चल पड़े जिधर दो डग : जब नमक के हक के लिए गांधी के पीछे चल पड़ा पूरा भारत
-ऐतिहासिक दांडी मार्च शुरू होने की 93वीं वर्षगांठ, गांधी जी की जिद के आगे झुकना पड़ा था अंग्रेजों को
PEN POINT DEHRADU। 12 मार्च 1930 का दिन था, अहमदाबाद में महात्मा गांधी दो थैलियों को लेकर अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ अपने ऐतिहासिक सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू करने को तैयार थे। उन्हें पता था कि अंग्रेज उन्हें जेल डालने का बहाना ढूंढ रहे हैं और वह नमक बनाने पर लगे दोगुने कर और नमक बनाने पर लगी रोक के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने का फैसला ले चुके थे। एक थैली में यात्रा के कपड़े थे तो दूसरी थैली में जेल का सामान। यह ऐतिहासिक यात्रा आखिरकार शुरू हुई और 270 मील लंबी इस यात्रा ने भारतीयों को फिर से नमक बनाने का हक तो दे ही दिया साथ ही नमक की उस लड़ाई ने अंग्रेजी शासन की नींव भी कमजोर कर दी।
नमक बनाने का हक छीन लिया था
1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छीनकर सीधे अपने हाथ में ले लिया। 1882 में ब्रिटिश सरकार ने इंडियन सॉल्ट एक्ट बनाकर नमक बनाने, उसके ट्रांसपोर्टेशन और कारोबार पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। इस कानून के लागू होते ही अब समुद्र तटीय इलाकों में पुश्तैनी रूप से नमक बनाने का काम करने वाले भारतीय मूल के लोगों पर नमक बनाने पर 6 महीने की जेल, संपत्ति जब्त और भारी जुर्माना लगाया जाता था। बॉम्बे सॉल्ट एक्ट की धारा 39 के मुताबिक नमक पर टैक्स वसूलने वाले अधिकारी किसी घर या परिसर में घुसकर तलाशी ले सकते थे। मतलब ये कि नमक सिर्फ सरकारी डिपो में ही बनाया जा सकता था।
इस कानून के ठीक 40 साल बाद ब्रिटिश सरकार ने नमक पर टैक्स की दर को बढ़ाकर दोगुना कर दिया। नवंबर 1922 को बासिल ब्लैकेट ब्रिटिश भारत में वित्त सदस्य नियुक्त हुए, उनकी सिफारिश पर नमक पर कर की रकम दोगुनी कर दी गई। हालांकि तब भारत की विधानसभा ने इस प्रस्ताव को नकार दिया, लेकिन वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने स्पेशल पावर का इस्तेमाल कर इस विधेयक को पास कर दिया।
नमक की कीमत से बारह गुने ज्यादा टैक्स
1922 के दौर में भारत में नमक के एक मन की कीमत करीब 10 पैसे हुआ करती थी। एक मन यानि 40 किलो नमक पर अंग्रेजी हुकूमत ने 20 आने का टैक्स थोप दिया।
आठ साल बाद महात्मा गांधी ने इस काले कानून के खिलाफ निकाला मार्च
नमक बनाने पर भारतीय मूल के लोगों को कठोर सजा, नमक पर दोगुना कर के चलते पारंपरिक रूप से नमक बनाने का काम करने वाले परिवारों पर यह कानून कहर बनकर बरपा था।
नमक को जीवन की बुनियादी जरूरत मानते हुए महात्मा गांधी ने आज के ही दिन 12 मार्च 1930 को 78 अन्य सहयोगियों के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी के लिए यात्रा शुरू की। इस ऐतिहासिक दांडी मार्च में शामिल प्रत्येक सहयात्री को महात्मा गांधी ने खुद इंटरव्यू लेकर चुना था। 25 साल तक के उम्र के यह सहयात्री देश के अलग अलग प्रांतों से थे, कहा जाए तो यह पूरे भारत का प्रतिनिधित्व था।
पटेल और नेहरू नहीं थे तैयार, लेकिन बापू ने उठा लिया था झोला
गांधीजी ने जब नमक सत्याग्रह का फैसला किया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल समेत कांग्रेस के बड़े नेता इस मार्च के पक्ष में नहीं थे। ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं का मानना था कि अंग्रेजी सरकार आजादी के आंदोलन को कमजोर करने के लिए महात्मा गांधी को फिर से जेल में डालने का मौका तलाश रही है और सविनय अवज्ञा आंदोलन अंग्रेजों को वह मौका हाथ में लाकर देगा। लेकिन, महात्मा गांधी मानने वाले नहीं थे। आखिरकार नेहरू व पटेल को गांधी के सामने झुकना ही पड़ा।
आखिर अंग्रेजों को झुकना पड़ा
गांधी-इरविन समझौते से समुद्र किनारे वालों को मिला नमक बनाने का हक
5 मार्च 1931 को लंदन में दूसरा गोलमेज सम्मलेन हुआ और गांधी-इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ, जिसे ’दिल्ली पैक्ट’ भी कहते हैं। इसके साथ ही सविनय अवज्ञा आंदोलन खत्म कर दिया गया। इस समझौते में अंग्रेजी हुकूम ने हिंसा के आरोपियों को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने, भारतीयों को समुद्र किनारे नमक बनाने का अधिकार दिए जाने, भारतीयों को शराब व विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना देने का अधिकार, आंदोलन के समर्थन में अपने पद से इस्तीफा देने वाले सरकारी कर्मियों की बहाली, कानून के तहत जब्त संपतियों की वापसी पर सहमति बनाई। वहीं, इन मांगों के पूरा होने पर कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने, दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने, ब्रिटिश सामान का बहिष्कार न करना और आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा की गई क्रूरता की जांच की मांग न करने पर सहमति दी।
रिपोर्ट- पंकज कुशवाल