आज के दौर की पत्रकारिता को आईना दिखाती जेम्स ऑगस्टस हिकी की कहानी
PEN POINT, DEHRADUN :दुनिया भर में पत्र और पत्रकारिता की बात हो और हिकी की चर्चा न हो यह कैसे हो सकता। पत्रकारिता के लिए प्रेरणा रहे जेम्स ऑगस्टस हिकी James Augustus Hicky की चर्चा आज इसलिए भी खास है, खासकर एशिया या भारत के संदर्भ में क्योंकि इस क्षेत्र में ऑपनिवेशिक सरकार को आइना दिखाने का काम इस व्यक्ति ने किया था। इसका बड़ा पहलू यह है कि हिकी ने उसी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई जिसके एक कर्मचारी के तौर पर वह भारत आए थे। अब बात शुरू से शुरू और थोड़ा विस्तार से करते हैं
पूरा नाम जेम्स औगस्टस हिकी इस सख्श ने गुलामी के दौर के दूसरे दशक में ही भारत में पत्रकारिता की पहली नींव डालने का काम किया। उन्हें भारत में पहले पत्रकार के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। हिकी ने ही पत्रकारिता को निष्पक्षता का रास्ता दिखाया था। भारत में पत्रकारिता की शरूआत करने वाले वही पहले व्याक्ति रहे। 1780 में हिकी ने आज की ही तारीख 29 जनवरी को बंगाल गजेट नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका के सम्पादन की शुरूआत की। यह पत्रिका एक व्यवसायिक पत्रिका के तौर पर सामने लाई गई। यह एक स्वतंत्रत और बिना किसी प्रभाव के प्रकाशित की गई।
यूं तो यह विशुद्ध रूप से निजी अंग्रेजी व्यवसाय के तौर पर शुरू किया गया था, लेकिन इस पर अंग्रजी हुकूमत या ईस्ट इण्डिया कंपनी का से पूरी तरह स्वतंत्रत हो कर काम करता था। यही वजह इसे गौरवान्वित करने को सबसे बड़ा कारण साबित हुई। यह अंग्रेजी भाषा में छपता था। इस साप्ताहिक अखबार में उस दौर में तमाम कमर्शियल विज्ञापन प्रकाशित किए गए, यहॉं तक कि दासों के आयात और विक्री संबंधी विज्ञापन भी इनमें शामिले रहे। यह अखबार इसलिए प्रभावशाली माना गया क्योंकि इसने अपनी अभिव्यक्ति की आजादी को बनाए रखने के लिए भारत में कंपनी प्रशासन के खिलाफ जमकर लेखनी का प्रयोग किया। यहां तक कि बंगाल गजेट ने तत्कालीन वॉयस रॉय वॉरेन हैस्टिङ्स को भी नहीं छोड़ा और उनकी कार्य प्रणाली को भारत की जनता के सामने लाने में किसी तरह के दबाव को अपनी कलम पर हावी नहीं होने दिया। इस पर नाराज वॉयसरॉय ने हिकी और उनके अखबार पर मुकदमा चलाया, और आधिकारिक रूप से स्वीकृत समाचार पत्रों के प्रकाशन को नियम तय किए। इसके बाद औपनिवेशिक सरकार की छवि को क्षति पहुंचाने वाली खबरों के प्रकाशन को नियंत्रित किया जाने लगा।
जेम्स ऑगस्टस हिक्की ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी के ही तौर पर भारत आये थे और कलकत्ता से उन्होंने अंग्रेजी में बंगाल गजट समाचार पत्र प्रकाशित किया था। अपनी निष्पक्ष लेखनी से उन्होंने वायसराय जैसे ताकतवर औहदेदार तक को नही बख्शा। बंगाल गजेज् में हिकी ने लिखा कि वारेन हेस्टिंग्स अपनी मनमानी से कंपनी सरकार के धन का निजी हित में उपयोग कर रहे हैं।
बड़ी बात यह थी कि वह इसलिए भी सुर्खियों में आए क्योंकि वह खुद एक अंग्रेज होने के बाबजूद अपनी ही सरकार के खिलाफ जोरदार ढंग से आवाज उठा रहे थे। इसके लिए उन्हें कई बार कंपनी सरकार ने जेल में डाला था। यूं तो हिक्की पूरी तरह बीती सदियों पुरानी कहानी हो चुका है। लेकिन यह पत्रकारिता के लिए पूरी दुनिया भर में एक मिशाल के तौर पर आज भी याद किया जाता है। पत्रकारिता को निष्पक्ष विधा और सच्चाई बयान करने के लिये मानने वाले लोगों कल्लकत्ता स्थित नेशनल लाइब्रेरी में उनके प्रकाशन की एक प्रति अब भी देखने को सुरक्षित मिल जाती है। इस प्रति को देखने के लिए भारत या अंग्रेज पत्रकार ही नही दुनियां भरके पत्रकार देखने के लिए यहां आते हैं और उसे अपने लिये प्रेरणाप्रद समझते हैं।
