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ग्रामोफोन पर जीत सिंह की आवाज में सबसे पहले सुनाई दिए गढ़वाली गीत

ग्रामोफोन यंग इंडिया (आज का एचएमवी) ने 75 साल पहले जीत सिंह नेगी के छह गीतों का जारी किया था रेकार्ड

पेन प्वाइंट, देहरादून। गढ़वाल के ऐसे पहले गायक जिनका गाना 75 साल पहले तब की प्रसिद्ध ग्रामोफोन कंपनी यंग इंडिया ने रेकार्ड किया था,  इस उपलब्धि को पाने वाले वह जहां पहले गढ़वाली गायक थे तो साथ ही एक ऐसे नाटक लेखक भी थे जिनका नाटक रेकार्ड करने चीन का प्रतिनिधि मंडल भारत पहुंचा और चीन के रेडियो पिकिंग में प्रसारित भी हुआ। गढ़वाली लोक गीतों के प्रथम पुरूष कहे जाने वाले जीत सिंह नेगी की आज 98 वीं जयंती है। आज के ही दिन 2 फरवरी 1925 को पौड़ी जिले के अयाल गांव में जीत सिंह नेगी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम सुल्तान सिंह नेगी और माता का नाम रूपदेई था। जीत सिंह नेगी की शुरूआती शिक्षा पौढ़ी गढ़वाल में हुई। इनके पिता ब्रिटिश सेना में थे तो पिता के तबादले के साथ इन्होंने भी बर्मा और लाहौर समेत अलग अलग शहरों में अपनी 12वीं तक की शिक्षा पूरी की। परिवार की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी तो इन्होंने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। बर्मा में पढ़ाई के दौरान इनकी संगीत के प्रति गहरी रूचि जगी। वापिस पौड़ी लौटने के बाद उन्होंने गढ़वाली गाने लिखने व गाने शुरू किए। पौड़ी में कुछ समय बिताने के बाद उन्होंने मुंबई का रूख किया और वहां तब के महान निर्माता निर्देशक पृथ्वी राज कपूर के साथ दो फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया। इसी दौरान उनकी रूचि गढ़वाली गीतों में बनी रही और वह गीत गुनगुनाते रहते। इसी बीच उनके छह गानों को 1949 को तब की प्रसिद्ध ग्रामोफोन कंपनी यंग इंडिया ने रेकार्ड किए और उसका प्रचार भी किया। तब ग्रामोफोन सिर्फ हिंदी फिल्मों और गीतों का ही रेकार्ड जारी किया करता था लेकिन पहली बार किसी पहाड़ी गायक के गीतों को रेकार्ड करना जीत सिंह नेगी के गायन की गुणवत्ता को दर्शाता है। इन गानों के बाजार में आते ही जीत सिंह नेगी प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गये। उनके सांस्कृतिक दल को देश के अलग अलग हिस्सों में कार्यक्रमों के लिए बुलाया जाने लगा।

बेहतरीन नाटककार भी थे

गीतकार होने के साथ ही जीत सिंह नेगी एक नाटककार भी थे। उनके लिखे नाटक शाबासी मेरो मोती ढांगा, रामी बौराणी, मलेथा की गूल जैसे कई उनके नाटक भी लोकप्रिय हुए। शाबासी मेरो मोती ढांगा उनका नाटक इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे रेकार्ड करने चीन का प्रतिनिधि मंडल तक भारत पहुंचा था। चीनी प्रतिनिधि मंडल ने कानपुर में यह नाटक न केवल रेकार्ड किया बल्कि वापिस चीन जाकर इसे चीन के रेडियो चैनल रेडियो पीकिंग से प्रसारित भी किया था।

ऑल इंडिया रेडियो पर पहले गढ़वाली गायक

जीत सिंह नेगी के हिस्से एक और बड़ी उपलब्धि तब आई जब वह ऑल इंडिया रेडियो पर उनके गाने प्रसारित होने लगे। ऑल इंडिया रेडियो पर गाने प्रसारित होने वाले वह पहले गढ़वाली लोक गायक बने। 1950 के दशक में जब जीत सिंह नेगी के गीत ऑल इंडिया रेडियो से प्रसारित होने लगे तो उनके गीतों से प्रवासी उत्तराखंडवासियों को गढ़वाल से जोड़ने का भी काम किया। 21 जून 2020  को 95 वर्ष की उम्र में देहरादून में उनका निधन हो गया।

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