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जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतीय संसद पर किया आतंकियों ने हमला

PEN POINT, DEHRADUN: तारीख थी 13 दिसंबर साल 2001 जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाली भारतीय संसद में हर सुबह आमतौर पर रोज की तरह सियासी गहमागहमी चल रही थी। शीतकालीन सत्र चल रहा था। ऐसे में देश भर से अपने संसदीय क्षेत्रों से सांसद नई दिल्ली आए हुए थे। किसी को कतई इस बात का अंदाज नहीं था कि कुछ देर में आतंकवादी इस परिसर में घुसकर आतंक मचाने वाले है। आजादी के बाद यह पहली घटना थी जब भारतीय लोकतंत्र के मंदिर परिसर में चुनौती देते हुए सीधे आतंकी घुस कर ऐसी घटना को अंजाम देने पहुंच गए। इस घटना ने समूचे देश को हिलाकर रख दिया। लेकिन आतंकवादियों ने इस घटना को अंजाम दे दिया। आखिर संसद पर हमला कैसे हो सकता है, यह सोचकर पूरा देश हैरान और परेशान था।

याद दिला दें कि ये हमला पाकिस्तान प्रायोजित लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद आतंकी ग्रुप के आंतकवादियों ने किया था। हमला करने वाले सभी हथियारबंध आतंकवादियों की संख्या महज 5 थी। जिन्होंने संसद भवन पर बमों और गोलियों से अटैक किया था। इस हमले में 14 लोग मारे गए, जिनमें हमलावर 5 आतंकवादी भी शामिल थे। इस हमले में 8 सुरक्षाकर्मी और 1 माली भी शहीद हुए थे।

'Pen Point

ससंद परिसर में ताबड़तोड़ गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं। आतंकवादी एके-47 लेकर एक सफेद एंबेसडर कार से संसद परिसर में घुसे थे। शुरू में तो आतंकवादी जिस तरह कार से अंदर घुसे उससे सुरक्षाकर्मियों को नहीं लगा कि वो आतंकवादी हैं, लेकिन बाद में परिसर में उनकी हरकतों से ये अंदाज हो गया कि सेना की वर्दी पहनकर संसद परिसर में घुसे ये लोग खतरनाक इरादे लेकर आए थे।

घटनाक्रम सुबह 11 बजकर 20 मिनट

उस रोज उस वक्त, लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही ताबूत घोटाले पर मचे बवाल के चलते स्थगित हो चुकी थीं। वक्त था 11 बजकर 20 मिनट। इसके बाद तमाम सांसद संसद भवन से बाहर निकल गए। कुछ ऐसे थे जो सेंट्रल हॉल में बातचीत में मशगूल हो गए। कुछ लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गए, कुल मिलाकर सियासी तनाव से अलग माहौल खुशनुमा ही था।
शुरू में सुरक्षाकर्मियों को नहीं लगा कि वो आतंकवादी हैं लेकिन बाद में परिसर में उनकी हरकतों से ये अंदाज हो गया कि सेना की वर्दी पहनकर संसद परिसर में घुसे ये लोग गलत इरादे से आए हैं। इस कार पर लाल बत्ती और होम मिनिस्ट्री का स्टीकर लगा हुआ था। संसद परिसर में एंट्री के बाद आतंकियों की कार बिल्डिंग के गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ रही थी, तभी एक सुरक्षाकर्मी को कुछ शक हुआ। कार को पीछे लौटने को कहा गया। तब तक वह तत्कालीन वाइस प्रेजिडेंट कृष्ण कांत के वाहन से टकरा चुकी थी। इसके बाद। एके-47 से लैस आतंकी कार से उतरते हैं और फायरिंग शुरू कर देते हैं।

पांचवां आतंकी मचाता रहा कोहराम
चार आतंकियों को मार गिराने की कार्रवाई के बीच एक आतंकी गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ गया। ये आतंकी फायरिंग करते हुए गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ता जा रहा था। गेट नंबर 1 से ही तमाम मंत्री, सांसद और पत्रकार संसद भवन के भीतर जाते हैं। ये आतंकी भी वहां तक पहुंच गया। फायरिंग और धमाके की आवाज सुनने के तुरंत बाद इस गेट को भी बंद कर दिया गया था। इसलिए पांचवां आतंकी गेट नंबर 1 के पास पहुंचकर रुक गया। तभी उसकी पीठ पर एक गोली आकर धंस गई। ये गोली इस आत्मघाती हमलावर की बेल्ट से टकराई। इसी बेल्ट के सहारे उसने विस्फोटक बांध रखे थे। गोली लगने के बाद पलक झपकते ही विस्फोटकों में धमाका हो गया। उस आतंकी के शरीर के निचले हिस्से की धज्जियां उड़ गईं। खून और मांस के टुकड़े संसद भवन के पोर्च की दीवारों पर चिपक गए। जले हुए बारूद और इंसानी शरीर की गंध हर तरफ फैल गई।

