बुद्धा टेंपल : दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप है देहरादून मे!
आज बुद्ध पुर्णिमा है। आज ही के दिन गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसके बाद उन्होंने गया से सारनाथ पहुंचकर पहला उपदेश भी आज ही के दिन दिया था। इसीलिए बुद्ध पूर्णिमा का बौद्ध धर्म में खास महत्व है, वहीं हिंदू धर्म में भी इस दिन को गुरू पुर्णिमा के रूप में मनाए जाने की परंपरा है। बुद्ध पुर्णिमा पर जानिए देहरादून के अनूठे बौद्ध स्मारक के बारे में-
PEN POINT DEHRADUN: अगर आप देहरादून में हैं तो क्लेमेन्टाउन स्थित बौद्ध मंदिर में जरूर जाएं। मेन गेट से अंदर प्रवेश करते की दायीं ओर दो दर्जन धर्मचक्रों की कतार है। जिन्हें दाहिने हाथों से घुमाते हुए श्रद्धालु आगे बढ़तें हैं। सुबह का समय है तो भिक्षुओं का ‘ओम मणि पद्मे होम’ का जाप भी सुनाई देगा। धर्मचक्र की कतार वाली गैलरी को पार करते ही सामने विशालकाय बौद्ध स्तूप दिखता है। जिसकी उंचाई 185 वर्ग फुट और चौड़ाई 100 फुट है।
यह दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप माना जाता है। जो तिब्बती स्थापत्य कला का शानदार नमूना है। इसके चारों ओर करीब दो एकड़ का खूबसूरत मैदान व गार्डन है। इसका निर्माण विश्व शांति की कामना के साथ 28 अक्टूबर 2000 में किया गया। कुछ समय पहले तक बिहार के केसरिया में उत्खनन में निकले स्तूप को दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप माना जाता थ। जिसकी उंचाई 70 फीट थी।
यह मैंड्रोलिन मठ के रूप में भी जाना जाता है। इसके निर्माण के पीछे मकसद कि यह चार तिब्बती धर्म विद्यालयों में से एक होगा और इसे निंगमा नाम दिया गया। अन्य तीन विद्यालय शाक्य, काजूयू और गेलुक हैं, जिनका बौद्ध धर्म में बड़ा महत्व है। हालांकि मौजूदा बड़े स्वरूप से पहले ही बौद्ध मंदिर यहां मौजूद था। जिसकी स्थापना 1965 में बौद्ध भिक्षु कोहने रिनपोछे ने की थी।इस बौद्ध स्तूप में हर रोज बड़ी तादाद में स्थानीय, देशी और विदेशी पर्यटक पहुंते हैं। जिसमें भगवान बुद्ध और गुरू पद्मसंभव की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की गई हैं। पहले तीन फ़लोर में लार्ड बुद्धा की सरूप पेंटिंग्स हैं, जिसमें बुद्ध के जीवन के बारे में बताया गया है। तीन मंदिरों पर अलंकृत सजावट के बाद चौथी मंजिल पर व्यू प्वाइंट पर पहुंच सकते हैं। जहां से पूरी दून घाटी का विंहगम यानी 360 डिग्री दृश्य दिखता है।
कहा जाता है कि मंदिर की पेंटिंग में करीब पचास कलाकारों ने अपना हुनर दिखाया है। इस काम में करीब तीन साल का समय लगा और गोल्ड पेंट ऐसा कि जिसकी दमक अभी तक नहीं गई है।
इस बौद्ध मंदिर में हर साल पांच सौ से ज्यादा लामा शिक्षा प्राप्त करने आते हैं। मंदिर परिसर में ही उनके रहन सहन के लिए छात्रावास, भोजन व अन्य सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं।
बौद्ध स्तूप के बगल में ही 103 फीट उंची बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी है। जो यहां पहुंचने वाले हर पर्यटक को आकर्षित करती है। यह प्रतिमा कुछ साल पहले ही बनकर तैयार हुई, जो अब इस परिसर का मुख्य आकर्षण भी बन गई है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक अन्य पर्यटक स्थलों के उलट शांत रहते हैं और किसी तरह का हो हल्ला यहां नजर नहीं आता। कहा जाता सकता है कि बौद्ध मंदिर में पहुचकर मन और शरीर दोनों को आराम पहुंचता है। परिसर में कई दुकानें, रेस्तरां और एक किताबों की दुकान भी हैं। यहां तिब्बती कल्चर से जुड़ी उनका पहनावा, खाना, वास्तुकला और हस्तकला से जुड़ी चींजे खरीदी जा सकती हैं।