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दक्षिणपंथी भाजपा के लिए दक्षिण के दरवाजे बंद हो गए हैं ?

दक्षिणपंथी भाजपा के लिए दक्षिण के दरवाजे बंद हो गए हैं ?
-दक्षिण में कर्नाटक ही एक राज्य था जहां भाजपा की मौजूदगी रही
-दक्षिण के अन्य राज्यों में भाजपा की स्थिति ? कर्नाटक चुनाव नतीजों का देश की राजनीतिक पर क्या असर पड़ेगा ?

PEN POINNT , DEHRADUN : कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद साफ हो गया है कि घोर दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी और उसके शीर्ष नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आक्रामक राजनीति के लिए दक्षिण ने फिलहाल दरवाजे बंद कर दिए हैं। इसके बाद अगले साल देश में होने वाले आम चुनाव से पहले देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनावों तक देश की राजनींति में विपक्ष के तौर पर कांग्रेस की राज्यों की राजनीति में जीत का यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ेगा या फिर नरेंद्र मोदी की परम्परागत सियासी शैली यहाँ कांग्रेस की राह में रोड़ा बनी रहेगी। या ये कहा जाए कि धीरे धीरे क्या मोदी की लोकप्रियता देशभर में कम हो रही है। ये मानना अभी बेहद कठिन है कि हिंदी राज्यों में बीजेपी को हराने में कांग्रेस पूरी तरह सक्षम हो गई है ? यहाँ कांग्रेस के सामने अपनी बहुत सारी चुनौतियाँ है।

जाहिर सी बात है कि बीजेपी पिछले नौ सालों से केंद्र की सत्ता में है और कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यहाँ तक कि वे धार्मिक ऐंगल से भी पूरी तरह सियासत को गरमाये रखे रहे। यहाँ तक कि बजरंगबली के नाम का सहारा लेते हुए भी दिखाई दिए। लेकिन बावजूद इसके दक्षिण के इस बड़े राज्य में मोदी की यह कोशिश रंग नहीं जमा पाई।

-दक्षिण के अन्य राज्यों में भाजपा की स्थिति

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ ही उसका दावा मज़बूत हुआ है कि अगले साल लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी खेमे का नेतृत्व वही कर सकता है। 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस को 135 बीजेपी को 66 जेडीएस को 19 तो वहीं 4 सीटें निर्दलीयों को मिली हैं।

दक्षिण के तीसरे बड़े राज्य आंध्र प्रदेश में विधानसभा की 175 सीटें हैं वहां भी बीजेपी के लिए अभी सत्ता तक पहुँचना दूर की कौड़ी है। वर्तमान में आँध्र प्रदेश में मुख्य दल वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, तेलुगु देशम पार्टी और जन सेना पार्टी हैं। राज्य में कम उपस्थिति वाले अन्य दलों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और वाम दल शामिल हैं। वाईएस जगन मोहन रेड्डी वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। हालाँकि वाईएसआर कांग्रेस के साथ बीजेपी ने नजदीकियां कुछ हद तक बढ़ाई हैं।

दक्षिण के सबसे बड़े राज्य तमिल नाडु विधानसभा में कुल 234 विधानसभा क्षेत्र हैं। तमिल नाडु विधानसभा का पिछला चुनाव मई 2021 में हुआ था। जिसमें डीएमके को 134 सीटें और एडीएमके को 65 सीटें हासिल हुई, जबकि 35 सीटें अन्य दलों के खाते में गयीं। यहाँ भी बीजेपी के महज तीन विधायक हैं। जिनमें नागरकोइल से एम. आर. गांधी, तिरुनेलवेली नैमार से नागेंद्रन, मोडाक्कुरिचि क्षेत्र से सी.के सरस्वती विधायक है। जबकि देश की प्रमुख विपक्षी कांग्रेस के तमिलनाडु में 18 विधायक हैं।

केरल विधानसभ में 140 सीट हैं और और यहाँ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी वामपंथी राजनीतिक दलों की गठबंधन की सरकार है। यहाँ भी बीजेपी के लिए खास जगह नहीं दिखती। हालाँकि यहाँ कांग्रेस की स्थिति भी कोई खास नहीं है। लेकिन गठबंधन के तहत उसको सहयोगी दलों का साथ राष्ट्रीय स्तर पर मिलता रहा है।

दक्षिण के राज्य तेलंगाना में विधानसभा की 119 सीटें हैं। टीआरएस सबसे बड़ा सियासी दल है। जो मौजूदा वक्त में 88 सीट के साथ सत्ता में काबिज है। केसीआर दूसरी बार तेलंगाना के मुख्यमंत्री हैं। बीजेपी और मोदी के आलोचक विरोधियों में शामिल हैं । यहाँ कांग्रेस के 19 विधायक हैं। वहीँ बीजेपी का एक मात्रा विधयक दक्षिण के इस राज्य में है। कांग्रेस की स्थिति बीजेपी से ज्यादा बेहतर मानी जा सकती है।

इस तरह से देखा जाए तो दक्षिण भारत के एकमात्र राज्य कर्नाटक में बीजेपी के पांव बेहद मजबूत स्थित में थे। लेकिन अब उसने वहां भी अपनी सियासी जमीन को काफी हद तक खो दिया है। क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसको 121 सीटें हासिल हुई थी, जबकि अब वह महज 66 सीटों पर आकर सिमट कर रह गयी है।

अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले कई और राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। इन राज्यों में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है एमपी में बीजेपी की सरकार है। वहीँ छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इसी साल नवंबर महीने में चुनाव होने हैं। इसके अलावा राजस्थान में दिसंबर में चुनाव होना है। हालाँकि राजस्था और मध्यप्रदेश में दोनों पार्टियों की हालत स्थानीय तौर पर एक जैसी है। इन दोनों ही राज्यों में पार्टी भरी अंतर विरोध से जूझ रही है।

