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संस्कृति : ये तस्वीरें बता रही हैं, कैसा था उत्तराखंडी महिलाओं का पहनावा

Pen Point : उत्तराखंड का पारंपरिक पहनावा अब भुला दिया गया है। लेकिन कभी यहां महिलाओं का पहनावा खास हुआ करता था। घर, खेत खलिहान और जंगल में हाड़तोड़ मेहनत करने वाली ये महिलाएं मेले त्यौहारों और मांगलिक कार्यों के समय खूब सजती संवरती थीं। जब भी कहीं मेला जुटता तो गहनों से सज धज कर ये महिलाएं गीत गाते हुए मेले में पहुंचती। तब पहाड़ में लोग तो गरीब थे लेकिन महिलाओं के पास गहनों की कमी नहीं थी। देखिये पहाड़ी महिलाओं की ऐसी ही कुछ पुरानी तस्वीरें-

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फोटो सन् 1936 का। चमोली के वाण गांव में पारंपरिक परिधान में दो बालाएं। इन्होंने लव्वा या पाखुला पहना है जो सफेद भेड़ की ऊन का बनता था। समय बदला और अब इसे काली भेड़ की ऊन से बनाया जाता है। इस प्रकार के पहनावे को गात्ति पहनना कहते हैं।
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फोटो सन् 1949 का। पिथौरागढ़ के चौदास भोट क्षेत्र की बालिकाएं अपने पारंपरिक परिधान और खूब सारे गहनों से लकदक।
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फोटो सन् 1961 का। अपनी खास पोशाक और आभूषणों के साथ दिल्ली के एक कार्यक्रम में जौनसारी लोक कलाकार
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फोटो अगस्त 1958 का। उत्तरकाशी की गंगा घाटी की एक महिला। गढ़वाली पहनावे की प्रतीक तस्वीर।
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फोटो सन् 1966- उत्तरकाशी के माघ मेले में मिठाई खाती एक गढ़वाली ग्रामीण महिला
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फोटो सन् 1966- उत्तरकाशी के माघ मेले में पहुंची जाड़ भोटिया समुदाय किशोरी
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सन् 1976 में उस दौर की प्रसिद्ध पत्रिका धर्मयुग के आवरण चित्र के रूप में प्रकाशित गढ़वाली महिला का फोटो

(Photo collection of Raju Gusain)

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