औली पर संशय : एक दशक में तीसरी बार रद्द हुए शीतकालीन खेल
-औली बुग्याल में एक दशक में इंटरनेशनल स्की फेडरेशन के अंतरराष्ट्रीय आयोजन को कम बर्फवारी के चलते करना पड़ा रद, फरवरी के पहले हफ्ते में प्रस्तावित था आयोजन
– इस बार कम बर्फ के साथ ही औली रोपवे में धंसाव भी बना कारण, राज्य बनने के बाद अन्य बुग्यालों को शीतकालीन खेलों के केंद्र के तौर पर विकसित नहीं कर सकी सरकार
पंकज कुशवाल, देहरादून। औली बुग्याल में एक दशक में तीसरी बार इंटरनेशल स्की फेडरेशन की ओर से आयोजित होने वाली दुनिया की सबसे बड़े स्नो गेम्स का आयोजन फिर से रद्द कर दिया गया है। पिछले दस सालों के दौरान औली में अपेक्षा से बेहद कम बर्फवारी के चलते रद हुआ यह आयोजन इस बार कम बर्फवारी के साथ ही जोशीमठ आपदा के चलते रोपवे पर मंडरा रहे खतरे के चलते राज्य सरकार ने इस बेहद खास आयोजन से हाथ पीछे खींच लिए है। इस आयोजन के तीसरी बार रद्द होने से सरकार की योजनाओं और राज्य के अन्य बेहतर संभावनाओं वाले बुग्यालों की उपेक्षा पर भी सवाल उठने लगे हैं।
विंटर गेम्स के लिए रोपवे से जुड़ा
करीब तीन दशक पहले तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने औली को शीतकालीन खेलों का प्रमुख केंद्र बनाने के लिए विशेष योजना के तहत औली को रोपवे से जोड़ा था। इसके बाद से यहां शीतकालीन खेलों के आयोजन तो नहीं हो सके लेकिन औली बर्फवारी के दौरान पर्यटकों के पहुंचने की तादात में बढ़ोत्तरी होने लगी। राज्य गठन के बाद सरकार ने भी औली पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया लेकिन स्नो लाइन के पीछे खिसकने और बढ़ते तापमान का असर औली पर भी पड़ने लगा। साल 2010 के बाद औली में बर्फवारी में भारी कमी दर्ज होती रही। इसके बावजूद साल 2012 में औली में पहली बार इंटरनेशन स्की फेडरेशन ने स्नो रेस का आयोजन करने का फैसला किया। राज्य सरकार ने इसके लिए तैयारियां भी शुरू की लेकिन फरवरी तक यहां पर्याप्त बर्फवारी नहीं हुई। सरकार को इसकी आशंका थी तो साल 2011 में कृत्रिम बर्फ निर्माण की मशीन साढ़े छह करोड़ रूपये की लागत से खरीदी गई लेकिन मशीन यहां पहुंचते ही खराब हो गई लिहाजा अगले साल 2012 में आयोजित होने वाला आयोजन रद करना पड़ा।
कम बर्फबारी के साथ आपदा बनी वजह
इसके पांच साल बाद साल 2017 में औली को फीस की ओर से एक बार स्की रेस की मेजबानी का मौका मिला। लेकिन बर्फवारी कम होने के साथ ही खराब पड़ी मशीन को सरकार दुरस्त नहीं करवा पाई लिहाजा इस बार भी आयोजकों को हाथ पीछे खींचने पड़े। अब इस फरवरी के पहले सप्ताह में इस आयोजन को होना था, विदेशों से खिलाड़ी भी तैयारी कर बैठे थे लेकिन इस बार औली में इस आयोजन पर कम बर्फ के साथ ही जोशीमठ भू धंसाव के कारण रोपवे में मंडरा रहे खतरे को देखते हुए सरकार ने इसे रद करने में भी समझदारी समझी।
औली से बेपनाह इश्क या बाकी बुग्यालों से बेरूखी
औली बुग्याल, समुद्रतल से करीब 9000 फीट की उंचाई पर 4 किमी क्षेत्रफल में फैला यह बुग्याल राज्य का इकलौता बुग्याल है जहां तक पहुंचने के लिए रोपवे की सुविधा के साथ ही मोटर मार्ग की पहुंच भी है। उत्तर प्रदेश के दौर में औली को शीतकालीन खेलों के विकसित करने के उद्देश्य से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने औली को जोशीमठ से औली तक करीब सवा चार किमी लंबे इस रोपवे का निर्माण 1993 में किया था। उद्देश्य था कि इसे गुलमर्ग की तर्ज पर शीतकालीन खेलों, स्कीईंग का प्रमुख केंद्र बनाना था। इसके साथ ही राज्य के अन्य बुग्यालों को भी शीतकालीन खेलों के केंद्र के तौर पर विकसित करने की मांग उठने लगी। इसी बीच राज्य निर्माण आंदोलन के चलते पूरे पहाड़ का ध्यान अलग राज्य की मांग पर केंद्रित हो गया, उम्मीद थी कि नया राज्य बनने के बाद औली जैसी संभावनाएं वाले अन्य बुग्यालों को भी औली की तर्ज पर विकसित किया जाएगा।
राज्य गठन को 23 साल हो चुके हैं और औली रोपवे के निर्माण को पूरे 30 साल, लेकिन इन तीन दशकों में राज्य सरकार औली के अलावा राज्य के किसी अन्य बुग्याल को शीतकालीन खेलों केंद्र के तौर पर विकसित नहीं कर सकी है। उत्तरकाशी का दयारा बुग्याल समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर 28 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ बुग्याल है यहां औली से कई गुना ज्यादा बर्फ गिरती है तो इस बुग्याल के स्लोप को शीतकालीन खेलों के लिए आदर्श माना जाता रहा। राज्य बनने के बाद तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने दयारा बुग्याल के आधार शिविर गांवों में पर्यटकों के लिए मूलभूत ढांचे के निर्माण की दिशा में कदम तो बढ़ाए लेकिन रोपवे निर्माण का प्रस्ताव लटका रहा। यहां अब तक भी रोपवे का निर्माण नहीं हो सका। वहीं, समुद्रतल से करीब 12 हजार फीट और 100 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्रफल में फैला गिडारा बुग्याल, कुशकल्याण बुग्याल, आली वेदनी बुग्याल, जौराई बुग्याल समेत उत्तराखंड में दो दर्जन से अधिक ऐसे बुग्याल है जो शीतकालीन खेलों के लिए औली से बेहतर संभावनाएं समेटे है लेकिन राज्य बनने के ढाई दशक के दौरान सरकार एक भी बुग्याल को इस तर्ज पर विकसित नहीं कर सकी।