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जल्द होगा सर्वे : कितना भार सह सकते हैं उत्तराखंड के पहाड़ी शहर ?

Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड में जोशीमठ भू धंसाव के बाद पर्वतीय शहरों की धारण क्षमता को लेकर कई बातें हुई थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद इसे गंभीरता से लेते हुए संवेदनशील शहरों की धारण क्षमता और वहां निर्माण व नियोजन को लेकर अफसरों को दिशा निर्देश दिये थे। लेकिन उसके बाद यह बातें आई गई हो गई। अब हिमांचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुई भूस्खलन कीउ घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है। जिससे सात महीने बाद सरकारी मशीनरी फिर से सतर्क हो गई है। अब बताया जा रहा है कि मानसून के बाद भूधंसाव के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड के पर्वतीय शहरों की धारण क्षमता का सर्वे करवाया जाएगा। इस काम में विशेषज्ञ ऐजेंसियों की मदद ली जाएगी।
उत्तराखंड के मीडिया संस्थानों से मिल रही खबरों के मुताबिक मानसून के बाद राज्य के सभी शहरों की धारण क्षमता का अध्ययन शुरू हो जाएगा। विस्तार लेती आबादी और भवनों के बढ़ते दबाव से इन शहरों पर पड़ रहे प्रभाव का आंकलन किया जाएगा। आपदा प्रबंधन विभाग के उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने इस पर काम शुरू कर दिया है।
ऐसी होगी प्रक्रिया
-सर्वे के लिए विशेषज्ञ ऐजेंयिों की सूची तैयार की जाएगी
-केंद्र की ओर से जल्द टेंडर आमंत्रित किया जाएगा
-पहले चरण में प्रदेश के 15 शहरों की धारण क्षमता का अध्ययन होगा
-मसूरी, नैनीताल, गोपेश्वर, पौड़ी सरीखे घनी आबादी वाले बड़े शहर शामिल हैं

'Pen Point

गौरतलब है कि जोशीमठ के दरकने की घटना के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के सभी शहरों की धारण क्षमता का अध्ययन कराने के निर्देश दिए थे। इसी क्रम में यह जिम्मा आपदा प्रबंधन विभाग को दिया गया था। मीडिया सूत्रों के मुताबिक सर्वे के तहत इन बातों का अध्ययन किया जाएगा- कितने ढलान पर कितनी मंजिल के ऐसे भवन हैं, जो आपदा के लिहाज से खतरे में हैं। कितने डिग्री ढलान पर कितनी मंजिल के भवन बनाए जाने चाहिए। पर्वतीय शहरों के वे कौन सी भूमि व स्थान हैं, जहां भवन बनाए जाने का खतरनाक हो सकता है।

शिमला में हुए हादसे ने किया चौकान्ना
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुई भूस्खलन की घटना ने उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग के कान खोल दिये हैं। उत्तराखंड में मसूरी, नैनीताल, पौड़ी व गोपेश्वर सरीखे शहरों पर भी अंधाधुंध शहरीकरण का हाल शिमला जैसा ही है। लेकिन सवाल यह है क्या इस प्रक्रिया में रसूखदारों के होटलों और बड़ी इमारतों के निर्माण पर लगाम लगाई जाएगी या नहीं। अगर इस सर्वे के बाद योजना बनती है तो उसमें निर्माण को लेकर किस तरह के मानक अपनाए जाएंगे। दरअसल पहाड़ी शहरों में यह समस्या आज की नहीं बल्कि दशकों पुरानी है। लेकिन हर घटना के बाद हरकत में आने वाली मशीनरी की कार्यवाही नतीजे तक नहीं पहुंच पाती।

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