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बाबा राम सिंह कूका : देश का पहला स्वतंत्रता सैनानी जिससे खौफ खाते थे अंग्रेज

जयंती विशेष- महात्मा गांधी के जन्म से भी पहले अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाने वाले राम सिंह कूका की आज जयंती  

पेन प्वाइंट। दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटकर अंग्रेजों से गुलामी की मुक्ति के लिए 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। जिसका पूरे देश में व्यापक असर पड़ा और अंग्रेजी शासन की नींव हिलनी शुरू हो गई थी। लेकिन, क्या आप जानते है कि अंग्रेजों के खिलाफ पहला असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के जन्म से बीस साल पहले पंजाब प्रांत में शुरू किया गया था। शुरू करने वाले देश में पहले स्वतंत्रता सैनानी माने जाने वाले बाबा राम सिंह कूका। पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ पूरी तरह असहयोग आंदोलन चलाने वाले बाबा राम सिंह कूका के आह्वान पर अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के संग्राम से भी पहले बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए थे, अपने खिलाफ इस विरोध को भले ही अंग्रेजों से निर्ममता से कूचल दिया लेकिन पंजाब से जली इस लौ की रोशनी पूरे देश में फैल गई और देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगां ने आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी।
देश के पहले स्वतंत्रता सैनानी बाबा राम सिंह कूका का जन्म आज के ही दिन 3 फरवरी 1816 को लुधियाना के भैणी नामक गांव में हुआ था।  सिक्ख धर्म में नामधारी पंथ की शुरूआत करने वाले बाबा राम सिंह कूका सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ ही संघर्ष का नाम नहीं थे बल्कि सामाजिक सुधारों के भी मजबूत व प्रसिद्ध हस्ताक्षर थे।
बेहद साधारण परिवार में जन्मे राम सिंह कूका महाराज रणजीत सिंह की सेना में भर्ती हो गये थे। बचपन से ही बेहद धार्मिक प्रवृति के इंसान राम सिंह  एक बार लाहौर से पेशावर जाते हुए रास्ते में हजरे नाम के कस्बे में अपने साथियों के साथ गुरू बालक सिंह के पास भजन बंदगी की दीक्षा लेने पहुंचे। बताया जाता है कि राम सिंह कूका को देखते हुए गुरू बालक सिंह ने उन्हें अपना अभियान आगे बढ़ाने के लिए चुनते हुए उन्हें निष्काम सेवा की दीक्षा दी।
इसके बाद राम सिंह कूका ने खुद को पूरी तरह से धार्मिक व सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।
1845 में अंग्रेजों से हार के बाद सिक्ख राज्य टूट गया तो पूरे पंजाब पर अंग्रेजों की शासन शुरू हो गया। लेकिन, बाबा राम सिंह कूका के लिए अंग्रेजों का शासन स्वीकार्य नहीं था। राम सिंह स्वतंत्रता को धर्म का अभिन्न अंग मानते थे। उन्होंने अपने समर्थकों से अंग्रेजी शासन के बहिष्कार के साथ ही अंग्रेजों द्वारा स्थापित सुविधाओं का भी संपूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया।
गुरू राम सिंह कूका धार्मिक कार्यों के साथ ही अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा देने, जातिगत भेदभाद खत्म करने, विवाह कार्यों में बेवजह के खर्च को बंद करवाने, गौ रक्षा जैसे कई सामाजिक कार्यों के चलते ख्याति पा चुके थे। सामाजिक व धार्मिक कार्यों से प्रभावित होकर लाखों लोग उनके अनुयाई हो गये।
अंग्रेजी शासन के खिलाफ उनकी आवाज का व्यापक असर पड़ने लगा तो वह अंग्रेजों की आंखों में खटकने लगे। उनके अनुयाईयों को उत्पीड़ित किया जाने लगा। लेकिन, बाबा राम सिंह कूका अपने धार्मिक और समाजिक कार्यों के साथ ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक मजबूत आवाज बनकर उभर रहे थे। पूरे क्षेत्र में अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारी विरोध होने लगा।
एक बार मालेरकोटला में गौ वध पर कसाईयों के साथ नामधारियों के हुए संघर्ष को अंग्रेजों ने बाबा राम सिंह कूका को नियंत्रित करने का मौका समझ कर लिया। अंग्रेजों ने बिना किसी अदालती सुनवाई के बाबा राम सिंह कूका के शिष्यों को तोप में सिर ढालकर तोप से उड़ाना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए 80 नामधारियों को तोप से उड़ा दिया। लेकिन बाबा राम सिंह कूका के हौसलों को अंग्रेज डिगा न सके। तो इसी घटना को आधार बनाते हुए अंग्रेजों ने बाबा राम सिंह कूका और उनके शिष्यों को इलाहबाद में जेल में डाल दिया, इसके बाद उन्हें बर्मा की जेल में 14 साल नजरबंद रखा और उन्हें यातनाएं दी गई। 1885 में बाबा राम सिंह कूका का निधन हो गया।
वह चट्टान की तरह धर्म व अपने लोगों की रक्षा के लिए अंग्रेजों के सामने डटे रहे। अंग्रेजों की यातनाएं व क्रूरता उनका व उनके शिष्यों का हौसला न डिगा सकी।
अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह की जो लौ बाबा राम सिंह कूका ने जलाई वह पूरे देश में फैली और पूरा देश अंग्रेजी शासन के खिलाफ लंबे समय तक संघर्षरत रहा जिसकी नियतिस्वरूप 15 अगस्त 1947 को आखिरकार अंग्रेजों को देश को आजादी देनी पड़ी।

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