इसके अलावा मिज़ो नेशनल फ्रंट शासित मिज़ोरम में नवबंर में चुनाव है और तेलंगाना राष्ट्र समिति से भारत राष्ट्र समिति बनाने वाले के चंद्रशेखर राव शासित तेलंगाना में दिसंबर में चुनाव होना है। वहीँ ठीक लोकसभा चुनाव से पहले या उसी के साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इन राज्यों में अगले साल अप्रैल में चुनाव हैं और लोकसभा चुनाव मई महीने में हैं।

बीजेपी के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक की हार किसी भी लिहाज से अच्छा संकेत नहीं मणि जा सकती है। हिन्दी पट्टी के राज्यों में बीजेपी अभी भी बहुतायत में बढ़त बनाए हुए है। लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का रुझान ज्यादातर बीजेपी के पक्ष में देखा जाता रहा है। लेकिन दक्षिण के राज्यों आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के रुख में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों से ये स्पष्ट नहीं कह सकते कि लोक सभा चुनाव में नतीजी कांग्रेस के ही पक्ष में ज्यादा आ सकते हैं। साल 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 224 विधानसभा सीटों में 40 पर सिमटकर रह गई थी लेकिन 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को प्रदेश में 28 सीटों में से 17 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 28 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। विधानसभा और लोकसभा चुनाव का पैटर्न यहाँ अलग अलग देखने में आया है।

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार ?

एक न्यूज़ चौनल में डिवेट के दौरान वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा के चुनावी नतीजे के आधार पर बीजेपी और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को कमतर आँकना थोड़ा जल्दबाजी होगी। आने वाले विधानसभा चुनाव नतीजों का अभी इन्तजार करना होगा। तब कुछ हद तक तस्वीर साफ़ हो पाएगी।

वहीं कर्नाटक और दक्षिण की राजनीतिक को बारीकी से समझने वाले सियासी विश्लेषक रामा शेषन कहती हैं, कर्नाटक चुनाव के दौरान मोदी ने चुनावी कैंपेन के आख़िर में बजरंगबली के नाम पर वोट मांगना शुरू किया। कई रोड शो किए लेकिन उनकी अपील काम नहीं आई। बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटाकर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया और यह भी उलटा पड़ा। यही गलती पहले आडवाणी ने की थी तब भी बीजेपी को यही स्थति देखने मिली थी।
ये बात उन्होंने एक मीडिया समूह से चुनावी चर्चा के दौरान कही वे स्पष्ट कहती हैं, कि भले कर्नाटक चुनाव के नतीजे से अगले साल आम चुनाव का आकलन नहीं कर सकते लेकिन यह तो तथ्य है कि कर्नाटक की जनता ने मोदी की हर अपील ठुकरा दी।

जानकारी मान रहे हैं कि बीजेपी के लिए यह सबक़ है कि वह प्रदेश के स्थानीय नेताओं को ख़ारिज कर लंबे समय तक चुनाव नहीं जीत सकती है। बीजेपी सभी प्रदेश को हरियाणा और उत्तराखंड की तरह नहीं हाँक सकती है। क्योंकि स्थानीय नेताओं के साथ स्थानीय मुद्दे और राज्य के लोगों की व्यवहारिक जरूरतें जुड़ी हुई होती हैं।

चुनावी सर्वेक्षक और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने एक समाचार पत्र के राजनीतिक कॉलम में चुनाव नतीजे आने से पहले ही लिखा था , कर्नाटक के चुनावी नतीजे के बाद उत्साहित कांग्रेसी बीजेपी के अंत की घोषणा कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कह भी दिया है कि दक्षिण भारत बीजेपी मुक्त हो गया है।

यादव का मानना है कि इस इन नतीजों का मनोवैज्ञानिक असर होगा। कांग्रेस की जीत यह संदेश दे रही है कि बीजेपी को भी हराया जा सकता है। मोठे तौर पर उनका मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद बना माहौल आगे भी ज़िंदा रहेगा। कर्नाटक के चुनावी नतीजे के बाद 2024 के आम चुनाव का मैदान खुला गया है। कांग्रेस की जीत यह भी बता रही है कि सांप्रदायिकता चुनाव जीतने की गांरटी नहीं है।

रामचंद्र गुहा, जाने-माने राजनीति कॉलमिस्ट और इतिहासकार- कर्नाटक ने बीजेपी को अपमानजनक हार दी है और यह कर्नाटक की स्थानीय बीजेपी से ज़्यादा निजी तौर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की हार है। गुहा ने ये बात सीनियर जर्नलिस्ट करण थापर को दिए वीडियो इंटरव्यू में कही। स्पष्ट तौर पर कहा कौन इंकार कर देगा कि कर्नाटक में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को चेहरा नहीं बनाया था। वहां स्थानीय नेतृत्व को दरकिनार रखा गया। यह चुनावी विज्ञापनों में इसे साफ़ तौर पर देखा गया। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान के विज्ञापनों में गांधी परिवार कहीं दिखाई नहीं दिया। राज्य की राजनीति के धुरंधर पार्टी के दोनों नेता डीके शिवकुमार और सिद्धरमैया बिल्कुल फ्रंटफुट पर खेल रहे थे। नरेंद्र मोदी ने अपनी पर्सनालिटी और करिश्मा दिखाने का भरसक प्रयास किया लेकिन कर्नाटक के लोगों ने उन्हें पूरी तरह ख़ारिज कर दिया।

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