खतरे में राज्य के जंगल, हर किमी सड़क की कीमत 80 पेड़
– ऑल वेदर सड़क परियोजना समेत चार प्रमुख सड़क परियोजनाओं के निर्माण के लिए काटे गए 80 हजार से अधिक पेड़
PEN POINT (Pankaj Kushwal) :राज्य में एक किमी सड़क निर्माण की कीमत पर्यावरण को 80 पेड़ों की कुर्बानी देकर चुकानी पड़ रही है। ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, बढ़ते प्रदूषण जैसी चुनौतियों के सामने तेजी से घटते वन इन चुनौतियों को लगातार खतरनाक कर रहे हैं। ऐसे में पर्यावरणीय स्थिति के लिहाज से बेहद संवेदनशील इस हिमालयी राज्य में सड़क निर्माण के लिए चार परियोजनाओं में ही पिछले सात सालों में 80 हजार से ज्यादा पेड़ों को काटा गया। जबकि, अन्य परियोजनाओं के काटे गए पेड़ों की तादात लाखों में है।
पेन प्वाइंट ने बीते छह सालों के दौरान चार प्रमुख सड़क परियोजनाओं के लिए काटे गए पेड़ों के आंकड़ों का अध्ययन किया तो पाया कि इन छह सालों में सिर्फ चार सड़क परियोजनाओं के लिए ही राज्य में 80 हजार से अधिक पेड़ सरकारी आंकड़ों के मुताबिक काटे गए जबकि पर्यावरणविदों की माने तो इस संख्या में वह पेड़ शामिल नहीं है जो आकार में पतले और ऊंचाई में सामान्य पेड़ से कम होते हैं क्योंकि निर्माणदायी संस्थाएं ऐसे पेड़ों को पेड़ न मानकर झाड़ियां मान लेती है।
इन दिनों राज्य में चारधाम यात्रा को सरल सुगम बनाने के लिए बनाई गई चारधाम ऑलवेदर सड़क परियोजना खूब चर्चाओं में है।
अलग अलग हिस्सों में ऑल वेदर रोड को बारिश से हुए भारी नुकसान के बीच उन तमाम दावों की जरूर हवा निकल गई है जिसके अनुसार ऑलवेदर रोड मानसून के दौरान भी सुरक्षित रहेगी। साल 2016 दिसंबर महीने में चारधाम यात्रा को सरल सुगम बनाने के लिए केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी चारधाम ऑलवेदर सड़क का निर्माण शुरू किया गया। 12072 करोड़ रूपए की भारी भरकम रकम खर्च कर गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम तक जाने वाले सड़क मार्ग को चौड़ा करने के साथ ही सक्रिय भूस्खलन वाले इलाकों का उपचार करने के साथ ही इस परियोजना के तहत बारिश के दौरान भी इन सड़कों पर आवाजाही जारी रखने लायक स्थितियां बनाने की योजना थी। लेकिन, परियोजना के शुरूआत में ही इन योजनाओं की हवा निकलनी शुरू हो गई। लेकिन, इस योजना ने पर्यावरण को भारी नुकसान भी पहुंचाया। चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना 56000 से अधिक पेड़ काटे गए, जबकि इस परियोजना के निर्माण के चलते चारधाम मार्ग पर नए व भारी भूस्खलन क्षेत्र पैदा हो गए हैं जिनकी जद में लाखों पेड़ आ चुके हैं, जिनकी गिनती किया जाना भी संभव नहीं है। इस परियोजना के तहत ही रूद्रप्रयाग से माणा के बीच 6291 पेड़ और ऋषिकेश की रूद्रप्रयाग के बीच 3460 पेड़ काटे गए। जबकि, चारधाम ऑलवेदर परियोजना के तहत अभी उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच सड़क चौड़ीकरण का निर्माण प्रस्तावित है, जिसके लिए सिर्फ झाला से भैंरोघाटी के 25 किमी लंबे हिस्से के बीच 10 हजार से अधिक देवदार के विशाल पेड़ों का काटा जाना प्रस्तावित है और उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम के बीच 100 किमी के हिस्से में 50 हजार से भी ज्यादा पेड़ों का काटा जाना प्रस्तावित है।
अब बात करते हैं दूसरी सड़क योजना की। दिल्ली से देहरादून के बीच की दूरी को कम करने के लिए केंद्र सरकार कई महत्वपूर्ण सड़क परियोजनाओं पर काम कर रही है। इसके के तहत दिल्ली देहरादून के बीच निर्माणाधीन एक्सप्रेस वे के लिए ही देहरादून से सटे शिवालिक वन डिविजन के अंतर्गत ही 7747 पेड़ व 3 हजार से अधिक छोटे पेड़ काटे गए हैं, इन पेड़ों में साल, सागौन, नीम समेत कई प्रजातियों के वृक्ष शामिल थे। यह जानकारी खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया था।
