अग्निवीर : कांग्रेस के लिए संजीवनी तो भाजपा ने ओढ़ रखी खामोशी
– कम आबादी के बावजूद भारतीय सेना में साढ़े पांच फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी वाले राज्य में अग्निवीर योजना के बाद युवाओं के सामने कम हुए फौज में भर्ती होने के अवसर
Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड की पांचों संसदीय सीटों पर इन दिनों चुनावी प्रचार चरम पर है लेकिन डेढ़ लाख के करीब पूर्व सैनिकों और 90 हजार के करीब सेवारत सैनिकों वाले इस राज्य में पूर्व सैनिकों समेत अग्निवीर जैसी योजना पर सत्तारूढ़ दल खामोशी ओढ़े हैं तो वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अग्निवीर योजना को प्रदेश की सैन्य परंपरा और युवाओं के साथ धोखा करार दे रहा है। अब तक संपन्न हुए चुनावी प्रचार में कांग्रेस प्रत्याशी अग्निवीर मुद्दे को लेकर भाजपा पर हमलावर है तो वहीं भाजपा भी अपने चुनावी अभियान में अग्निवीर मुद्दे पर कुछ भी बोलने से बच रही है।
उत्तराखंड राज्य आजादी से पूर्व ही सैन्य बाहुल्य राज्य रहा है। 1 लाख 39 हजार से अधिक पूर्व सैनिक और 50 हजार के करीब वीर नारियां और सैनिका विधवाओं के साथ ही 90 हजार के करीब सेना में सेवारत जवान प्रदेश के मतदाताओं में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं। हाल के सालों में संपन्न चुनावों में भाजपा कांग्रेस समेत प्रादेशिक पार्टियों ने भी पूर्व सैनिकों को लुभाने को खूब जतन किए हैं। पूर्व सैनिकों का मतदाताओं में बड़ी हिस्सेदारी के चलते पार्टियां इन्हें लुभाने, अपने पक्ष में करने के लिए खूब मशक्कत करती रही है। इस बार भी भाजपा पूर्व सैनिकों को अपने पक्ष में करने के लिए वन रैंक वन पेंशन को लागू करने समेत पूर्व सैनिकों के हितों में किए गए कामों को तो गिना रही है लेकिन अग्निवीर जैसी योजना पर बात करने से बच रही है। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदेश में रूद्रपुर और ऋषिकेश में चुनावी जनसभाएं कर चुके हैं लेकिन वह अग्निवीर और सेना के मुद्दे पर बोलने से बचे हैं हालांकि उन्होंने सेना के बहादुरी और प्रदेश के पूर्व सैनिकों की तारीफ तो की लेकिन अग्निवीर मुद्दे पर खामोश ही रहे। प्रदेश में सेना में नियमित नियुक्ति की जगह चार साल की सेवा वाली अग्निवीर योजना शुरू होने के दौरान प्रदेश में इसका व्यापक विरोध हुआ था। युवाओं ने सड़कों पर उतरकर सेना में भर्ती के इस नए तरीके का विरोध किया था। ऐसे में विपक्षी दलों को उम्मीद है कि वह प्रदेश के लोगों में अग्निवीर के प्रति निराशा को वोट में तब्दील कर पाने में कामयाब होंगे लिहाजा विपक्षी प्रत्याशियों ने अपने प्रचार, चुनावी भाषण में अग्निवीर को प्रमुखता से शामिल किया है।
2014 से लेकर 2020 तक हुई सेना भर्ती रैलियों में उत्तराखंड से 20,323 सैनिकों की भर्ती हुई। इस दौरान पूरे देश भर में हुई फौज भर्ती अभियानों में कुल 363587 युवाओं को सेना में भर्ती किया गया जिसमें से उत्तराखंड के युवाओं की हिस्सेदारी साढ़े पांच फीसदी से भी ज्यादा रही। अग्निवीर योजना से पहले हर साल औसतन 80 हजार पदों पर सेना की भर्ती हुआ करती थी लेकिन अग्निवीर योजना के बाद इसमें पचास फीसदी तक की कटौती कर दी है। 17 वर्ष से 21 वर्ष तक के युवाओं को सिर्फ 4 साल के लिए भर्ती किया जा रहा है जिसमें से 75 फीसदी को चार साल में घर भेज दिया जाएगा जबकि 25 फीसदी को अगले 15 वर्षों तक के लिए रखने पर विचार किया जाएगा। यानि अब तक इस हिसाब से अग्निवीर योजना से पहले उत्तराखंड से सालाना करीब 4 हजार युवाओं को फौज में भर्ती होने का मौका मिलता था लेकिन अग्निवीर योजना के बाद अब 2 हजार से भी कम युवाओं को ही यह मौका मिल पा रहा है जबकि इसमें से 1500 के करीब युवा चार साल में ही रिटायर हो जाएंगे। लिहाजा युवाओं में इस योजना को लेकर गुस्सा होना जायज है। हालांकि, अग्निवीर योजना के शुरू होने के दौरान सरकार के दावा किया था कि जिन युवाओं को 4 साल की सेवा के बाद हटा दिया जाएगा उन्हें पूर्व सैनिक के तौर पर अन्य रोजगार उपलब्ध करवाया जाएगा। लेकिन, पूर्व सैनिकों को रोजगार देने की हकीकत कुछ और ही बंया करती है।
पुनर्वास महानिदेशालय (डीजीआर) की जून-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार में पूर्व सैनिकों के 8.10 लाख पद हैं। इनमें से केंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों के 7.70 लाख पद (95 फीसदी) खाली रखे हुए हैं। जब पहले ही पूर्व सैनिकों को नौकरी देने में सरकार कंजूसी बरत रही है ऐसे में सवाल उठता है चार साल की नौकरी के बाद हटाए गए अग्निवीर जब पूर्व सैनिक के तौर पर नौकरियों की कतार में शामिल होंगे तो फिर उनके लिए कैसे मौके उपलब्ध करवाए जा सकेंगे।