पांचों आतंकियों के ढेर होने के बावजूद इस वक्त तक ना तो सुरक्षाकर्मियों को पता था और न ही मीडिया को कि आखिर संसद पर हमला कितने आतंकियों ने किया है। अफरातफरी के बीच ये अफवाह पूरे जोरों पर थी कि एक आतंकी संसद के भीतर घुस गया है। इसकी एक वजह ये भी थी कि मारे गए पांचों आतंकियों ने जो हैंड ग्रेनेड चारों तरफ फेंके थे, उनके में कुछ आतंकियों को मारे जाने के बाद फटे।
संसद के भीतर और बाहर मचे घमासान के बीच सुरक्षाकर्मियों को कुछ वक्त लगा ये तय करने में कि क्या खतरा वाकई टल गया है। आधे घंटे के भीतर सभी आतंकियों के मारे जाने के बावजूद वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। तब तक सुरक्षाबल के जवान संसद और आसपास के इलाके को बाहर से भी घेर चुके थे। गोलियों की आवाज, हैंड ग्रेनेड के धमाके की जगह अब एंबुलेंस के सायरन ने ले ली थी।

हमला होते ही काटे गए फोन

नेताओं को सेंट्रल हॉल तक ले जाने के बाद सुरक्षाकर्मी तमाम संवाददाताओं को उस कमरे में ले गए जहां से अहम सरकारी दस्तावेज बांटे जाते थे. इस कमरे का दरवाजा बंद कर दिया गया और कमरे में पहुंचते ही संवाददाता वहां के फोन की तरफ भागे. लेकिन कमरे में लगे सभी फोन ने काम करना बंद कर दिया था. ये फोन हमला शुरू होने के तुरंत बाद ही काट दिए गए थे. मकसद ये कि कोई आतंकी संसद भवन के संचार तंत्र पर कब्जा ना कर ले.
संसद के भीतर की इस हलचल के बीच आतंकी गेट नंबर 9 से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. 4 आतंकी गेट नंबर 5 की तरफ लपके भी, लेकिन उन 4 में से 3 को गेट नंबर 9 के पास ही मार गिराया गया। हालांकि एक आतंकवादी गेट नंबर 5 तक पहुंचने में कामयाब रहा। ये आतंकी लगातार हैंड ग्रेनेड भी फेंक रहा था. इस आतंकी को गेट नंबर पांच पर कॉन्टेबल संभीर सिंह ने गोली मारी। गोली लगते ही चौथा आतंकी भी वहीं गिर पड़ा।

संसद परिसर में मची अफरातफरी

संसद में फायरिंग और बम धमाके की कान फाड़ देने वाली आवाज के बीच शुरुआती मिनटों में पूरे परिसर में जबरदस्त अफरातफरी मची रही. कई सांसदों को संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ के लोग सुरक्षित बाहर निकालकर ले गए. संसद के भीतर मचे हड़कंप के बीच पांचों आतंकवादी अंधाधुंध गोलियां दागते हुए गेट नंबर 9 की तरफ भागे जा रहे थे। गेट नंबर 9 और उनके बीच की दूरी कुछ ही मीटर की थी, लेकिन तब तक गोलियों की आवाज सुनकर गेट नंबर 9 को बंद कर दिया गया था।

आतंकियों पर जबरदस्त जवाबी फायरिंग भी जारी थी। सुरक्षाबलों की गोली से तीन आतंकी जख्मी थे, लेकिन वो लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे। उन्होंने एक छोटी सी दीवार फांदी और गेट नंबर 9 तक पहुंच ही गए। लेकिन वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उसे बंद किया जा चुका है। इसके बाद वो दौड़ते हुए, बंदूकें लहराते हुए आगे बढ़ने लगे। तभी पहली मंजिल पर मौजूद एक पुलिस अफसर अपने साथियों पर चिल्लाया कि एक-एक इंच पर नजर रखो। कोई आतंकी सदन के भीतर ना पहुंचने पाए कोई आतंकी यहां से भाग ना पाए। तुरंत ही सुरक्षाकर्मियों ने उन नेताओं और पत्रकारों को संसद के भीतर धकेलना शुरू कर दिया जो इतनी फायरिंग और हैंड ग्रेनेड के धमाकों के बाद भी दरवाजों के आसपास खड़े थे। लेकिन तब तक संसद की सुरक्षा में लगे लोग पूरी तरह हरकत में आ चुके थे। गहरे नीले रंग के सूट पहने हुए ये सुरक्षाकर्मी परिसर के भीतर और बाहर फैल गए। वो सांसदों और मीडिया के लोगों को लगातार अपनी जान बचाने के लिए चिल्ला रहे थे। उस वक्त तक ये भी तय नहीं था कि आतंकी सदन के भीतर तक पहुंच गए हैं या नहीं। इसलिए तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और कैबिनेट के दिग्गज मंत्रियों को संसद भवन में ही एक खुफिया ठिकाने पर ले जाया गया।
वहीं जो सांसद परिसर से बाहर निकल रहे थे उन्होंने देखा कि हर तरफ अफरातफरी मच गई है। पुलिस की वर्दी पहने हुए लोग इधर से उधर भाग रहे हैं। हर तरफ से गोलियों और हेंड ग्रैनेड दागे जाने की आवाज आ रही थीं। ये वो वक्त था जब पहली बार सही मायने में लोगों को एहसास हुआ कि दरअसल हुआ क्या है। फिर तो इसके बाद गोलियों की तड़तड़ाहट में एक और आवाज गूंज उठी, आतंकवादी, आतंकवादी।

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