आंखों देखी: फ्लाईओवर के नीचे पार्किंग के नाम पर ये कैसा गोरखधंधा हैै ?
Pen point (Ravindra Rawat) : जगह-रिस्पना पुल के नजदीक हरिद्वार बाईपास फ़लाईओवर के नीचे की पार्किंग। यहां पर सूर्या और कनिष्क नाम के दो अस्पताल भी हैं, लिहाजा लोगों का आना जाना बना हुआ है। नगर निगम की इस पार्किंग पर नजर डालें तो फ़लाईओवर के नीचे उबड़ खबाड़ जगह है। करीब तीस-तीस मीटर के आठ या दस हिस्सों में इसे बांटा गया है। कुछ जगहों पर मिट़टी पत्थर के ढेर हैं तो कई जगह बरसाती पानी भरा हुआ है। वाहनों की सुरक्षा के लिये किसी तरह का इंतजाम तलाशने पर भी नजर नहीं आ रहा है। हां, फ्लाईओवर के पिलर के बगल में बेंच पर पार्किंग फीस लेकर पर्ची काटने वाला एक आदमी जरूर बैठा है। कोई भी कार या स्कूटी पार्क करता है तो वह लपक कर उस ओर चला जाता है। पिलर के ठीक नीचे चटाई पर सुर्ख़ आंखों वाले दो लड़के बैठे हैं, खुद में ही लीन। पिलर पर उपर की ओर नजर डालें तो वहां बड़े ही भद्दे अक्षरों में लिखा है- पेड़ पार्किंग, नगर निगम।
ऐसी लिखावट एक नहीं लगभग हर तीसरे पिलर पर नजर आती है। इस पिलर के ठीक सामने एक चाय का खोमचा है। जिसे अमरोहा का रहने वाला शिवचंद चलाता है। उसने बताया कि पार्किंग वाले ठेकेदार को रोज का सौ रूपया बतौर किराया देना पड़ता है। ऐसे दस से बारह खोमचे यहां पर चल रहे हैं। यह पूछने पर कि कहां से कहां तक ये पार्किंग है, शिवचंद ने कहा- फ़लाईओवर के नीचे जहां तक नजर जा रही है, सारी पार्किंग का ठेका एक ही ठेकेदार के पास है।
विभिन्न हिस्सों में बंटे पार्किंग एरिया पर डालें तो, इसके बिना खर्च वाले इसके रेवेन्यू मॉडल का हिसाब चौंका देता है। एक बड़े हिस्से में टैक्सी मैक्सी कैब की पार्किंग है। एक हिस्से टैंपो ट्रैवलर जैसे वाहन हैं तो, एक जगह पर जेसीबी जैसी मशीनें पार्क हैं। शेष जगह पर स्कूटर, बाइक और कार को पार्क कराया गया है। लेकिन कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं
लगता है कि पेड पार्किंग के हर नियम को इस फ्लाईओवर के नीचे जमींदोज कर दिया गया है। पार्किंग के लिये जरूरी कायदे कानूनों के मुताबिक पार्किंग कर्मचारी वर्दी में होने चाहिए, सीसीटीवी कैमरे और रेलिंग जैसी बुनियादी चीजें नदारद हैं।
खास बात ये है कि नगर निगम ने बाकायदा टेंडर जारी कर फ्लाईओवर के नीचे की जगह को पार्किंग का दर्जा दिया है। जिसको भी ये ठेका मिला है उसने सभी कागजी औपचारिकताएं भी पूरी की होंगी। लेकिन जमीनी हालात जानने के लिए शायद ही नगर निगम के नुमाइंदे यहां पहुंचते हों। देहरादून शहर में कई गोरखधंधे खुलेआम और जिम्मेदार सिस्टम की सरपरस्ती में चल रहे हैं। यह गोरखधंधा ही कहा जाएगा कि हमने वाहन पार्क करते ही फोटो खींचने शुरू किये तो पर्ची काटने वाला आदमी हमारी ओर आया ही नहीं और ना ही उसने हमसे फीस के लिये कहा।