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ज्वलंत मुद्दा: चुनाव में कितनी असरदार होगी समान नागरिक संहिता?

Pen Point, Dehradun : इसी साल 13 मार्च को उत्तराखंड सरकार में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता लागू हुई। लंबे समय से चल रही इस कावयद को भाजपा के प्रमुख चुनावी हथियार के रूप में देखा जा रहा था। माना जा रहा था कि भाजपा ने उत्तराखंड जैसे छोटे और हिंदु बहुल राज्य में इसे प्रयोग के तौर पर आजमाया है। जिससे पूरे देश में समान नागरिक संहिता के लागू करने के लिये माहौल बनाया जा सके। उत्तराखंड मे इस बार के लोकसभा चुनाव प्रचार में भाजपा यूसीसी को अपनी उपलब्धियों में गिना रही है। हालांकि विपक्षी दलों की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही है। जबकि कानून लागू किये जाने के दौरान इसे लेकर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आई थी।

दरअसल 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में यूसीसी भी शामिल था। सरकार बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित एक समिति की ओर से दो साल की मशक्क्त के बाद एक एक मसौदा पेश किया गया। जिसके आधार पर उत्तराखंड सरकार ने 7 फरवरी 2024 को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पारित किया। उसके बाद इसे 13 मार्च 2024 को भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और उत्तराखंड स्वतंत्र भारत में यह कानून लागू करने वाला पहला राज्य बन गया।

विधेयक को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी को महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव को खत्म करने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा स्वतंत्र भारत में ऐसा विधेयक पारित करने वाली पहली विधायिका बन गई है, जिसने अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर सभी समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत और लिव-इन संबंधों पर समान नियम लागू किए हैं। उन्होंने आगे कहा कि यूसीसी विवाह, भरण-पोषण, विरासत और तलाक जैसे मामलों में बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी व्यक्तियों के लिए समानता सुनिश्चित करेगा।

उत्तराखंड में लागू किये गए यूसीसी को लेकर भाजपा प्रत्याशी और उसके प्रचारक भी यही बातें कर रहे हैं। राम मंदिर निर्माण, किसान निधि और मोदी की गारण्टी के साथ उत्तराखंड में यूसीसी सरकार की उपलब्धियों की फेहरिस्त में है। हालांकि कांग्रेस और विपक्ष के अन्य प्रत्याशी यूसीसी के पक्ष या विपक्ष में साफ तौर पर कुछ नहीं कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस मुद्दे की विपक्ष की ओर से जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। जाहिर है कि उसे इससे राजनीतिक नुकसान का अंदेशा हो चला है।

लेकिन कानून लागू होने के दौरान विपक्ष की ओर से इस पर खूब प्रतिक्रियाएं आई थी। अधिकांश राजनीतिक दलों ने राज्य में इसका विरोध भी किया था। विधानसभा में विधेयक पारित होने के दौरान खटीमा से कांग्रेस विधायक भुवन कापड़ी ने कहा था कि यूसीसी को महिलाओं के अधिकारों के मुद्दे के रूप में पेश करना भाजपा का पाखंड है, जबकि उनका दावा है कि वास्तव में यह महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है, तो राज्य पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर इसे कैसे खत्म कर सकता है?

यूसीसी के दायरे से अनुसूचित जनजातियों को बाहर रखने और मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। विधानसभा में ही लक्सर निर्वाचन क्षेत्र से बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने विधेयक को लाने की प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण बताया था। उनके मुताबिक सदन में भाजपा के भारी बहुमत के कारण विधेयक को विस्तृत चर्चा के बिना विधानसभा में पारित कर दिया गया। इसके अलावा उन्होंने सरकार द्वारा इद्दत पर नियम लागू करने पर सवाल उठाया, जो विवाह विच्छेद के बाद की कूलिंग ऑफ अवधि है, जिसके दौरान महिलाएं पुनर्विवाह नहीं कर सकती हैं, जैसा कि इस्लाम में शरिया के अनुसार आवश्यक है।

न्यूज वेबसाइट फ्रंटलाइन में प्रकाशित एक लेख में दैनिक नैनीताल समाचार के प्रधान संपादक राजीव लोचन शाह का मानना ​​है कि स्थानीय समाचारों में पिछले कुछ वर्षों में लव जिहाद से संबंधित फर्जी खबरों में अचानक वृद्धि हुई है। फिर भी, लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण की कानूनी आवश्यकता के लिए कोई सार्वजनिक मांग नहीं थी। इसका परिचय पूरी तरह से राजनीतिक है. यूसीसी उन बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं करता जिनका सामना उत्तराखंड करता है।

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