दिल्ली समेत एनसीआर से मसूरी आने वाले पर्यटकों की राह जाममुक्त करने के लिए राज्य सरकार ने बीते साल देहरादून के जोगीवाला से सहस्रधारा रोड स्थित पेसिफिक गोल्फ एस्टेट के बीच 14 किमी लंबे मोटर मार्ग के चौड़ीकरण का कार्य शुरू किया। जिसके लिए 2000 से अधिक पेड़ों की कुर्बानी दी गई।
2017 में हल्द्वानी में राष्ट्रीय राजमार्ग 87 में रामपुर से काठगोदाम के बीच 90 किमी लंबे हाईवे के चौड़ीकरण के लिए काठगोदाम से रूद्रपुर के बीच ही 40 किमी के हिस्से में 15 हजार हरे पेड़ काटे गए, जबकि रूद्रपुर और रामपुर के बीच भी हजारों पेड़ों को कुर्बानी देकर इस सड़क चौड़ीकरण की कीमत चुकानी पड़ी।
रक्षा सूत्र आंदोलन के प्रेणता पर्यावरणविद् सुरेश भाई बताते हैं कि उत्तराखंड समेत पूरे देश में अब परियोजनाओं के निर्माण के लिए बेरहमी से बिना किसी पूर्व आकंलन के पेडों की अंधाधुंध कटाई चल रही है, लेकिन हिमालयी क्षेत्र को इसका सबसे बुरा खामियाजा उठाना पड़ रहा है। वह बताते हैं कि ऑल वेदर रोड़ परियोजना को जिस तरह से प्रचारित प्रसारित किया गया था कि यह हमेशा खुली रहने वाली सड़क परियोजना होगी और आवाजाही हर वक्त संभव होगी लिहाजा इस परियोजना के लिए पचास हजार से अधिक पेड़ काट दिए गए लेकिन परियोजना के पूरे होने से पहले ही इसे लेकर किए गए दावे हवाई साबित हो गए। आज मानसून के दौरान ही ऑल वेदर रोड़ करीब 450 जगहों पर ध्वस्त हो चुकी है और हर दिन भूस्खलन, भूधंसाव से सड़क जगह जगह बंद हो रही है। सुरेश भाई कहते हैं कि गंगोत्री तक हाईवे निर्माण के लिए झाला से लेकर भैरोंघाटी के बीच 25 किमी लंबे क्षेत्र में दस हजार पेड़ों को काटा जाना है लेकिन इन पेड़ों को काटे जाने के दौरान इनकी चपेट में आने से करीब 2 लाख से ज्यादा छोटे बड़े पेड़ आएंगे और ऐसा ही हर परियोजना में हो रहा है। सुरेश भाई दावा करते हैं कि 2021-22 में ही पूरे देश भर में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 10 लाख पेड़ काटे गए जबकि 2014 से लेकर 2022 तक 25 लाख पेड़ों की बलि दी गई। वह बताते हैं कि वन कानूनों को लचीला बनाकर अब जंगलों को साफ करने की राह खोल दी गई है।
सुरेश भाई बताते हैं कि सरकारी आंकड़ों की माने तो देश भर में हर साल 10 करोड़ पेड़ों का वृक्षारोपण किया जाता है, सालों से हो रहे वृक्षारोपण का नतीजा क्या है इसका अध्ययन तक नहीं किया गया। वह बताते हैं कि उत्तराखंड में ही नमामि गंगे योजना के तहत गंगोत्री से लेकर गंगासागर के बीच गंगा तट के आस पास की 30 हजार हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण होना था लेकिन फोटो खींचने तक की रस्मअदायगी वाले इन वृक्षारोपण के बाद न तो यह सुनिश्चित किया जाता है कि पेड़ कैसे सुरक्षित रहकर पले बढ़े न ही एक दशक के दौरान कोई पेड़ इस योजना के तहत दिखा है।
20 सालों में वन विभाग ने गंवाई 50 हजार हेक्टेयर जमीन
वन विभाग की ओर से साल 2020 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2000 से लेकर नवंबर 2020 तक वन विभाग ने विभिन्न विकास योजनाओं, व्यावसायिक उद्देश्य के लिए 50 हजार हेक्टेयर वन भूमि गंवाई। यह वन भूमि वन विभाग को राज्य सरकार समेत विभिन्न विभागों, संस्थानों को हस्तांतरित करनी पड़ी। जिसमें सबसे ज्यादा खनन के लिए 8760 वन भूमि गंवाई। जबकि, सड़क निर्माण के लिए 7539 हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरित की गई। वहीं, विद्युत लाइनें बिछाने के लिए 2295 हेक्टेयर वन भूमि गंवाई। इसके अलावा रेलवे, सुरक्षा, व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए 20 हजार हेक्टेयर वन भूमि देनी पड़ी।