गोवा मुक्ति दिवस: कैसे 36 घंटों में ही 451 साल की दासता से आजाद हुआ गोवा
– भारत के आजाद होने के साढ़े 14 साल बाद गोवा हो सका पुर्तगाली शासन से आजाद, भारतीय सेना के हस्तक्षेप के बाद पुर्तगाली शासन को छोड़ना पड़ा गोवा
PEN POINT, DEHRADUN : 15 अगस्त 1947, अंग्रेजों की चार सदियों की दासता से भारत मुक्त हो चुका था, हालांकि, इस आजादी की कीमत भारत से विभाजन के रूप में चुकाई। देश आजाद हो चुका था और वह अपना भाग्य विधाता भी खुद बन चुका था। अगले पांच सालों में देश ने अपना संविधान तो लागू किया ही साथ ही पहले आम चुनाव का भी आयोजन किया। लेकिन, देश का एक हिस्सा अभी भी चार सौ सालों से विदेशी ताकत का गुलाम बना हुआ था। भारत तो 1947 में आजाद हो चुका था लेकिन भारत के एक हिस्से को आजादी पाने के लिए साढ़े 14 साल का लंबा वक्त लगा। तारीख थी 19 दिसंबर और साल था 1961, जब 451 सालों से गोवा पर कब्जा जमाए पुर्तगालियों को भारतीय सेना ने खदेड़ दिया और गोवा आजाद हो सका। गोवा के साथ ही दमन और दीव को भी आज के ही दिन आजादी मिली।
20 मई 1498, भारत के दक्षिण समुद्रतट पर स्थित केरल के कलीकट समुद्रतट पर पुर्तगाल का एक नाविक अपने कदम रखता है। पहली बार समुद्र के रास्ते कोई विदेशी भारतीय धरती पर पहुंचा था। वास्को डी गामा नाम के इस पुर्तगाली व्यापारी ने समुद्रमार्ग से एक नई दुनिया खोज निकाली थी जिसकी अमीरी के उसने सिर्फ किस्से सुने थे। 1498 में भारत को समुद्री मार्ग से खोजने के 12 साल बाद यानि 1510 को पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा कर लिया। साल 1510 में गोवा को अपने कब्जे में लेने के बाद पुर्तगाली यहां अगले 451 सालों तक जमे रहे। अंग्रेजी हुकूमत से भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजादी पा ली लेकिन पुर्तगालियों ने गोवा, दमन और दीव को छोड़ने से इंकार कर दिया। 19 दिसंबर 1961 में भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय के 36 घंटों में आखिरकार पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा को आत्मसमर्पण के पन्नों पर हस्ताक्षर कर इसे छोड़ना पड़ा। हालांकि, भारतीय सेना के गोवा को मुक्त करने के 36 घंटों के इस विषेश अभियान से पहले गोवा मुक्ति के लिए एक लंबा अहिंसक आंदोलन भी चलाया जा चुका था।
डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में साल 1946 से ही गोवा को पुर्तगाली शासन से आजाद करने का अभियान छेड़ा जा चुका था। तब पूरे भारत में आजादी के आंदोलन में जुड़े नेताओं को विरोध प्रदर्शन, जनसभा करने की अनुमति थी जबकि इसके उलट गोवा में पुर्तगाली शासन में भारतीय मूल के लोगों को किसी भी तरह के सार्वजनिक आयोजन, सभा की अनुमति नहीं थी। डॉ. राममनोहर लोहिया स्वास्थ्य लाभ के लिए साल 1946 में एक निमंत्रण पर गोवा पहुंचे थे लेकिन जब उन्होंने वहां महसूस किया कि पुर्तगालियों का शासन अंग्रेजी शासन से ज्यादा क्रूर है तो उन्होंने गोवा को आजाद करने का आंदोलन छेड़ दिया। नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने वाले पुर्तगाली शासन को चुनौती देते