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“साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंक़लाब ज़िदाबाद” भगत सिंह का देश के नाम आखिरी संदेश

-आज भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू का शहीदी दिवस, लाहौर जेल में अंग्रेजों ने तय समय से पहले दे दी थी फांसी
PEN POINT DEHRADUN : लाहौर सेंट्रल जेल में 24 मार्च 1931 की सुबह छह बजे फांसी की सजा मुकर्रर थी, भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू के पास करीब 14 घंटे और बचे थे। लेकिन शाम को चार बजे के करीब उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचते हैं। अपनी उस छोटी सी काल कोठरी में जहां भगत की 5 फीट 10 इंच लंबी देह बमुश्किल समा पाती थी वहां से भगत सिंह ने प्राणनाथ मेहता को देखते ही उनका ‘इंकलाब जिंदाबाद’ बोलकर इस्तकबाल किया। भगत सिंह ने मुस्कुरा कर मेहता का स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब ’रिवॉल्युशनरी लेनिन’ लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज़्यादा समय न बचा हो। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बग़ैर कहा, “सिर्फ़ दो संदेश… साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और ’इंक़लाब ज़िदाबाद“
इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।
23 साल के भगत सिंह व सुखदेव और इनसे एक साल छोटा राजगुरू, तीनों क्रांतिकारी लाहौर सेंट्रल जेल में यूं तो 24 मार्च 1931 की सुबह 6 बजे फांसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेजों ने रणनीति बदलकर 12 घंटे पहले ही यानि 23 मार्च 1931 की शाम सात बजे तीनों को फांसी देने का फैसला कर लिया।
सभी कैदियों को बता दिया गया था कि भगत सिंह उनके दोनों साथियों को 7 बजे फांसी दी जाएगी तो वह अपने अपने सेल में चले जाएं। सभी कैदी उस राह की तरफ टकटकी लगाए देखने लगे जहां से भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू को लेकर जाना था।
एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज़ ऊँची कर उनसे पूछा था, “आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया।“
भगत सिंह का जवाब था, “इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मज़बूत होता है, अदालत में अपील से नहीं।“
भगत सिंह जेल की कठिन ज़िंदगी के आदी हो चले थे. उनकी कोठरी नंबर 14 का फ़र्श पक्का नहीं था। उस पर घास उगी हुई थी।
उस शाम को वकील प्राणनाथ मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है.। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।
भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे। उनके मुंह से निकला, “क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी ख़त्म नहीं करने देंगे?“
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आज़ादी गीत गाने लगे-
कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आज़ाद हम होंगें
ये अपनी ही ज़मीं होगी
ये अपना आसमाँ होगा.
फिर इन तीनों का एक-एक करके वज़न लिया गया. सब के वज़न बढ़ गए थे। इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें. फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।

जिंदगी भर ईश्वर को कोसा, अब कैसे याद करूं  
चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो।
भगत सिंह बोले, “पूरी ज़िदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया। असल में मैंने कई बार ग़रीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है। अगर मैं अब उनसे माफ़ी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नज़दीक आ रहा है. इसलिए ये माफ़ी मांगने आया है।
जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाया, क़ैदियों ने दूर से आती कुछ पैरों के चलने की आवाज व उनके साथ भारी बूटों के ज़मीन पर पड़ने की आवाज़ें भी आ रही थीं। साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…“
सभी को अचानक ज़ोर-ज़ोर से ’इंक़लाब ज़िंदाबाद’ और ’हिंदुस्तान आज़ाद हो’ के नारे सुनाई देने लगे। फांसी का तख़्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफ़ी तंदुरुस्त। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया गया था।
भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे. भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख़्ते से ’इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा लगाएंगे।
उनकी आवाज़ सुनते ही जेल के दूसरे क़ैदी भी नारे लगाने लगे। तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई। उनके हाथ और पैर बांध दिए गए। तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा?
सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी। जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख़्तों को पैर मार कर हटा दिया। काफी देर तक उनके शव तख़्तों से लटकते रहे।

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