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सूखी सर्दी : हमेशा सटीक क्यों नहीं होती मौसम को लेकर भविष्यवाणी?

Pen Point, Dehradun : इस साल की सर्दियां सूखी बीत रही हैं। हालांकि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने नवंबर में ही इस बार दिसंबर जनवरी में कम बारिश की भविष्यवाणी की थीं। लेकिन मौसम इस पूर्वानुमान से कहीं ज्यादा रूखे तेवर दिखा रहा है। सूखी सर्दी से परेशान लोगों को जनवरी पहले हफ्ते में बारिश और बर्फबारी की उम्मीद थी। जिसे लेकर मौसम विज्ञान विभाग ने भी भविष्यवाणी की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद दूसरे हफ्ते के शुरूआती दिनों के लिये ऐसा ही पूर्वानुमान किया गया, अब 17 और 18 जनवरी के लिये मौसम विभाग ने बारिश और बर्फबारी की संभावना जताई है। लेकिन इनमें से कोई भी पूर्वानुमान पूरी तरह सटीक साबित नहीं हुए।

ऐसा पहली बार नहीं है कि मौसम के पूर्वानुमान एकदम खरे उतरे हों। भारत में सालों से ऐसा होता चला आ रहा है। आम लोग मौसम विभाग की जानकारियों को लेकर कई तरह के व्यंग भी करते नजर आते हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के बीड जिले 2018 में मौसम की भविष्यवाणी को लेकर एक दिलचस्प खबर आयी थी। जिसके मुताबिक वहां किसानों ने भारतीय मौसम विभाग के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने विभाग पर मौसम की गलत भविष्यवाणी से गुमराह करने का आरोप लगाया। उसी दौरान महाराष्ट्र में किसानों के संगठन स्वाभिानी शेतकारी संगठन ने पुणे शहर में मौसम विभाग के दफ्तर को बंद करने की धमकी भी दी। उन्होंने विभाग को सफेद हाथी बताते हुए इसके औचित्य पर सवाल खड़े किये थे।

आखिर क्या वजह है कि भारत में मौसम का पूर्वानुमान हमेशा उतना सटीक नहीं रहता? विशेषज्ञों के अनुसार मौसम पूर्वानुमान मॉडल बड़े पैमाने पर अत्यधिक विशिष्ट प्रकार के उपकरणों द्वारा एकत्र किए गए डेटा पर निर्भर करते हैं। मौसम के अध्ययन और भविष्यवाणी के लिए डॉपलर रडार, उपग्रह डेटा, रेडियोसॉन्डेस, सतह अवलोकन केंद्र, कंप्यूटिंग उपकरण और उन्नत मौसम प्रसंस्करण प्रणाली जैसे विभिन्न उपकरणों की आवश्यकता होती है। हालाँकि भारत ने इनमें से कुछ क्षेत्रों में क्षमता बढ़ाई है, लेकिन यह यूरोप और अमेरिका के उन्नत देशों से काफी पीछे है।

भारत की भौगोलिक स्थिति
मौसम के पूर्वानुमान को लेकर इंडिया टुडे में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास एक विशाल भूभाग और एक अलग तरह की भौगोलिक स्थिति है। दरअसल यह तटीय, मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों का मिश्रण है। भारत में लगभग सात हजार किलोमीटर लंबी तटरेखा है, जिसका गतिविधियों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। मानसून के बाद की स्थिति में ज़मीनी हवा और समुद्री हवा जैसे स्थानीय कारक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे-जैसे हम दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ते हैं, भूमध्यरेखीय क्षेत्र हिमालय में उच्च अक्षांशों को स्थान देता है। भारत को चक्रवात, पश्चिमी विक्षोभ, पूर्वी हवा और यहां तक कि पछुआ हवा जैसी विभिन्न प्रकार की मौसम की चरम स्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। हमारे पास लंबी ऋतुओं का एक चक्र है।

अब एआई का होगा इस्तेमाल
पीटीआई को दिये एक साक्षात्कार में भारत मौसम विज्ञान विभाग की ओर से बताया गया है कि वह अपने मौसम पूर्वानुमान मॉडल को बेहतर बनाने के लिए एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तेज़ सुपर कंप्यूटर का उपयोग करने की योजना बना रहा है। इस समय आईएमडी अपना 150वां वर्ष मना रहा है और हर गांव में किसानों को मौसम का पूर्वानुमान प्रदान करने के लिए पंचायत मौसम सेवा शुरू करेगा। संगठन पूर्वानुमान सटीकता में सुधार के लिए उपकरणों के संयुक्त विकास के लिए शैक्षणिक संस्थानों के साथ भी सहयोग करेगा

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