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फ्रैंक स्मिथ रास्ता भटक गया था और उसे फूलों की घाटी का तोहफा मिल गया !

Pen Point, Dehradun : सन् 1931 की बरसात का मौसम था। गढ़वाल हिमालय के कामेत हिमशिखर पर एक ब्रिटिश पर्वतारोही दल की चढ़ाई जारी थी। उस वक्त के दिग्गज पर्वतारोही एरिक शिम्पटॉन इस दल के लीडर थे। इसके अलावा फ्रैंक स्मिथ, आरएल होल्ड्वर्थ भी दल में शामिल थे। 20 जुलाई को समिट कैंप से 25,500 फीट उंची चोटी को तीनों पर्वतारोहियों ने लेवा और नीमा शेरपा के साथ जीत लिया। इस सफल आरोहण के साथ यह दल उस समय तक हिमालय की सबसे उंची चोटी पर चढ़ाई करने वाला दल बन गया। इस चढ़ाई का मकसद बद्रीनाथ रेंज की अन्य चोटियों और अलकनंदा और गंगोत्री ग्लेशियरों की स्थिति का जायजा लेना था। समिट के बाद दल ने उतरना शुरू किया।
कामेत पर चढ़ाई के संस्मरण में फ्रैंक स्मिथ लिखते हैं कि वापसी में एरिक शिम्पटॉन और होल्ड्सवर्थ ने एकाधिक अन्य छोटी चोटियों पर चढ़ाई की। इसके बाद माणा उतरने के बाद उन्होंने भ्यूंडार घाटी का रूख किया। जोशिमठ से उपर अलकनंदा के प्रवाह के साथ चढ़ाई करते हुए ग्लेशियरों की अलग ही दुनिया दिखती है। पहाड़ से नीचे घाटियों की ओर पसरे ग्लेशियर मानो खुद ही घाटियों की बनावट तय कर रहे हों। वे लिखते हैं-मैं और होल्ड्सवर्थ मानो ग्लेशियरों के घेरे में फंस से गए थे, हमें वापसी का कोई रास्ता साफ तौर पर नजर नहीं आ रहा था। इसी दौरान एक घाटी ने उन्हें काफी विस्मित किया, जिसमें उन्हें फूलों की कई प्रजातियां नजर आ रही थी। लेकिन बरसात का समय होने के कारण बहुत से पौधे मुरझा रहे थे, जबकि कई फूल अपना मौसमी चक्र पूरा कर रहे थे।
फ्रैंक स्मिथ ने तभी इस घाटी में दोबारा आने का फैसला किया। ठीक छह साल बाद 1937 की गर्मियों में फ्रैंक स्मिथ फिर से रानीखेत में थे। उन्होंने दार्जिलिंग से ओम्डी, पासंग और लेवा शेरपा का बुलवा लिया था। जून के पहले हफ़ते में कुछ नेपाली पोर्टर्स के साथ वे ग्वालदम होते हुए वे भ्यूंडार घाटी पहुंच गए। वहां से उन्होंने उस घाटी का रूख किया जहां उन्हें फूल दिखे थे। घाटी को देखकर फ्रैंक स्मिथ अचरज में पड़ गए। उन्होंने यहां करीब तीन सौ प्रजाति के फूल प्रजातियों का पता लगाया। जिनमें दुर्लभ ब्ल्यू पॉपी भी शामिल था। इस तरह के कुछेक पौधे उन्हें सिक्किम के हिमालयी इलाके में भी दिखे थे। लेकिन यहां तो दूर तक फैला एक बगीचा ब्लू पॉपी का ही नजर आ रहा था। कई फूलों की प्रजातियों के पौधे वह अपने साथ ऑस्ट्रेलया भी ले गए।

फूलों की घाटी के बारे में दुनिया को बताया
इस अभियान से वापस लौटकर फ्रैंक स्मिथ ने वैली ऑफ फ़लावर किताब लिखकर दुनिया को इस अद़भुत जगह से रूबरू करवाया। फूलों की घाटी को लेकर उनके खींचे गए फोटोग्राफ्स काफी चर्चित हुए। उसके बाद कई वनस्पति विज्ञानियों के लिए फूलों की घाटी पसंदीदा जगह बन गई। समय के साथ यह कुदरत के दीदार और रोमांच के शौकीनों की सैरगाह बन गई।

यूनेस्को ने दिया विश्व धरोहर का दर्जा
करीब 87 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली हुई फूलों की घाटी को बाद में भारत सरकार ने संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया। यह नंदादेवी अभयारण्य का एक हिस्सा है। सन् 1982 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया। हालांकि पर्यटकों की बढ़ती तादाद और हिमालय की बदलती आबो हवा के चलते यहां कई दुर्लभ फूल प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है।

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