भूकंप : धरती डोलने पर ये लापरवाही पढ़ सकती है भारी, सावधानी जरूरी
PEN POINT, DEHRADUN : बीते मंगलवार की रात दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में भूकंप के झटकों ने दहशत का माहौल बना दिया। अफगानिस्तान में इस का केंद्र बताया जा रहा है और रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 6.6 मापी गई। जिसके चलते पाकिस्तान तजाकिस्तान और चीन के कुछ हिस्सों में भी इसे महसूस किया गया। गौरतलब है कि भूकंप के लिहाज से उत्तर भारत जोन 4 व 5 में बंटा है। ऐसे में उत्तर भारत के घनी आबादी वाले शहर बेहद संवेदनशील कहे जा सकते हैं।
भूकंप या फिर भूगर्भीय हलचल प्राकृतिक आपदा है। हाल ही में तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप से बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान हुआ। भारत के कई हिस्सों में लोगों ने भूकंप की विभीषिका को झेला है। प्राकृतिक आपदा की इन सभी घटनाओं में यही बात सामने आई कि सबसे ज्यादा नुकसान अनियोजित निर्माण के चलते हुआ। शहरों की घनी बस्तियां, बाजार और पुरानी इमारतें भूकंप आने पर सबसे ज्यादा खतरे वाली जगह बन जाती हैं। शहरों में सुरक्षित निर्माण के मानकों को ताक पर रखकर बनाए जा रहे हैं। यही हालात ग्रामीण और उपनगरीय इलाकों में भी हैं। एक अनुमान के मुताबिक अगर उत्तर भारत में सात से आठ तीव्रता का भूकंप अस्सी फीसदी तक शहरों को तबाह कर देगा।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्ययन के मुताबिक देश में अब तक आए भूकंपों में 95 फीसदी नुकसान इमारतों में भूकंपरोधी तकनीक ना होने के कारण पहुंचा है। निजी भवनों के साथ ही सरकारी इमारतों में भी कई जगह भूकंपरोधी तकनीक की अनदेखी की गई है। प्राधिकरण ने इस बारे में एक विस्तृत गाइडलाइन जारी की है। जिसमें साफ तौर पर भूकंप को झेलने वाली तकनीक और गुणवत्ता की सामग्री से युक्त भवनों के निर्माण की संस्तुति की गई है। जिसे हर निर्माण में अमल में लाया जाना जरूरी है। लेकिन भारत में व्यवहारिकता का ज्यादा चलन होने के कारण निर्माण कार्यों में भूकंपरोधी उपायों को दरकिनार कर दिया जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक उत्तर भारत में खास तौर पर हिमालयी राज्यों में बड़े भूकंप की संभावना हमेशा बनी हुई है। जिसका कारण धरती के अंदर हिमालय का निर्माण करने वाली यूरेशियाई प्लेट का लगातार खिसकना है। इस हलचल की वजह से भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में भूकंप के झटके बार-बार लगते हैं. लगातार होने वाली इस टक्कर से परतों की दबाव सहने की क्षमता लगभग खत्म हो रही है। यही नहीं, परतें टूटने के साथ ही उसके नीचे मौजूद ऊर्जा बाहर आने का रास्ता खोजने लगती है। लेकिन उसे सीधा रास्ता नहीं मिलता। ऐसे में इस वजह से भी हिमालय क्षेत्र में भूकंप आता है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत का कुछ हिस्सा हिमालय पर्वत की रेंज में आता है, इसलिए इन तीनों देशों में भूकंप का खतरा ज्यादा मंडराता रहता है।
भूकंप आने से पहले क्या करें (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की गाइडलाइन)
- छत तथा नींव के पलास्तर में पड़ी दरारों की मरम्मत कराएं। यदि कोई संरचनात्मक कमी का संकेत हो तो विषेशज्ञ की सलाह लें।
- सीलिंग में ऊपरी (ओवरहेड) लाइटिंग फिक्सचर्स (झूमर आदि) को सही तरह से टांगें।
- भवन निर्माण मानकों हेतु पक्के इलाके में प्रासंगिक बीआईएस संहिताओं का पालन करें।
- दीवारों पर लगे षेल्फों को सावधानी से कसें।
- नीचे के षेल्फों में बड़ी अथवा भारी वस्तुओं को रखें।
- सांकल/चिटकनी वाली लकड़ी की निचली बंद कैबिनेटों में भंगुर (ब्रेकेबल) मदें जैसे बोतलबंद खाद्य सामग्री, गिलास तथा चीनी मिट्टी के बर्तन को रखें।
- भारी चीजों जैसे तस्वीर तथा षीषे आदि को, बिस्तर, सेटीज (सोफा, बेंच या कोच) तथा जहां भी लोग बैठते हैं, से दूर रखें।
- फैन फिक्चर्स तथा ओवरहेड लाइट को नट-बोल्ट की मदद से अच्छी तरह फिट कराएं।
- खराब या दोशपूर्ण बिजली की तारों तथा लीक करने वाले गैस कनेक्षनों की मरम्मत कराएं जिनसे आग लगने के जोखिम की संभावना होती है।
- पानी गर्म करने का हीटर, एलपीजी सिलेंडर आदि को दीवार के साथ अच्छी तरह कसवाएं बंधवाएं अथवा फर्ष पर बोल्ट कसवा के उन्हें सुरक्षित बनाएं।
- अपतृण-नाषी (वीड किलर्स), कीटनाषक तथा ज्वलनषील पदार्थों को सांकल वाले कैबिनेटों में तथा नीचे के षेल्फों में सावधानी से रखें।
- घर के अंदर तथा बाहर सुरक्षित स्थानों को तलाष कर रखें।
- मजबूत खाने की मेज, बिस्तर के नीचे।
- किसी भीतरी दीवार के साथ।
- उस जगह से दूर जाना जहां खिड़की, षीषे, तस्वीरों से कांच गिरकर टूट सकता हो अथवा जहां किताबों के भारी षेल्फ अथवा भारी फर्नीचर नीचे गिर सकता हो।
- खुले क्षेत्र में बिल्डिंग, पेड़ों, टेलीफोन, बिजली की लाइनों, फ्लाईओवरों तथा पुलों से दूर रहें।
- आपातकालीन टेलीफोन नंबरों को याद रखें (जैसे डाक्टरों, अस्पतालों, तथा पुलिस आदि के टेलीफोन नंबर)।
- स्वयं तथा परिवार के सदस्यों को भूकंप के बारे में जानकारी दें।
(Photo- symbolic)