हुए राममनोहर लोहिया ने खराब सेहत के बावजूद पहली बार 1946 में गोवा में जनसभा को संबोधित करते हुए पुर्तगाली शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई तो पुर्तगाली शासन ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लोहिया की गिरफ्तारी का महात्मा गांधी ने कड़ा विरोध किया और देश भर में पुर्तगाली शासन की इस हरकत का विरोध होने लगा तो पुर्तगाली पुलिस ने लोहिया को रिहा कर गोवा से बाहर छोड़ दिया और अगले पांच साल के लिए उनके गोवा प्रवेश पर रोक लगा दी। हालांकि, लोहिया अपने हिस्से का काम कर चुके थे इसके बाद गोवा में स्थानीय लोग पुर्तगाली शासन से आजादी के लिए लामबंद होने लगे। साल 1947 में जब भारत अंग्रेजी शासन से आजाद हो गया तो गोवा में भी आजादी के लिए छटपटाहट बढ़ने लगी। साल 1954 में गोवा विमोचन सहायक समिति के बैनर तले पुर्तगाली शासन से आजादी के लिए स्थानीय लोग सत्याग्रह व सविनय अवज्ञा की तर्ज पर आंदोलन करने लगे।
भारत की आजादी के बाद साल 1954 में फ्रांसीसी पांडिचेरी को छोड़ कर चले गए लेकिन पुर्तगाली अभी भी गोवा में जमे हुए थे। उन्होंने भारत सरकार के गोवा छोड़ने के अनुरोध को भी सिरे से नकार दिया था। नेटो समूह का सदस्य पुर्तगाल अपनी पूरी हनक दिखा रहा था और तब तक देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी किसी तहर के सैन्य टकराव के पक्ष में नहीं थे। साल 1955 में भारत सरकार ने गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए लेकिन इसका बुरा असर पुर्तगाली सरकार के बजाए आम लोगों पर पड़ा।
पुर्तगाल की अकड़ कम होने का नाम नहीं ले रही थी वहीं समाजवादी आंदोलन से जुड़े कई आंदोलनकारी भी गोवा की आजादी के लिए भारत सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए थे। भारत अभी भी शांतिपूर्ण तरीके से गोवा को आजाद करवाने के पक्ष में थी लेकिन तभी नवंबर 1961 में समुद्र में मछली पकड़ने गए मछुवारों के एक दल पर पुर्तगाली सैनिकों ने गोलीबारी कर दी जिसमें एक मछुवारे की मौत हो गई। इस घटना ने भारत सरकार के सब्र को तोड़ दिया। आखिरकार 17 दिसंबर 1961 को 30 हजार सैनिकों को गोवा से पुर्तगालियों को हटाने के लिए भेजा गया। शुरूआत मंे पुर्तगाल भी भारतीय सैनिकों से युद्ध के लिए तैयारी के मूड में दिख रहा था लेकिन जैसे जैसे भारतीय सैनिकों का हुजूम गोवा के पास पहुंच रहा था पुर्तगाली सैनिकों का हौसला भी टूट रहा था। उस दौरान एक प्रचलित किस्सा है कि पुर्तगाली सैनिक सिर्फ कच्छे बनियानों मंे ही घूम रहे थे उन्हें बताया गया था कि यदि भारतीय सैनिकों ने उन्हें पुर्तगाली सैनिकांे की वर्दी में देखा तो वह उन्हें क्रूरता से मार डालेंगे। 17 दिसंबर 1961 को शुरू किया गया ऑपरेशन विजय 19 दिसंबर 1961 को उस वक्त सफल करार दिया गया जब गोवा में तैनात पुर्तगाली जनरल ने आखिरकार गोवा से अपना बोरिया बिस्तर समेटने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर लिए। आखिरकार देश की आजादी के साढ़े 14 साल बाद गोवा आजाद भारत का हिस्सा बन गया और पुर्तगाल की 451 साल लंबी दासता से मुक्ति पा सका।