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ABUL KALAM AZAD : पाकिस्तान के खिलाफ खड़े होने वाले मुस्लिम नेता, जिसने रखी पहले IIT की नींव

आज देश के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद की पुण्यतिथि, स्वतंत्रता आंदोलन के साथ शिक्षा क्षेत्र में योगदान के लिए किया जाता है याद
PEN POINT, DEHRADUN। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जहां देश के बड़े बड़े मुस्लिम नेता मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग कर रहे मोहम्मद अल्ली जिन्ना के पक्ष में खड़े दिख रहे थे तो जिन्ना की इस टू नेशन थ्योरी को सिरे से खारिज करने के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद अपनी आवाज बुलंद किए हुए थे। वह पाकिस्तान के निर्माण के पक्ष में तो थे ही नहीं साथ ही उन्होंने पाकिस्तान बनने पर इसके विनाश की भी भविष्यवाणी कर दी थी। आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री, देश में तकनीकि शिक्षा के प्रसिद्ध धाम ‘आईआईटी’ की स्थापना करने वाले भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद की आज पुण्यतिथि है।
अबुल कलाम गुलाम मोहियुद्दीन का जन्म 11 नवंबर 1888 को मुसलमानों के पवित्र शहर मक्का में हुआ था। आज़ाद एक उत्कृष्ट वक्ता थे, जैसा कि उनके नाम से संकेत मिलता है- ‘अबुल कलाम’ का शाब्दिक अर्थ है ‘संवादों का देवता’। उन्होंने बेहद कम उम्र में ही उर्दू में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। बाद के सालों में वह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लिखने लगे और आजादी के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए रसाले भी छापने लगे। वर्ष 1912 में उन्होंने उर्दू में अल-हिलाल नामक एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की, जिसने मॉर्ले-मिंटो सुधारों (1909) के बाद दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव को समाप्त कर हिंदू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश सरकार ने अल-हिलाल पत्रिका को अलगाववादी विचारों का प्रचारक माना और 1914 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के समान मिशन के साथ अल-बालाग नामक एक अन्य साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। वर्ष 1916 में ब्रिटिश सरकार ने इस पत्र पर भी प्रतिबंध लगा दिया तथा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को कलकत्ता से निष्कासित कर बिहार निर्वासित कर दिया गया, जहाँ से उन्हें वर्ष 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद रिहा कर दिया गया था। आज़ाद ने गांधीजी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन (1920-22) का समर्थन किया और 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये। साल 1923 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। यह उपलब्धि उन्हें महज 35 वर्ष उम्र में मिली थी। आजादी की जंग की अगुवा कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले वह सबसे कम उम्र में व्यक्ति थे।
वर्ष 1930 में मौलाना आज़ाद को गांधीजी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने तथा नमक कानून का उल्लंघन करने के लिये गिरफ्तार किया गया था। उन्हें डेढ़ साल तक मेरठ जेल में रखा गया था। वे 1940 में फिर से कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने और 1946 तक इस पद पर बने रहे। आज के ही दिन 22 फरवरी 1958 को उनका निधन हो गया।

शिक्षाविद् के रूप में बड़ी पहचान
मौलाना अबुल कलाम आजाद की देश में एक बड़े शिक्षाविद् के रूप में पहचान थी। शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना आज़ाद उदारवादी सर्वहितवाद के प्रतिपादक थे। शिक्षा के संदर्भ में आज़ाद की विचारधारा पूर्वी और पश्चिमी अवधारणाओं के मिश्रण पर केंद्रित थी, जिससे पूरी तरह से एकीकृत व्यक्तित्व का निर्माण हो सके। जहाँ पूर्वी अवधारणा आध्यात्मिक उत्कृष्टता एवं व्यक्तिगत मोक्ष पर आधारित थी वहीं पश्चिमी अवधारणा ने सांसारिक उपलब्धियों और सामाजिक प्रगति पर अधिक बल दिया।
आजाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से एक थे जिसे मूल रूप से वर्ष 1920 में संयुक्त प्रांत के अलीगढ़ में स्थापित किया गया था। वर्ष 1947 में वह स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने और वर्ष 1958 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने देश के उत्थान के लिये उल्लेखनीय कार्य किये। शिक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान देश में पहले आईआईटी, आईआईएससी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई थी। इसके साथ ही उन्होंने साहित्य के विकास के लिये साहित्य अकादमी, भारतीय संगीत एवं नृत्य के विकास के लिये संगीत नाटक अकादमी और चित्रकला के विकास के लिये ललित कला अकादमी का गठन किया। यह तीनों अकादमी आज भी अपने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने वाले व्यक्तियों, संस्थाओं को प्रोत्साहित करने के साथ ही उच्च सम्मान भी प्रदान करती है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत वर्ष 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था

द्वि राष्ट्र अवधारणा का किया विरोध
मौलाना आजाद जिन्ना की टू नेशन थ्योरी के पक्ष में नहीं थे। वह पाकिस्तान बनने के खिलाफ थे। वह मुसलमानों के लिए अलग राष्ट् का विरोध करने वाले सबसे बड़े मुस्लिम नेता थे। जब आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था, तब मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना अपना घातक सिद्धांत (टू नेशन थ्योरी) लेकर आगे बढ़े और मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की मांग करने लगे. उनके इस फैसले से मौलाना अबुल कलाम बिल्कुल सहमत नहीं थे। उन्हांने यहां तक भविष्यवाणी कर दी थी कि यदि पाकिस्तान बना तो वह कुछ ही सालों में अपने विनाश की पटकथा लिखेगा यहां तक उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े होने की भी पहले ही घोषणा कर दी थी। बाद में पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना तो लोगों को उनकी यह बात प्रासंगिक लगी।

बेहद साधारण जीवन जिया
आजाद ने हमेशा सादगी का जीवन पसंद किया था। जब उनका निधन हुआ था, उस दौरान भी उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी और न ही कोई बैंक खाता था. उनकी निजी अलमारी में कुछ सूती अचकन, एक दर्जन खादी के कुर्ते-पायजामे, दो जोड़ी सैंडल, एक पुराना ड्रेसिंग गाउन और एक उपयोग किया हुआ ब्रश मिला. इसके साथ ही अनेक दुर्लभ पुस्तकें थीं जो अब राष्ट्र की संपत्ति हैं।

 

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