टिहरी संसदीय सीट: क्या राज परिवार के टिकट पर मंडरा रहा है खतरा
– टिहरी संसदीय सीट पर भाजपा से अब तक राज परिवार को ही मिलता रहा है टिकट, लेकिन इस बार टिकट दावेदारों की लंबी लाइन
PEN POINT, DEHRADUN : देश में हुए पहले संसदीय चुनाव से लेकर 2019 के चुनाव तक टिहरी संसदीय सीट पर पहले कांग्रेस फिर भाजपा से 12 बार जीत दर्ज कर चुके टिहरी राज परिवार का तिलिस्म क्या इस बार टूटने जा रहा है। महारानी कमलेंदुमति शाह से लेकर मानवेंद्र शाह और अब माला राज्यलक्ष्मी शाह ने इस सीट से 12 बार संसद में प्रतिनिधित्व किया। पहले कांग्रेस तो फिर भाजपा ने भी टिकट देने में राज परिवार को ही वरियता में रखा तो राज परिवार ने भी इन्हें निराश नहीं किया। लेकिन, इस बार भाजपा से मौजूदा सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के लिए संसद जाने की राह आसान नहीं दिख रही है। टिहरी संसदीय सीट से ही भाजपा के टिकट दावेदारों की लंबी लाइन लगी हुई है। जबकि, बीते चुनावों के दौरान भाजपा से राज परिवार के अलावा टिकट के दावेदार बहुत कम ही दिखते रहे हैं।
पहले संसदीय चुनाव से लेकर बीते 2019 के संसदीय चुनाव तक 12 बाद टिहरी राजपरिवार से जुड़े लोगों को संसद भेजा। देश में पहली बार वर्ष 1952 में हुए आम चुनाव में टिहरी सीट पर राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। इसके बाद वर्ष 1957 में पहली बार स्वतंत्र रूप से हुए चुनाव में यहां कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे मानवेंद्र शाह ने जीत दर्ज की। इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर ही मानवेंद्र शाह ने वर्ष 1962 और 1967 में भी लगातार दो बार जीत दर्ज की। वर्ष 1962 के चुनाव में तो कांग्रेस ऐसी पार्टी थी, जो अकेले यहां से चुनाव लड़ी थी। वर्ष 1971 में कांग्रेस ने नए उम्मीदवार पर दांव खेला और अपने टिकट पर परिपूर्णानंद पैन्यूली को यहां से उतारा। उन्होंने भी कांग्रेस को निराश नहीं किया और जीत दिला दी। इस चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार मानवेंद्र शाह को हराया। वर्ष 1977 में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी नई पार्टी ने यहां जीत दर्ज। कांग्रेस उम्मीदवार हीरा सिंह बिष्ट को पछाड़ते हुए बीएलडी उम्मीदवार त्रेपन सिंह नेगी यहां से विजयी रहे। इसके बाद वर्ष 1980 में कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी ने फिर से इस सीट पर जीत दर्ज की। वर्ष 1984 के चुनाव में त्रेपन सिंह कांग्रेस का साथ छोड़कर लोकदल में शामिल हो गए और कांग्रेस ने यहां से नए उम्मीदवार ब्रह्मदत्त को मैदान में उतारा। ब्रह्मदत्त ने त्रेपन सिंह नेगी को 14 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराकर यहां से बड़ी जीत पाई और सांसद चुने गए। इसके बाद वर्ष 1989 में भी वह दोबारा जीते।
अब तक कांग्रेस की पारंपरिक सीट रही टिहरी संसदीय सीट की कहानी तब बदली जब मानवेंद्र शाह भाजपा में शामिल हुए और 1991 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया। इसी साल भाजपा ने पहली बार टिहरी संसदीय सीट से राजपरिवार के जरिए जीत दर्ज की। इसके बाद वर्ष 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी मानवेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट से लगातार जीत दर्ज की और कांग्रेस लगातार हारती चली गई। साल 2004 में मानवेंद्र शाह के निधन पर भाजपा ने मानवेंद्र शाह के पुत्र मनुजेंद्र शाह उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया लेकिन वह जीत दर्ज नहीं कर सके और फिर से यह सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई। साल 2009 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति के निशानेबाज खिलाड़ी जसपाल राणा को इस सीट से प्रत्याशी बनाया लेकिन यह सीट एक बार फिर विजय बहुगुणा के जरिए कांग्रेस के खाते में गई। साल 2012 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया तो टिहरी संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने जहां विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा को प्रत्याशी बनाया तो भाजपा ने फिर से राजपरिवार के सहारे इस सीट को जीतने का फार्मूला अपनाते हुए मानवेंद्र शाह की पुत्रवधू माला राज्यलक्ष्मी शाह को प्रत्याशी बनाया। राज्य में मुख्यमंत्री होने के बावजूद विजय बहुगुणा अपने पुत्र साकेत बहुगुणा को चुनाव नहीं जीतवा सके और टिहरी संसदीय क्षेत्र की जनता ने एक बार फिर राज परिवार के सदस्य को लोक सभा के लिए चुन लिया। तब से लेकर 2019 तक तीन बार टिहरी संसदीय सीट से माला राज्य लक्ष्मी शाह लगातार जीत रही हैं।
लेकिन, इस बार माना जा रहा है कि माला राज्य लक्ष्मी शाह की बढ़ती उम्र और उनकी क्षेत्र में बेहद कम सक्रियता के चलते उनके टिकट पर संकट मंडरा रहा है। भाजपा से जुड़े नेता भी दबी जुबान में कहते हैं कि माला राज्यलक्ष्मी शाह को भी अहसास हो गया है कि 2024 के चुनाव में उनके टिकट पर संकट है लिहाजा वह लंबे समय से क्षेत्र के राजनैतिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रही हैं तो लंबे समय से सांसद होने के बावजूद क्षेत्र में बेहद कम सक्रियता के चलते लोगों के बीच उनके खिलाफ नाराजगी बनी हुई है। लिहाजा, भाजपा के लिए 73 साल की माला राज्यलक्ष्मी शाह को फिर से टिकट देने की संभावनाएं कम हो रह हैं। वहीं, राजपरिवार से उनके अलावा कोई अन्य व्यक्ति भी फिलहाल राजनीति में सक्रिय नहीं है लिहाजा आशंका बन रही है कि भाजपा इस बार टिहरी संसदीय सीट का टिकट राज परिवार से बाहर किसी अन्य दावेदार को थमा सकता है। टिहरी संसदीय सीट के लिए भी दावेदारों की लंबी लाइन लगी हुर्ह है।
यह हैं टिहरी संसदीय सीट से भाजपा टिकट के यह हैं प्रमुख दावेदार
नेहा जोशी –
राज्य में लंबे समय से विधायक व मौजूदा कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की पुत्री, भाजपा युवा मोर्चा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष। राष्ट्रीय नेताओं से नजदीकी, राष्ट्रीय राजनीति में पिछले कुछ सालों से लगातार सक्रियता।
सोना सजवाण –
टिहरी जिले की जिला पंचायत अध्यक्ष। स्थानीय राजनीति में लंबे समय से सक्रियता, जीमनी स्तर पर सक्रियता।
कर्नज अजय कोठियाल –
युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय, पार्टी के प्रवक्ता, पूर्व सैनिक, केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर देश विदेश में खूब सराहे गए। युवाओं को सेना के लिए प्रशिक्षित करने के कैंप लंबे से समय से संचालित कर रहे हैं।