एबीवीपी: भारतीय राजनीति की नर्सरी जहां से निकले हैं बड़े प्रोडक्ट
Pen Point, Dehradun : भाजपा आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) देश में राजनीति की सबसे उपजाउ नर्सरी साबित हो रही है। इस समय केंद्र सरकार में एबीवीपी से निकले मंत्रियों की लंबी फेहरिस्त है। जबकि हाल ही में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर एबीवीपी से जुड़े चेहरों को ही चुना है। एक छात्र संगठन के रूप में सक्रिय एबीवीपी का गठन 1949 में हुआ था। देश की राजनीति में भाजपा के उभार के साथ इस संगठन का भी विस्तार हुआ। दावा किया जाता है कि एबवीपी इस समय दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है।
कहा जाता सकता है कि युवाओं में विचारधारा के साथ राजनीतिक चेतना जगाने का यह प्रयोग भाजपा के लिये बेहद सफल साबित हुआ है। बीते तीन दशकों में लगातार छात्र संघ चुनावों में एबीवीपी मजबूती के साथ पैठ बनाए हुए है। भाजपा की तरह ही सांगठनिक अनुशासन एबीवीपी की सफलता का सूत्र रहा है। सामाजिक गतिविधियों के साथ ही छात्रों के मुद्दों पर लगातार सक्रियता इसे अन्य छात्र संगठनों से अलग खड़ा करते हैं।
यही वजह है कि गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, गजेंद्र सिंह शेखावत, धर्मेंद्र प्रधान जैसे दिग्गज एबीवीपी के ही उत्पाद हैं। इसके अलावा पिछली पीढ़ी के दिवंगत लेकिन बेहतद कद्दावर प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे जैसे नेता भी एबीवीपी से जुड़े थे। हाल ही में एबवीपी के 69वें सम्मेलन में गृहमंत्री अमित शाह ने खुद को एबीवीपी का ऑर्गेनिक प्रोडक्ट बताया था।
उत्तराखंड की बात करें तो खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, स्वास्थ्य मंत्री डॉ.धन सिंह रावत, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट भी एबीवीपी से जुड़े रहे हैं। भाजपा सरकार में विधायक विनोद कंडारी, ब्रजभूषण गैरोला भी एबीवीपी में सक्रिय रहे हैं।
गढ़वाल विश्वविद्यालय में एबीवीपी संगठन में रह चुके सुखदेव चौधरी के अनुसार संगठन केवल कैंपस तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि कैंपस के बाहर भी यह उन सभी मुद्दों पर काम करता है जिनका असर छात्रों और युवाओं पर किसी ना किसी रूप में पड़ रहा हो, इसके अलावा छात्रों में सामाजिक और राष्ट्रवाद की चेतना विकसित करने पर संगठन का फोकस रहता है।
एबीवीपी के प्रदेश संगठन मंत्री विक्रम फर्स्वाण बताते हैं कि संगठन का प्रयास हर छात्र से जुड़ने का रहता है, इसके साथ ही सामाजिक गतिविधियां और रचनात्मक आंदोलन के कार्यक्रम साल भर चलते रहते हैं, ये सभी कार्यकलाप बेहद अनुशासित तरीके से किये जाते हैं।