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जनरल विपिन रावत : दुश्मन को घर में घुसकर मारने में माहिर जेंटलमैन अफसर

-मूलरूप से पौड़ी निवासी जनरल विपिन रावत की 65वीं जयंती आज, थल सेना प्रमुख पद से रिटायर होने के बाद नियुक्त हुए देश के पहले सीडीएस, उन्‍हें सर्जिकल स्‍ट्राइक का माहिर माना जाता था।
PEN POINT DEHRADUN : जनरल बिपिन रावत, गोरखा रेजिमेंट में बतौर लेफ्टिनेंट भर्ती हुआ कैडेट, जो बाद में देश का थलसेनाध्यक्ष तो बना ही साथ ही जिसके हिस्से देश के पहले सीडीएस बनने का भी गौरव आया। मूलरूप से उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले जनरल बिपिन रावत सीडीएस बनने के बाद कई बार उत्तराखंड आए थे, उन्होंने उत्तरकाशी जनपद से लगने वाली चीन सीमा तक का दौरा भी किया। उन्‍हें सर्जिकल स्‍ट्राइक का माहिर माना जाता था। साल 2015 में नागा उग्रवादियों के खिलाफ सर्जिकल स्‍ट्राइक हो या‍ फिर सितंबर 2016 में पीओके में घुसकर आतंकियों को ठिकाने लगाने की मुहिम हो, दोनों ही जनल रावत की अगुआई में सफलतापूर्वक अंजाम दी गई। इसके अलावा अपनी पूरी सर्विस के दौरान उन्‍होंने देश की सीमाओं की निगहबानी करते हुए कितने ही अभियान पूरे किये। जिनमें से कई लोगों या मीडिया के सामने नहीं आ सके। जनरल रावत के भीतर अफसरों वाली हनक नहीं थी, ओहदे में वे जितने बड़े सैन्‍य अफसर थे उतनी ही बड़े दिल से वे फौज और फौजी के कर्तव्‍यों का सादगी से सम्‍मान करते थे। उनसे जुड़ा एक किस्‍सा कुछ यूं है-

एक बार आर्मी चीफ बिपिन रावत गैर सैन्य वेशभूषा में ही अपनी निजी कार से दोस्त के घर पहुचें थे। उस रात को 11 बजे जनरल रावत अपनी पत्नी मधुलिका रावत के साथ निकले. दिन भर की ड्यूटी के बाद जनरल रावत सादी पोशाक में थे।
थोड़ी ही देर में बिपिन रावत अपनी कार से अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के आर्मी कैंटोनमेंट में स्थित अपने दोस्त के घर में पहुंचते हैं। जैसे ही उनकी कार कैंट के दरवाजे पर पहुंची उन्हें एक सेना के जवान ने रोक दिया। बिपिन रावत पहले तो ये बताते हैं कि उनका आर्मी का एक दोस्त यहां रहता है और वे उनसे मिलने आए हैं. लेकिन जवान उनकी कार को अंदर प्रवेश देने से साफ इंकार कर देता है। इस पर जरनल बिपिन रावत उस जवान को बताते हैं कि वह चीफ आफ आर्मी स्टाफ बिपिन रावत हैं। सादे कपड़ों और प्राइवेट कार में सवार आदमी द्वारा खुद को आर्मी चीफ बताने के बाद भी सुरक्षा गार्ड उन्हें गाड़ी किनारे पार्क लगाने को कहता है और अंदर प्रवेश से साफ मना कर देता है। जवान जनरल रावत को प्रवेश तो नहीं देता है लेकिन उन्हें कहता है कि अगर वह अपने मित्र से मिलना चाहते हैं तो उसे गेट पर बुलवा सकते हैं लेकिन वह उन्हें प्रवेश नहीं देंगे। जनरल रावत के बुलावे पर उनका फौजी अधिकारी मित्र गेट पर आया तब तक रावत अपनी पत्नी के साथ अपनी कार में ही गेट के किनारे इंतजार करते रहे। जनरल रावत के मित्र के गेट पर आते ही उनके मित्र से गार्ड से पूछा कि क्या तुम नहीं जानते हो कि जिसे तुमने रोका है वह सेना का सर्वोच्च अधिकारी है। तभी जनरल रावत अपना रास्ता रोकने वाले सिक्योरिटी ऑफिसर का मुस्कुराते हुए पीठ थपथपाते हैं और उसकी तारीफ करते हुए कहते हैं कि ये तो अपना काम कर रहा था जो सेना के जवान का सबसे बड़ा फर्ज है। जनरल बिपिन रावत इस जवान की कर्तव्यपरायणता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अगली सुबह आर्मी मुख्यालय को पत्र लिखा और इस सिक्योरिटी ऑफिसर की तारीफ की।

एक निजी अखबार को दिए इंटरव्यू में सीडीएस बिपिन रावत के पत्नी के भाई यशवर्धन बताते हैं कि सीडीएस बिपिन रावत केवल कर्म से ही नहीं, मन से भी पूरी तरह फौजी थे। वे कभी निश्चिंत बैठना नहीं चाहते थे, न ही दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में पोस्टिंग लेकर आराम की जिंदगी चाहते थे। हर समय उनकी इच्छा यही होती थी कि वे देश के सैनिकों के साथ, उनके बीच में रहें। यशवर्धन सिंह ने बताया कि जनरल रावत हमेशा कहते थे कि उन्हें महानगरों में पोस्टिंग नहीं चाहिए। वे फौजी हैं और हर समय देश के बॉर्डर पर सैनिकों के साथ रहना चाहते हैं।

परिवार की फौजी परंपरा

जनरल रावत के परिवार में हमेशा से देश सेवा की परंपरा रही है। बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश के गढ़वाल जिले के पौड़ी (वर्तमान में पौड़ी गढ़वाल जिला, उत्तराखण्ड) में हुआ था। इनका परिवार कई पीढ़ियों से भारतीय सेना में सेवा दे रहा था। जनरल रावत की शुरूआती शिक्षा देहरादून के कैंबरीन हॉल स्कूल और शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल में हुई। इसके बाद इन्होने खडकवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया। रावत ने भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि प्राप्त कि और यहाँ उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सोर्ड ऑफ़ ऑनर दिया गया।

पिता की यूनिट में ही पाया कमीशन

दिसंबर 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवी बटालियन में कमीशन ऑफिसर बने। जो कभी उनके पिता की यूनिट हुआ करती थी। बतौर लेफ्टिनेंट उनका सफर शुरू हुआ और इस सफर में वह आर्मी चीफ के पद और सीडीएस के पद तक पहुंचे। वे 31 दिसंबर 2016 से थलसेना प्रमुख भी रहे। उन्हें पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर में कामकाज का अनुभव रहा। सीडीएस बनाए जाने से पहले बिपिन रावत 27वें थल सेनाध्यक्ष थे। आर्मी चीफ बनाए जाने से पहले उन्हें 1 सितंबर 2016 को भारतीय सेना का उप सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था। 1 सितंबर 2016 को सेना के उप-प्रमुख का पद संभाला तथा 31 दिसंबर 2016 को सेना प्रमुख पद की जिम्मेदारी मिली। सेवानिवृत होने के तुरंत बाद ही उन्हें 01 जनवरी 2021 को रक्षा प्रमुख (भारत) के पद पर नियुक्ति दी गई। वह देश के पहले सीडीएस बने।

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