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बजट : सिर्फ वेतन, भत्ते, पेंशन देने पर खर्च हो रहा राज्य का आधा से ज्यादा बजट

सरकार के सामने विकास योजनाओं के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने की चुनौती, कर्ज भी तय सीमा के पार पहुंचा
PEN POINT, DEHRADUN :
मार्च महीने में राज्य सरकार 2023-24 का बजट गैरसेंण विधान सभा भवन में पेश करेगी। राज्य के खजाने पर सरकारी कर्मियों के वेतन भत्तों, पेंशन पर होने वाले खर्चें भारी पड़ने लगे हैं, वेतन भत्तों पेंशन पर होने वाला खर्च राज्य के बजट के 60 फीसदी के करीब पहुंच गया है। ऐसे में राज्य के विकास कार्यों के लिए अब धन जुटाना सरकार के लिए चुनौती बन गया है। वहीं, कर्ज के सहारे कर्मचारियों को वेतन भत्ते बांट रही सरकार के लिए अब बाजार कर्ज जुटाना भी आसान नहीं रह गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार मार्च महीने के दूसरे सप्ताह में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में राज्य का बजट पेश करेगी। पिछले साल 66 हजार करोड़ रूपये के बजट के मुकाबले इस साल बजट का आकार 80 हजार करोड़ रूपये तक का हो सकता है। लेकिन, राज्य सरकार के लिए कर्मियों के वेतन, भत्ते, पेंशन पर बढ़ रहे खर्चे के चलते विकास कार्यों के लिए पैसा जुटाना बड़ी मुसीबत बन गया है। यहां तक कि हर महीने कर्मचारियों के वेतन भत्तों पेंशन के लिए बाजार से ऋण जुटाना पड़ रहा है। आलम यह है कि बजट का 60 फीसदी तक का हिस्सा सिर्फ वेतन भत्तों और पेंशन जैसे खर्चों में ही निपट रहा है। ऐसे में विकास कार्यों के नाम पर बाजार से जुटाया जा रहा ऋण भी वेतन भत्तों में ही खर्च होने लगा है। उत्तराखंड की हालत फिलहाल आमदनी दस पैसा खर्चा रूपया जैसी हो चुकी है। बाजार से जुटाए जाने वाले ऋण का आंकड़ा भी एक लाख करोड़ रूपये पार पहुंच गया है।
राज्य कर्मचारियों के वेतन पर खर्च करने के मामले में राष्ट्रीय औसत से भी कई गुना आगे बढ़ चुका है। राज्य में कर्मचारियों के वेतन पर ही  खर्च की हिस्सेदारी अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से दोगुनी है। जबकि, राष्ट्रीय औसत से 10 फीसदी ज्यादा। पड़ोसी उत्तरप्रदेश में वेतन खर्च की बजट में हिस्सेदारी लगभग 16 फीसद है। देश भर में राज्यों के बजट का वेतन पर खर्च का औसत 22 फीसदी है।  जबकि उत्तराखंड में यह बढ़कर 32 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। वर्ष 2010-11 से लेकर अब तक दस वर्षों में कर्मचारियों के वेतन-भत्तों पर खर्च 4966 करोड़ से बढ़कर 15 हजार करोड़ को पार कर चुका है।

पांच साल में 77 हजार करोड़ रूपये का ऋण लेकर चलाया राज्य
2017 से लेकर अब तक भाजपा सरकार ने 77 हजार करोड़ रूपये से अधिक का ऋण लेकर राज्य की गाड़ी चला रही है। वेतन भत्तों, पेंशन पर बढ़ रहे खर्चे और आमदनी के सिमटते विकल्पों के चलते राज्य सरकार के सामने ऋण लेने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं रह जाता है। 2017 को भाजपा ने भारी बहुमत से सत्ता संभाली तो तब तक राज्य पर 44 हजार करोड़ रूपये के करीब का ऋण था। लेकिन, भाजपा सरकार के पांच सालों के पूर्व कार्यकाल और साल भर के नए कार्यकाल में राज्य की गाड़ी चलाने के लिए 77 हजार करोड़ रूपये से अधिक का ऋण लेना पड़ा। आलम यह हो चुका है राज्य पर कुल कर्ज का आकार सवा लाख करोड़ रूपये के करीब पहुंच चुका है।

राष्ट्रीय औसत से ज्यादा ऋण, अधिनियम में संशोधन कर ऋण लेने की सीमा बढ़ाई
राज्यों को कर्ज के जाल में फंसने से बचाने के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के तहत जीएसडीपी के आकार के 25 फीसदी तक ऋण लेने की व्यवस्था की गई है। जिससे आर्थिक संतुलन बिगड न जाए। लेकिन, उत्तराखंड राज्य में इसमें अपवाद है। लगातार बढ़ रहे खर्चों को पूरा करने के लिए ऋण लेने की क्षमता बढ़ाकर राज्य ने राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 25 फीसदी से बढ़ाकर 32 फीसदी कर दिया। जिससे ज्यादा कर्ज लिया जा सके। इसके लिए कोरोना संकट के दौरान राज्य ने केंद्र सरकार से गुहार लगाई थी कि घरेलू सकल उत्पाद के मुकाबले ऋण सीमा को राज्य हित में बढ़ाकर 32 फीसदी की अनुमति दी जाए।

नई नौकरियों की बहार तो बढ़ेगा खर्च का बुखार
प्रदेश में विभिन्न विभागों में फिलहाल हजारों नियुक्ति प्रक्रिया वर्तमान में गतिमान है। ऐसे में राज्य को पेंशन भत्तों में अपने खर्च को फिर से बढ़ाना पड़ सकता है। राज्य में बीते सालों से करीब 5 हजार से अधिक पदों पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है। जिसमें कुछ भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है तो कुछ पेपर लीक, नकल, अनियमितताओं के चलते लंबित है। ऐसे में सभी भर्तियों के पूरा हो जाने के बाद सरकार को बजट में वेतन भत्तों पर अपना खर्च भी ज्यादा बढ़ाना होगा।

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