम शुरू हुआ और 1844 की बारिश में पूरा हुआ। जब पहली बार नहर में पानी डाला गया था।