मालगुडी डेज़ में अस्सी साल पहले आ गई थी चैट जीपीटी जैसी ईजाद!
Pen Point, Dehradun : सूचना और तकनीकी की दुनिया में इन दिनों चैट जीपीटी के चर्चे हैं। जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी का एकदम नया नमूना माना जा रहा है। लेकिन मशहूर भारतीय लेखक आरके नारायण ने ऐसी कल्पना अस्सी साल पहले ही कर दी थी। जी हां, वहीं आरके नारायण मालगुडी डेज़ वाले। साल 1943 में उनका यह मशहूर कहानी संग्रह छप कर आया था। इसी संग्रह में चैट जीपीटी जैसा काम करने वाली मशीन पर उनकी एक कहानी है। उस दौर में भारत क्या पूरी दुनिया में रेडियो और टीवी तक अजूबा था। इसीलिए इसके बारे में तब ज्यादा नहीं सोचा गया होगा।
अब आते हैं अस्सी के दशक में। जब टेलीविजन भारतीय घरों का हिस्सा बन चुका था। साल 1985 में कन्नड़ के मशहूर निर्देशक शंकर नाग ने मालगुडी डेज़ की कहानियों पर टीवी सीरियल बनाया। जिसके तीसरे सीजन के तेरहवें ऐपीसोड में एक कहानी है मिठाईवाला। जो इस तरह है कि माली नाम का लड़का विलायत से पढ़कर आया है। साथ में उसकी विलायती पत्नी भी रहती है। माली के पिता जगन का किरदार सामाजिक रूप से सक्रिय और भारतीय मूल्यों का मान रखने वाला है। अंग्रेजी ढब वाला माली भारत में कारोबार करना चाहता है। वह अमेरिका से एक ऐसी मशीन लाया है, जो खुद लेख और कहानियां लिखती है। इस मशीन में कई बटन हैं। कहानी या लेख के बारे में सोचना भर है, और फिर बटन दबाने हैं। कहानी कें किरदार और उसकी विषय वस्तु के लिए बटन दबाने हैं। साथ ही प्यार, नफरत, ईर्ष्या, साहस जैसे भावों के लिए भी बटन हैं। इसके अलावा प्रतिशोध, काम्पलेक्सिटी और रूमानियत डालने के लिए भी बटन हैं। कहानी के किरदारों को अच्छा, बुरा, बहुत बुरा या सामान्य बनाने वाले भी बटन हैं। करीब आठ से दस बटन दबाने के बाद सेकेंडों में कहानी या लेख तैयार हो जाएगा। माली इसी तरह इस मशीन का प्रेजेंटेशन अपने पिता को देता है। जिस पर जगन और माली इसकी जरूरत पर अपनी अपनी दलीलें देते हैं। ऐसी ही बहस इन दिनों चैट जीपीट की जरूरत या उपयोगिता पर भी चल रही है। इस ऐपीसोड की कहानी जगन के संशय के साथ आगे बढ़ जाती है। गौरतलब है कि अस्सी के दशक में कंप्यूटर भी नहीं आया था, इंटरनेट और एआई तो बहुत दूर की कौड़ी थी। लेकिन टीवी और रेडियो के विस्तार ने भविष्य की तकनीकी की ओर इशारा जरूर कर दिया था। इंसान की बजाए खुद ही सोच समझकर जवाब देने वाली मशीनों के बारे में बात होने लगी थी।
चैट जीपीटी भी कुछ ऐसा ही है
आरके नारायण की कहानी की मशीन की तरह ही चैट जीपीटी से किसी भी विषय पर लेख, कहानी या जवाब लिया जा सकता है। इसे डीप मशीन लर्निंग चैट बॉट का जाता है। जो बड़ी मात्रा में डेटा और कम्यूटिंग सिस्टम से संचालित होते हैं। ताकि वह शब्दों के अर्थों और उनके संदर्भों को सही तरीके से दर्शा सके। चैट जीपीटी टैक्स्ट फॉर्म में विषय को यूजर के सामने रख देता है। यदि यूूजर संतुष्ट नहीं है तो उसमें बदलाव का भी ऑप्शन है, और मनचाहा रिजल्ट मिलने तक वह बदलाव कर सकता है।
समय के साथ सिमट रहा समय का दायरा
जब साल 2015 में सैम ऑल्टमैन और ऐलन मस्क ने चैट जीपीटी पर काम शुरू किया तो उन्हें शायद ही मालूम होगा कि सत्तर साल पहने आरके नारायण ने इस पर कहानी लिखी थी। नवंबर 2022 में इसे लांच किया गया। ओपन एआई का चैट जीपीटी इंटरफेस अब सभी की पहुंच में है। जिसे बहुत से काम आसान और चंद सेकेंडों में पूरे हो जाएंगे। इसी तरह मालगुडी डेज़ कहानी में भी माली समय बचाने की बात करता है। वह कहता है कि यहां लोग समय की कीमत नहीं समझते इसीलिए ये देश पिछड़ा हुआ है। जिस पर उसके पिता जगन कहते हैं- हर देश की अपनी गति होती है माली, जो हमारी जरूरतों के हिसाब से बनती है।