सूखी ठंड: जानिये इस बार क्यों खफा है सर्दी का मौसम, कहां गई बारिश ?
Pen Point, Dehradun : साल 2023-24 की सर्दियां जलवायु में बदलाव की ओर साफ संकेत कर रही हैं। अब तक सर्दियों का यह मौसम सबसे गर्म होने जा रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग भी पहले ही इसकी भविष्यवाणी कर चुका है। जिसमें कहा गया था कि इन सर्दियों का न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रह सकता है। यह भारत समेत पूरी दुनिया में जलवायु में बदलाव की प्रवृत्ति को बताता है। गौरतलब है कि 2023 का नवंबर महीना 1901 के बाद से तीसरा सबसे गर्म नवंबर रहा।
भारत में भी 1901 के बाद से मौसम के ये बदलाव देखे जा रहे हैं। उत्तराखंड की बात करें तो दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक जिन इलाकों में बर्फबारी होती थी, वहां रूखापन बना हुआ है। जिसके कारण पूरे राज्य में इस बार तापमान सर्दियों के सामान्य तापमान से ज्यादा बना हुआ है। बारिश और बर्फबारी न होने के कारण निचले इलाकों में भी सूखी ठंड परेशानी का सबब बन रही है।
आखिर सर्दियों में मौसम की ये बेरूखी क्यों है, इस सवाल का जवाब तलाशा जा रहा है। मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक अल नीनो प्रभाव इसके लिये बड़े पैमाने पर जिम्मेदार है। जिसके कारण पश्चिमी विछोभ में असंतुलन हुआ है। इसके अलावा बंगाल की खाड़ी में विकसित हो रहे आगामी चक्रवातों को भी मौसम में बदलाव का एक कारण माना जा रहा है। इस मौसम में भारत के उत्तरी हिस्से में बारिश पश्चिमी विछोभ के कारण होती है। लेकिन इस बार यह विछोभ बिगड़ा हुआ है। जिसके कारण कम तीव्र शीत लहरें आगे फरवरी तक सर्दियों को और गर्म बनाए रख सकती हैं।
क्या है अल नीनो प्रभाव ?
अल नीनो समुद्र से उठने वाली तेज गर्म हवाएं हैं, जो कभी-कभी दिसंबर के महीने में दक्षिण अमेरिका में पेरू के तट पर दिखाई देती है। इससे समुद्र की सतह का तापमान बढ़ जाता है और हिंद महासागर में मानसूनी हवाओं की गति प्रभावित होती है और भारतीय उपमहाद्वीप में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।
आम तौर पर उत्तर भारत की तुलना में अल नीनो का प्रभाव दक्षिणी भारत में कम दिखाई देता है। खास बात ये है कि अल नीनो के आधे से अधिक वर्षों में मानसून के दौरान सूखा पड़ा है। पूरे भारत में वर्षा अवधि के औसत के 90 प्रतिशत से कम हो गई है।
खेती किसानी पर संकट
जलवायु परिवर्तन के कारण बीते कई सालों से फरवरी और मार्च में बारिश और बर्फबारी का चलन देखा जा रहा है। इस बार भी अगर ऐसा होता है तो उत्तर भारत, खास तौर पर हिमालयी राज्यों में रबी की फसल पर भी संकट होगा। उत्तराखंड और हिमांचल के उच्च हिमालयी इलाकों में सेब और अन्य फलों की खेती पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। बदलते मौसम के कारण उच्च हिमालयी इलाकों में स्नो लाइन लगातार पीछे खिसक रही है। जिसके कारण उंचाई वाले फलों के बगीचे वीरान होने लगे हैं।
Featured Image- Down To Earth