चिंता : तो 2040 तक खाने लायक नहीं रह जाएंगे गेहूं और चावल !
Pen Point, Dehradun : कहावत है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होय मन। अब सवाल उठता है कि हम कैसा खाना खा रहे हैं, इसका जो जवाब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी आईसीएआर ने तलाशा है वह निराश करने वाला है। जिसके मुताबिक मौजूदा दौर में देश की लगभग पूरी आबादी ऐसी चीज खा रही है जिसमें पोषण बहुत कम है, विटामिन और ऐसे जरूरी तत्व नहीं हैं जो अच्छी सेहत के लिये जरूरी हैं। पर्यावरण पत्रिका डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पहली बार आईसीएआर ने भारत की प्रमुख फसलों चावल और गेहूं पर यह शोध किया है।
क्या कहता है शोध
नवंबर 2023 में आईसीएआर के साथ पश्चिम बंगाल के बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय और तेलंगाना के राष्ट्रीय पोषण संस्थान के 11 दूसरे वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित किया। हरित क्रांति से जहां भारत को खाद्य सुरक्षा हासिल हुई वहीं यह पोषण सुरक्षा को कमजोर करने के लिये भी जिम्मेदार है। यह पहला शोध है, जिसने बताया है कि ज्यादा उपज देने वाली फसलें बनाने के फेर में चावल और गेहूं के पोषण मूल्य कम हो गए हैं। जबकि ये दोनों भारत के मुख्य अनाज हैं। पौधों की आनुवंशिकी बनावट में इतना बदलाव किया गया है कि अब वे मिट्टी से अनाज तक पोषण पहुंचाने का अपना मुख्य काम नहीं कर पाते हैं।
ऐसे हुआ अध्ययन
साल 2018 से 2020 के बीच, वैज्ञानिकों ने 1967 में हरित क्रांति के बाद के दशकों में जारी की गई “उत्कृष्ट” ऊंची पैदावार वाली चावल और गेहूं की किस्मों को उगाया। ये ऐसे पौधे हैं जिन्हें खास तरह से विकसित किया जाता है। चावल के लिए 16 और गेहूं के लिए 18 किस्मों को चुना गया। एक जानकारी के मुताबिक 1960 के दशक से लेकर अब तक चावल और गेहूं की लगभग 1,500 किस्में जारी की गई हैं। ये किस्में लोकप्रिय थीं और इसलिए पूरे देश में एक या दो दशक तक बड़े पैमाने पर उगाई गईं। शोधकर्ताओं ने चावल के लिए 2000 के दशक और गेहूं के लिए 2010 के दशक तक ही अध्ययन किया क्योंकि उसके बाद के दशक में ऐसी कोई किस्म नहीं मिली जिसे उत्कृष्ट कहा जा सके।
क्या कहते हैं नतीजे
अध्ययन में फसल के अनाजों के पोषण स्तर को मापने से पता चला कि चावल और गेहूं पिछले 50 सालों में अपना 45 फीसदी तक का पोषण मूल्य खो चुके हैं। जाहिर है कि ये दोनों ही अनाज भारत में लोगों की पचास फीसदी से अधिक दैनिक उर्जा जरूरत को पूरा करते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसी रफ्तार से 2040 तक ये अनाज मानव उपभोग के लिए पर्याप्त पोषण देने में असमर्थ हो जाएंगे।
चिंता ये भी है
पोषण कम होने के साथ अनाज में जहरीले तत्वों की मात्रा भी बढ़ गई है। यह अधिक चिंता की बात है। पिछले 50 सालों में चावल में जिंक और आयरन जैसे जरूरी तत्वों की मात्रा 33 प्रतिशत और 27 प्रतिशत कम हो गई है, जबकि गेहूं में ये 30 प्रतिशत और 19 प्रतिशत घटी है। इसके उलट, चावल में जहरीले तत्व आर्सेनिक की मात्रा 1,493 प्रतिशत बढ़ गई है। कहा जा सकता है कि हमारा मुख्य भोजन की पौष्टिकता घटने के साथ ही यह सेहत को खराब करने वाला भी हो रहा है।
पिछले कई सालों से जैविक खेती और अनाजों पर काम कर रहे द्वारिका प्रसाद सेमवाल बताते हैं कि यह गंभीर संकट है, जिससे निपटना जरूरी हो गया है, इसके लिये न सिर्फ वैज्ञानिकों को बल्कि किसानों और आम लोगों को भी जागरूक होना होगा। जैविक खेती की ओर लौटने के साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता को भी सुधारना होगा।