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पाँच दशक पुरानी समस्या : जोशीमठ के लोगों को आसपास ही बसाएं : संघर्ष समिति

Pen point, Dehradun  : उत्तराखादं का पासिद्ध जोशीमठ क्षेत्र बीते पांच दशक से ज्यादा समय से भू धंसाव और आपदा की चपेट से प्रभावित है। इस शहर को बचाने के लिए उठाए जाने वाले सुरक्षात्मक कदमों बढाने की बात तो कई बार हुई लेकिन बीते बरस के शुरू में ही इतने लम्बे समय से किये जाने वाले दावों की असल तस्वीर सामने रख दी। जोशिमठ के लोग अब भी संभावित आपदाओं से बचने के लिए सरकार की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं। जोशीमठ में भूधंसाव की समस्या वर्ष 1970 से बनी हुई है। तब अलकनंदा नदी में आई बाढ़ से यहां काफी नुकसान हुआ था। वर्ष 1976 में गठित महेश मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ में भूधंसाव व घरों में दरारें पड़ने का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में किया। साथ ही शहर के ड्रेनेज प्लान को सुव्यवस्थित करने की संस्तुति की थी। बीते वर्ष सरकार की ओर से विशेषज्ञों से कराए सर्वे में भी यही बात सामने आई। इससे पहले कि सुरक्षात्मक कदम उठाए जाते बीते साल दो जनवरी की रात नगर के कई मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं। जेपी कालोनी में पानी का रिसाव शुरू हो गया। इसके बाद प्रशासन ने असुरक्षित भवनों का चिह्नीकरण और प्रभावित परिवारों को राहत शिविरों में भेजना शुरू किया। इसके अलावा दर्जनों परिवारों के 259 सदस्य राहत शिविरों में रखे गए।

अब एक बार जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने प्रदेश सरकार से आसपास ही विस्थापित किए जाने की मांग की है। पिछले साल जब जोशीमठ में लोगों के घरों में दरार आने के बाद सरकार ने पूरे क्षेत्र को डेंजर जोन घोषित किया था तो उस वक्त 1200 घरों को इसके लिए चिन्हित किया गया था। उस वक्त आपदा सचिव ने जल्द विस्थापन किए जाने की बात कही थी। अब एक लंबा वक्त गुजर गया है लेकिन इसके बावजूद अभी तक स्थानीय लोगों का विस्थापन नहीं हो पाया है।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती और बदरीनाथ के विधायक राजेंद्र भंडारी ने देहरादून में कहा कि उन्होंने सरकार से मांग की है कि जोशीमठ के लोगों को जोशीमठ के नजदीकी विस्थापित किया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार से उनकी 11 बिंदुओं पर बातचीत पर सहमति बन गई थी, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। साथ उन्होंने कहा कि सरकार जो डेंजर जोन के लोगों को बसाने के लिए जमीन चिन्हित कर रही है वह जोशीमठ से काफी दूर है। ऐसे में उन्होंने सरकार से अपील की है कि जहां वह निवास कर रहे हैं उसके आसपास के क्षेत्र में ही उनको बसाया जाए।

वहीं दूसरी तरफ जोशीमठ आपदा को एक साल का समय पूरा हो चुका है। सरकार जोशीमठ को बचाने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ाने की कोशिशों की दुहाई देती रही है। सरकार की तरफ से आपदा प्रभावितों को पुनर्वास के लिए तीन विकल्प देने के साथ भूधंसाव की तह तक जाने को शोध किया गया है। इसकी रिपोर्ट सामने आने की उम्मीद है। इस बीच सरकार की मदद से कुछ आपदा प्रभावितों का जनजीवन पटरी पर लौटाने की भी कोशिशें की हैं। जबकि कई आपदा प्रभावितों के दुख-दर्द से उबरने की उम्मीद सरकारी तंत्र के जाल में उलझी हुई हैं। विदित हो कि प्रशासन के सर्वे नगर में दरार वाले 868 भवन चिह्नित किए गए थे। इनमें 181 भवन जीर्ण-शीर्ण हैं, यहां रहने वाले परिवारों कुछ परिवारों को पुनर्वास पैकेज के तहत 26 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं।

असुरक्षित भवनों से 300 से अधिक परिवार राहत शिविरों में भेजे गए थे। यहां से 232 परिवार रिश्तेदार या किराये के भवन में रहने चले गए। इनको सरकार से प्रति माह पांच हजार रुपये किराया चुकाने को मिलने थे, लेकिन अब तक 49 परिवारों को ही किराया मिला है। इससे कुछ प्रभावित परिवार फिर असुरक्षित घरों में लौट गए। किराया वितरण को लेकर तहसील प्रशासन कार्यवाही गतिमान होने की बात कह रहा है।

आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को प्रशासन ने जोशीमठ से 14 किमी दूर उद्यान विभाग की भूमि पर 15 प्री-फेब्रिकेटेड हट बनाए हैं। तीन महीने से ये हट खाली पड़े हैं। प्रभावितों का कहना है कि नगर से इतनी दूर जाकर खेती-बाड़ी और मवेशियों का ध्यान कैसे रख पाएंगे। बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा। ये तमाम परेशानियाँ प्रभावितों को परेशान किए हुए हैं।

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