हिक्की का जन्म आयरलैंड में 1740 के आसपास हुआ था। युवावस्था में, वह स्कॉटिश प्रिंटर विलियम फाडेन के साथ प्रशिक्षु के लिए लंदन चले गए। हालांकि, हिक्की ने कभी भी प्रिंटर्स गिल्ड से अपनी स्वतंत्रता नहीं ली, और इसके बजाय एक अंग्रेजी वकील विलियम डेवी के साथ एक क्लर्कशिप हासिल की। कुछ बिंदु पर हिक्की ने कानून में अपना करियर छोड़ दिया, और, लंदन में एक सर्जन के रूप में अभ्यास करने के एक संक्षिप्त प्रयास के बाद, वह 1772 में कलकत्ता के लिए एक सर्जन के साथी के रूप में एक ईस्ट इंडियामैन में सवार हो गया।
महत्वपूर्ण जानकारियां
हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे, जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया। यू ंतो 1684 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। लेकिन भारत का पहला समाचार पत्र निकालने का श्रेय जेम्स ऑगस्टस हिकी जैसे अंग्रेज को ही जाता है।
जेम्स ऑगस्टस हिक्की को एक बेहद सनकी आयरिश इंसान के तौर पर जाना जाता है, वह कुछ व्यवसायिक कारणों से लिए गए कर्ज और उसकी देनदानी के विवाद के कारण दो साल जेल की जेल की सजा काट चुका था। उनका अखबार गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स के प्रशासन का पहला एक मात्र और सबसे मजबूत आलोचक था। यह अखबार अपनी उत्तेजक पत्रकारिता और भारत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति की लड़ाई के लिए सबसे बड़ा हथियार भी बना था। आखिरकार, जब अखबार में एक अज्ञात लेखक ने यह लिख दिया कि सरकार हमारे भले के बारे में नहीं सोच सकती तो हम भी सरकार के लिए काम करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
कंपनी सरकार ने उनके तेवरों को देखते हुए उनके खिलाफ कई कानूनी कार्रवाइयॉं की लेकिन वह भी उनके हौसलों और इरादों को नहीं डिगा पाई। वॉयस रॉय हेस्टिंग्स ने हिक्की पर परिवाद का मुकदमा दायर किय। इसमें भी हिक्की को दोषी पाया गया और उन्हें जेल भेजा गया। जेल जाने के बाद भी हिक्की के हौसले नहीं टूटे और उन्होंने जेल से ही 9 महीने तक अखबार का संचालन किया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को एक विशेष आदेश के जरिए उनके प्रिंटिंग प्रेस को ही सील करवाना पड़ा। 30 मार्च 1782 को बंगाल गजट पर पूरी तरह से बैन लगा दिया गया। कुछ हफ्ते बाद प्रिंटिंग प्रेस और पूरे पब्लिकेशन की सरकार ने नीलामी कर दी और इसे इंडियन गजट ने खरीद लिया। इस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने दो साल बाद इस अखबार को बंद करने का फैसला सुना दिया।
यह सब तो होना ही था क्योंकि अखबार ने अपनी खबरों से अंग्रेजी हुकूमत के शीर्ष पर मौजूद कई ताकतवर लोगों को हिला कर रख दिया था। अखबार ने कई लोगों के भ्रष्टाचार, घूसकांड और मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर किया था। बंगाल गजट ने गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स पर आरोप लगाया था कि उन्होंने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को घूस दी है। बंगाल गजट अपनी प्रभावी पत्रकारिता के जरिए अंग्रेज सरकार की आंखों में चुभने लगा था। खासतौर पर वॉरेन हेस्टिंग्स पर ज्यादा असर पड़ रहा था।
हेस्टिंग्स को महाभियोग का सामना करना पड़ा
लेकिन हिकी के साप्ताहि अखबार बंगाल गजेट में छपी खबरों ने पूरी भारत से लेकर ब्रिटेन तक पूरी हुकूमत को हिला कर रख दिया था। जिसके चलते हेस्टिंग्स को महाभियोग का सामना करना पडा।
बंगाल गजट ने बंद होने से पहले हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के बीच मिलीभगत के इतने सबूत जारी कर दिए थे कि इंग्लैंड सरकार को इस मामले में दखल देना पड़ा। साथ ही संसद सदस्यों ने इस मामले में जांच बिठा दी। जांच पूरी होने के बाद हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, दोनों को ही महाभियोग का सामना करना पड़ा।
आखिरकार, जब अखबार में एक अज्ञात लेखक ने यह लिख दिया कि सरकार हमारे भले के बारे में नहीं सोच सकती तो हम भी सरकार के लिए काम करने के लिए बाध्य नहीं हैं, तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने दो साल बाद इस अखबार को बंद करने का फैसला सुना दिया।
ग्राफिक : पेन पॉइंट , फोटो : इंटरनेट