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उत्तराखंड का यह प्रयोग देश भर में खोलेगा समान नागरिक संहिता की राह

– उत्तराखंड सरकार फरवरी में होने वाले विधानसभा सत्र में ला सकती है कि समान नागरिक संहिता कानून, दो साल से चल रही है कानून तैयार करने की कवायद
– उत्तराखंड के इस प्रयोग से खुलेगी नई राह, 1948 में डॉ. अंबेडकर की तमाम दलीलों के बाद भी लागू नहीं हो सका था समान नागरिक संहिता
PEN POINT, DEHRADUN : उत्तराखंड इन दिनों देश दुनिया में चर्चाओं में है। पिछले दो सालों से समान नागरिक संहिता कानून बनाने की कवायद में जुटी उत्तराखंड सरकार फरवरी महीने में आयोजित होने जा रहे विधानसभा सत्र में इस बिल को पेश करने के संकेत दे चुकी है। अगर उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने ऐसा किया तो उत्तराखंड देश में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन जाएगा। वहीं, लंबे समय से समान नागरिक संहिता की वकालत करने वाली भाजपा के लिए भी उत्तराखंड में होने वाले इस प्रयोग के बाद पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की राह खुल जाएगी।
उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी की जा रही है। समान नागरिक संहिता को लेकर गठित विशेषज्ञ समिति 2 फरवरी को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है। रिपोर्ट मिलने के बाद इसे विधानसभा के पटल पर रखा जाएगा। उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता विधेयक पर चर्चा और उसे पास करने के लिए 5 फरवरी को विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया है।
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में गठित समिति यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है। समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है। रिपोर्ट विधानसभा में पेश किए जाने के बाद इसकी अन्य औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी। देश के किसी भी राज्य में अभी यूसीसी लागू नहीं है। इस प्रकार उत्तराखंड सबसे पहले यूसीसी को लागू कर नया इतिहास कायम करेगा। विधानस सभा चुनाव 2022 में भाजपा ने राज्य में भारी बहुमत के साथ दूसरी बार सरकार बनाई तो चुनाव के दौरान की गई समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा को अमली जामा पहनाने के लिए दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट ने 23 मार्च 2022 को हुई पहली कैबिनेट बैठक में राज्य में नागरिक संहिता कानून (यूसीसी) लागू करने का फैसला किया। यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए 27 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति गठित कर दी गई। साथ ही इस समिति में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस प्रमोद कोहली, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह, देहरादून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़ को शामिल किया गया। इसके बाद विशेषज्ञ समिति ने समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए प्रदेश के सभी 13 जिलों में विशेष कार्यक्रम कर लोगों से सुझाव लिए। समिति को जनता की ओर से ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से ढाई लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए। प्रवासी उत्तराखंडियों से भी समिति ने यूसीसी पर चर्चा की। कानून का ड्राफ्ट तैयार करने में समिति ने भी पर्याप्त समय लिया। पहले चर्चा थी कि जून 2022 तक समिति कानून का ड्राफ्ट सरकार को सौंप देगी लेकिन इसके बाद समिति का कार्यकाल कई बार बढ़ाया गया और अब बताया जा रहा है कि समिति 2 फरवरी को रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी।

संविधान निर्माता आंबेडकर ने यूसीसी को बताया था जरूरी
भारत का संविधान बनाने वाले भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत की थी। पेन प्वाइंट डॉ. भीमराव आंबेडकर के समान नागरिक संहिता के समर्थन में दिए गए संविधान सभा में भाषणों को पूर्व में प्रकाशित कर चुका है। 23 नवंबर 1948 को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा की बहस में समान नागरिक संहिता के पक्ष में जोरदार दलीलें दी थीं। संविधान सभा में कुछ सदस्यों खासकर मुस्लिमों के विरोध पर आंबेडकर ने यूसीसी को अलग अलग लागू करने की सलाह दी थी। आंबेडकर की सलाह थी कि पहले चरण में समान नागरिक संहिता को माननना स्वैच्छिक किया जाए और सिर्फ उन लोगों पर लागू हो जो हलफनामा देकर कहे कि वे इसे मानने के लिए तैयार है।

क्या है समान नागरिक संहिता (UCC)
समान नागरिक संहिता (UCC) में देश में निवास कर रहे सभी धर्म और समुदाय के लोगों के लिए समान कानून की वकालत की गई है। अभी हर धर्म और जाति का अलग कानून है। इसके हिसाब से ही शादी, तलाक जैसे व्यक्तिगत मामलों में निर्णय होते हैं। यूसीसी लागू होने के बाद हर धर्म और जाति के नागरिकों के लिए विवाह पंजीकरण, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे मामलों में समान कानून लागू होगा।

भाजपा के लिए फायदेमंद
भाजपा हमेशा से ही मुस्लिमों के लिए अलग कानून को लेकर आपत्ति जताती रही है और वह समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात भी करती रही है। लेकिन, केंद्र में दस साल के कार्यकाल के दौरान भाजपा ने इस दिशा में सिवाय बयान देने के अलावा कोई कदम तो नहीं बढ़ाया लेकिन राज्य सरकारों के द्वारा इस दिशा में बढ़ने का काम किया।

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