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पुण्यतिथि : पहाड़ का सपूत जो बना उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री

देश के गृहमंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत की आज पुण्यतिथि 

PEN POINT, DEHRADUN : उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री कौन था ? सामान्य ज्ञान में यह सवाल जरूर पूछा जाता होगा, और शायद आपको पता भी हो कि उत्तराखंड के कुमाउं का पूत उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री व बाद में देश का गृह मंत्री बने गोविंद बल्लभ पंत का आज के ही दिन 1961 में निधन हुआ था। एक प्रसिद्ध वकील जिसने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपना पेशा भी छोड़ा साथ ही अंग्रेजों से आजादी के लिए कई बार जेल यात्रा भी की।
गोविंद बल्लभ पंत का जन्म अल्मोड़ा में हुआ था। मां का नाम गोविंदी बाई था। उनके नाम से ही गोविंद बल्लभ पंत को नाम मिला था। उनके पिताजी सरकारी नौकरी में थे। पिताजी के लगातार होते तबादलों के चक्कर में गोविंद बल्लभ पंत को उनके नाना के पास पलने लिखने को छोड़ दिया गया। गोविंद बचपन में बहुत मोटे थे, कोई खेल नहीं खेलते थे। एक ही जगह बैठे रहते इस चक्कर में घर वाले इसी वजह से इनको थपुवा कहते थे। लेकिन गोविंद बल्लभ पंत पढ़ाई में होशियार थे।
गोविंद बल्लभ पंत वकील बने। यह प्रसिद्ध था कि गोविंद बल्लभ पंत कभी झूठे केस नहीं लेते थे। कई बार उन्होंने झूठे केस के बारे में पता चलने पर केस छोड़ दिया था। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कुली बेगार प्रथा के खिलाफ लड़ने वाले वह शीर्ष पुरूष थे। कुली बेगार कानून में था कि स्थानीय लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान मुफ्त में ढोना होता था। गोविंद बल्लभ पंत ने काकोरी कांड के अभियुक्त रहे बिस्मिल और उसके साथियों का भी मामला लड़ा था।

राजनीति का सफर
आज से कारीब 102 साल पहले गोविंद बल्लभ पंत 1921 लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गये। तब यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध होता था। फिर बाद में नमक आंदोलन में गिरफ्तार हुए। 1933 में चौकोट के गांधी कहे जाने वाले हर्ष देव बहुगुणा के साथ गिरफ्तार हुए। बाद में कांग्रेस और सुभाष बोस के बीच डिफरेंस आने पर मध्यस्थता भी की। 1942 के भारत छोड़ो में गिरफ्तार हुए। तीन साल अहमदनगर फोर्ट में नेहरू के साथ जेल में रहे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके स्वास्थ्य का हवाला देकर उन्हें जेल से मुक्त करवाया। 1932 में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका के चलते अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेजा तो पंत पं. जवाहर लाल नेहरू के साथ बरेली और देहरादून जेलों में रहे। उस दौरान ही नेहरू से इनकी गहरी दोस्ती हो गई। नेहरू इनसे बहुत प्रभावित थे। जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो बहुत सारे लोगों के बीच से पंत का ही नाम नेहरू के दिमाग में आया था।  नेहरू का पंत पर भरोसा आखिर तक बना रहा।
1937 में पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अंग्रेजों की सरपरस्ती में पहली बार भारतीयों को सरकार बनाने का मौका मिला तो यह मौका पंत जी के गोदी में आ गिरा। उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के बाद पंत ने नेहरू के प्रयोग को सफल किया। गोविंद बल्लभ पंत 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1951 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में वो बरेली म्युनिसिपैलिटी से जीते थे।

ईमानदारी की मिसाल
एक बार गोविंद बल्लभ पंत ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था। जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे। पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया। कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है, ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद भुगतान करना चाहिए बस चाय का बिल जरूरत पास हो जाएगा। अधिकारियों ने तर्क दिया कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है लिहाजा इस बिल को पास करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अगले दिन चाय के साथ नाश्ता गोविंद बल्लभ पंत की बैठक में आया था। टेबल पर सजे नाश्ते को देखकर पंत ने अपनी जेब से रुपये निकाले और बोले कि चाय का बिल पास हो सकता है लेकिन नाश्ते का नहीं सो नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा। उन्होंने कहा कि नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता हूं उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं।

पटेल के बाद गृहमंत्री का पद संभाला
उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन का गोविंद बल्लभ पंत को नेहरू ने बड़ा ईनाम दिया। हिमालयी क्षेत्र का यह बेटा 1955 में केंद्र सरकार में गृह मंत्री बना। गृहमंत्री बनते ही देश में राज्यों का गठन भाषाई आधार पर करने का फैसला लिया। तब बहुत विरोध हुआ लेकिन उनका यह विचार बाद के सालों में भारत के राज्य गठन का लोकप्रिय नियम बन गया। राज्यों का गठन भाषाई आधार पर करने और उनके अनेक सामाजिक कार्यों के लिए 1957 में उन्हें देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
आज के ही दिन 1961 में उनका निधन हो गया। देश की आजादी के बाद जिन तीन राजनेताओं का नाम सबसे आगे लिया जाता है कि उसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल के बाद गोविंद बल्लभ पंत का नाम ही आता है। पहाड़ी कस्बे में जन्मा यह शख्स देश की राजनीति का आधारस्तंभ बना और देश को एक नई दिशा दिखा गया।

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