देहरादून के ओलंपियन राम बहादुर छेत्री, जिन्हें विश्व फुटबॉल की दीवार कहा गया
-देहरादून को फुटबॉल की पहचान दिलाने वाले भारतीय ओलंपियन फुटबॉलर राम बहादुर छेत्री की आज है जयंती
PEN POINT देहरादून : आजादी के बाद तीन दशक का समय भारतीय फुटबॉल का स्वर्णिम युग कहा जाता है। इस दौरान भारतीय टीम में देहरादून के राम बहादुर क्षेत्री मिड फील्डर हुआ करते थे। अपनी बेहतरीन और साफ सुथरे खेल से उन्होंने सदी के सर्वश्रेष्ठ भारतीय मिड फील्डर की उपाधि पाई। 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भारत को चौथा स्थान हासिल हुआ। यहां पदक से चूकने के बाद 1960 में रोम ओलंपिक हुए। यहा भारतीय टीम से पदक की उम्मीद थी। लेकिन अपनी टीम उस समय दुनिया की सबसे मजबूत टीमों वाले कठिन पूल में रखी गई। भारत का पहला मैच तब के यूरोपियन चैंपियन हंगरी से हुआ। इस मैच में भारत 1-2 से हार गया। अगले मैच में भारत ने प्रांस के साथ 1-1 से बराबरी की। तीसरे मैच में भारत 1-3 से हार गया। लेकिन इस ओलंपिक में भारतीय टीम के मिड फील्डर राम बहादुर क्षेत्री को दुनिया में खास पहचान मिली।
DMC Trophy से पहचान मिली
15 फरवरी 1937 को देहरादून में जन्मे राम बहादुर क्षेत्री के पिता फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में चपरासी थे। अभावों भरे बचपन के बाद भी राम बहादुर 20 साल की उम्र तक देहरादून में ही अमर ज्योति नाम के फुटबॉल क्लब से खेलते थे। 1954 में देहरादून में दिल्ली क्लॉथ मिल्स ट्राफी (DMC Trophy) में उनके क्लब के प्रदर्शन ने सबको हैरान कर दिया। फाइनल तक पहुंची इस स्थानीय टीम ने कई दिग्गज टीमों को हराया और देहरादून को देश भर में फुटबॉल के क्षेत्र में बड़ी पहचान दिलाई। फाइनल में अमर ज्योति क्लब का मुकाबला देश की सबसे मजबूत टीम ईस्ट बंगाल से था। ईस्ट बंगाल भले ही 1-0 के नजदीकी अंतराल से जीत गइ्र। लेकिन यह टीम छाप छोड़ गई और सबसे ज्यादा सराहना मिली मिड फील्डर राम बहादुर क्षेत्री को, जिन्होंने दिग्गज स्ट्राइकरों को गोल के लिए तरसा दिया।
यहीं से उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिली और ईस्ट बंगाल ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। देश की प्रतििष्ठत लीग के पहले सीजन में छेत्री ने मोहम्डन स्पोर्टिंग के खिलाफ हर किसी के दिल में जगह बना दी। एक खिलाड़ी के धक्के से गिरने के बाद उनके सिर पर चोट आ गई। सिर से खून रिसने के बावजूद उन्होंने भारी पट्टी बांध कर अंत तक मैच खेला और ईस्ट बंगाल की 3-0 की जीत में अहम भूमिका निभाई।
11 साल के प्रोफशनल करियर
जकार्ता में साल 1962 में हुए एशियन गेम्स फुटबॉल में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता था। जिसमें राम बहादुर क्षेत्री का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने 15 टूर्नामेंट में भारतीय टीम की कप्तानी भी की। ईस्ट बंगाल से उन्होंने आजीवन खेलने का वादा किया था और निभाया भी। करीब 11 साल के प्रोफशनल करियर के बाद 1967 में भारतीय फुटबॉल टीम की दीवार हट गई। बाद में वे देहरादून आ गए
मिड फील्ड में दीवार की तरह थे
अपने खेल की बदौलत दुनिया में छेत्री चाईना वाल के नाम से लोकप्रिय हुए। फुटबॉल के जानकार बताते हैं कि मिडफील्डर के रूप में उनके जैसा साफ सुधरा हुनर और किसी के पास हो। खिलाड़ी की कवरिंग हो या फिर ब्लॉकिंग उनका खेल देखने वाले मुरीद हो जाते थे। बताया जाता है कि मोहन बागान क खिलाफ एक मैच में सबसे खतरनाक भारतीय स्ट्राइकर चुन्नी गोस्वामी को ऐसा ब्लॉक किया कि वो पूरे मैच में एक भी गोल नहीं कर सके।
अपना प्रोफेशनल करियर पूरा होने के बाद वे देहरादून लौट गए। यहां उन्होंने अपने सामने कई फुटबॉल खिलाडि़यों की नई पौध तैयार करने में योगदान दिया। कहा जा सकता है कि देहरादून को फुटबॉल की पहचान दिलाने वाले छेत्री पहले शख्स थे। उनके बाद देहरादून से फुटबॉल खिलाडि़यों की बड़ी खेप निकली जिन्होंने देश के प्रतिष्ठिति क्लबों के साथ ही भारतीय टीम में जगह बनाई। वर्ष 2000 में 4 दिसंबर को भारत का यह ओलम्पियन फुटबालर दुनिया को देहरादून में ही अलविदा कह गया।