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आंखों देखी: इज़रायल पर हमास के हमले को करीब से देखा बल्लू ने

-उत्तरकाशी से ताल्लुक रखने वाले बलराम शाही बुधवार को सकुशल काठमांडू पहुंचे, हमले के वक्त गजा पट्टी से सटे इलाके में मौजूद थे

Pen Point : तारीख सात अक्‍टूबर, शनिवार का दिन और दक्षिण इज़रायल का नेगेव इलाका। जहां गाजा पट्टी से सटे मैगेन नाम के कीबूत (कॉलोनी) में हम मौजूद थे। यहां से गाजा की हर इमारत और हर गली साफ नजर आती है। ये दिन यहां के परंपरागत सुकोत त्‍यौहार का आखिरी दिन भी था। हर साल 24 सितंबर से 7 अक्‍टूबर तक मनाए जाने वाले इस त्‍यौहार में लोग ब्रत रखते हैं, और घर के बाहर बनाए गए एक लकड़ी के स्‍ट्रक्‍चर में रहते हैं। त्‍यौहार के साथ ही सब कुछ सामान्‍य चल रहा था। तभी हमले की आहट हुई। बम और गोलों की आवाज से पूरा इलाका दहलने लगा। अफरा तफरी मचने लगी। पता चला कि कीबूत के अंदर हमलावर घुस आए हैं। वहां सुरक्षा में लगा एक जवान मारा जा चुका है। हमलावरों को रोकने की कोशिश में 60 वर्षीय सिक्‍योरिटी इंचार्ज बारुक का पांव काट दिया गया है। लग रहा था कि वो हर किसी को मारते चले जा रहे हैं।

इज़रायल पर हमास के हमले की ये आंखों देखी दास्‍तान बलराम शाही ने बयां की। उत्‍तरकाशी से ताल्‍लुक रखने वाले बलराम इज़रायल में काफी वक्‍त बिता चुके हैं। बीते बुधवार को वो सही सलामत काठमांडू पहुंचे। जहां से उनका टूरिज़्म का व्‍यवसाय संचालित होता है। बलराम खुद को किस्‍मत का धनी मानते हैं कि वे युद्ध जैसे हालात से सही सलामत निकल आए। जबकि वे ठीक वहीं मौजूद थे जहां से हमास ने इजरायल पर अब तक के सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया।

बलराम आगे बताते हैं – हर कीबूत का अपना सुरक्षा तंत्र होता है। अगर मैगेन में सुरक्षाकर्मी नहीं होते तो हमारा बचना भी मुश्किल था। उसके बाद सभी लोगों को सुरक्षित ठिकानों में छिपना पड़ा। इसी बीच पता चला कि बगल वाले कीबूत बेरी में सौ से ज्‍यादा लोग बम और गोलीबारी से मारे जा चुके हैं। बेरी इज़रायल का सबसे अमीर और संपन्‍न कीबूत माना जाता था, लेकिन अब वो खंडहरों की बस्‍ती में तब्‍दील हो चुका है। कुछ ही घंटों बाद आर्मी पहुंची और लोगों को वहां से निकालना शुरू किया। मैं एक प्राईवेट कार से निकला। जबकि मेरे दोस्‍त की कार पर गोलियों के निशान थे, ऐसी कारों को वहां से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। लिहाजा उसे वहीं रुकना पड़ा और वो अगले दिन ही निकल सका।

बलराम ने बताया कि वहां से उन्‍होंने तेल अबीब का रूख किया। जहां उन्‍हें दो दिन रूकना पड़ा। इज़रायल से निकलने के लिये चार बार फ्लाइट बुक करनी पड़ी। जाहिर है कि युद्ध के इन हालात में कई बार उड़ानें रदद् हो रही थी। अफरा तफरी भरे माहौल में किसी तरह उन्‍हें फ्लाइट मिली। बहुत से लोग इजरायल से लौट रहे थे। लेकिन ऐसे हालात में सिर्फ खुद की जान बचाना जरूरी हो जाता है। लिहाजा और किसी के बारे में सोच भी नहीं सकते।

इज़रायल में काफी वक्‍त गुजार चुके बलराम शाही वहां के माहौल से बखूबी वाकिफ हैं। उन्‍होंने बताया कि- इतना बड़ा हमला पहले कभी नहीं हुआ। इजरायल का सुरक्षा घेरा बहुत पुख्‍ता है। पूरे बॉर्डर पर मजबूत फेंसिंग कैमरे और ग्राउंड सेंसर लगे थे। जिनके जरिये आर्मी बॉर्डर पर हर हरकत कड़ी निगाह रखते हुए मुस्‍तैद रहती थी। लेकिन जहां तक हमें मालूम हुआ है, उसके मुताबिक यह हमला बहुत बड़ी तैयारी के साथ हुआ। जिसमें ड्रोन का उपयोग करके इस सुरक्षा घेरे को तोड़ा गया।

छह दिन की जंग में दिखी थी इज़रायल की ताकत
पेन प्‍वाइंट से बातचीत के दौरान बलराम सिक्‍स डे वॉर यानी छह दिन की जंग का जिक्र भी किया। यह युद्ध 1967 में 5 जून से 11 जून तक लड़ा गया था। इंटरनेट स्रोतों से मिली जानकारी के मुताबिक छह दिन की इस जंग में इजरायल ने मिस्र और सीरिया की वायुसेना पर हमला कर दिया था. इस युद्ध में इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप, गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, येरूशलम और गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया. इस युद्ध से पहले तक गाजा पट्टी पर मिस्र और वेस्ट बैंक पर जॉर्डन का नियंत्रण था। इस लड़ाई में इजरायल के आठ दुश्‍मन देशों के करीब 20000 लोग मारे गए थे। जबकि इजरायल ने इसकी तुलना में करीब 1000 जानें गवांई थी।

(कीबूत – kibbutz, community) 

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