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“HEY RAM” पांच कोशिशों के बाद छठवीं बार बापू को मार सकी हिंसा

-आजादी के लिए अहिंसक आंदोलन के अगुवा महात्मा गांधी की हत्या की दो दशकों में छह बार हुई कोशिश, छठवीं बार मिली हत्यारों को सफलता
-शांति के अग्रदूत की हत्या को लेकर अंग्रेजों ने भी की थी कोशिश, खुद इंग्लैंड के प्रधानमंत्री भी बापू की मौत की मांगते रहे दुआ
पंकज कुशवाल, देहरादून।
दुनिया को अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले शांतिदूत महात्मा गांधी की हत्या को आज पूरे 75 साल हो चुके हैं। जब देश विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगों की चपेट में था, दो नए देश आकार ले रहे थे और करोड़ों लोगों की जिंदगी अनिश्चिताओं में फंसी थी। इस बीच एक संत लगातार शांति की कोशिशों में लगा था हुआ। महज एक धोती में लिपटा हुआ यह संत 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना करके लौट रहा था तो कथित तौर पर विभाजन के फैसले से नाखुश एक युवा नाथुराम गोड़से ने इस 80 वर्षीय शांतिदूत के सीने को गोलियों से छलनी कर दिया। कुछ ही देर में दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी की देह ठंडी पड़ चुकी थी, औपचारिक घोषणा होनी बाकी थी लेकिन पूरे देश में खबर फैल चुकी थी कि देश के बापू इस देह को त्याग चुके हैं। आज के ही दिन बापू की हत्या भले ही हुई हो लेकिन अंग्रेजी शासन के साथ कट्टरपंथी लोगों के लिए महात्मा गांधी लंबे समय से आंखों की किरकिरी बन चुके थे। 30 जनवरी 1948 से पहले पांच बार उनकी जान लेने की नाकाम कोशिशें हो चुकी थी। गांधी पर पहला हमला 1934 में हुआ था। उन्हें पुणे में एक समारोह में जाना था। दो गाड़ियां जो दिखने में लगभग एक जैसी थी उनके इस्तकबाल को पहुंची थी। एक गाड़ी में कार्यक्रम के आयोजक और दूसरी में महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी थे। आयोजकों की गाड़ी आगे चल रही थी और गांधी जी की गाड़ी पीछे। इसी बीच अजीब की घटना घटी, एक रेलवे क्रासिंग को पार करते हुए आयोजकों की गाड़ी आगे निकल गई लेकिन क्रासिंग गेट बंद होने की वजह से गांधी की गाड़ी रूक गई। इसी बीच बिल्कुल फिल्मी अंदाज में आयोजकों की गाड़ी में बम धमाका हुआ। ट्रेन का गेट बंद न होता तो गांधी जी की गाड़ी भी इस बम धमाके की चपेट में आ जाते और देश की कहानी कुछ दूसरी होती।

इसके पूरे एक दशक बाद 1944 में महात्मा गांधी आगा खां पैलेस में अपनी कैद से छूटे थे और पंचगनी में जाकर रूके। वहां कुछ लोग उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। दो तरफा संवाद पर विश्वास रखने वाले गांधी जी प्रदर्शनकारियों के पास गये और यह समझने की कोशिश कर रहे थे वे लोग उनके खिलाफ नारेबाजी क्यों कर रहे हैं। वे प्रदर्शनकारियों से बात कर रहे थे तभी एक आदमी छुरा लेकर उनकी कमजोर सी देह की तरफ दौड़ा, उनके साथ मौजूद लोगों ने उसे पकड़ लिया, बमुश्किल गांधी जी की जान बची। असल में ये लोग इस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि गांधी अगले कुछ महीनों में पाकिस्तान बनाने की जिद करने को बैठे जिन्ना से बात करने जा रहे थे। कट्टरपंथी पाकिस्तान व हिंदुस्तान बनाने की जिद लेकर तो बैठे थे लेकिन विभाजन को लेकर भी एकराय नहीं थे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलने वाले स्वतत्रंता आंदोलनों में चंपारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चंपारण में आंदोलन के दौरान भी महात्मा गांधी की जान लेने की दो बार कोशिश की गई। साल 1946 में नेरूल के पास गांधी जिस रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे, उसकी पटरियां उखाड़ दी गईं और ट्रेन उलट गई, इंजन कहीं जाकर टकरा गया उस घटना में भी गांधी जी बाल बाल बचे। तब आया साल 1948 जहां महात्मा गांधी पर दो बार जानलेवा हमला हुआ। पहली बार तो जब मदनलाल बम फोड़ना चाहते थे, वो फूटा नहीं और लोग पकड़े गए। छठवीं बार नाथूमरा गोड़से ने 30 जनवरी, 1948 को गोली चलाई और महात्मा गांधी की जान चली गई।

'Pen Point
अंग्रेजों ने भी गांधी की जान लेने की कोशिश की
नील मजदूरों की दशा को देखकर चंपारण पहुंच कर आंदोलन करने के एलान ने नील कारोबारियों अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। साल 1917 में महात्मा गांधी मोतिहारी में थे। जहां सबसे बड़ी नील मिल के मैनेजर इरविन ने गांधी को बातचीत के लिए बुलाया। इरविन मोतिहारी की सभी नील फ़ैक्ट्रियों के मैनेजरों के नेता थे। इरविन ने अपने सबसे वफादार बत्तख मियां को गांधी जी को खाने में जहर देने के लिए भेजा। बत्तख मियां गांधी जी को जहर देने पहुंच भी गये लेकिन जब वह गांधी जी के सामने पहुंचे तो फफक पड़े और पूरी सच्चाई बता दी। वहीं, दूसरी बार जब गांधी जी चंपारण पहुंचे तो दूसरे अंग्रेज़ मिल मालिक को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा कि गांधी अकेले मिल जाए तो मैं उन्हें गोली मार दूंगा। ये बात गांधी जी तक पहुंची. अगली सुबह. महात्मा उसी के इलाक़े में थे। अपनी लाठी लेकर महात्मा गांधी सुबह सबेर उस अंग्रेज मालिक की नील कोठी पर पहुंच गये। उन्होंने चौकीदार को कहा कि मालिक को बता दो कि गांधी पहुंच गया और अपनी बंदूक लेकर आओ। लेकिन, गांधी के इस साहस के सामने अंग्रेज मिल मालिक की घिग्गी बंध गई।

विंस्टन चर्चिल ने भी की थी बापू के मरने की दुआ
बंगाल में 1943 में भीषण अकाल पड़ा। आलम यह था कि इस अकाल की चपेट में आकर 30 लाख से अधिक लोगां की मौत हो गई। इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री विस्टेन चर्चिल को जब बंगाल में राहत भेजने और वहां हो रही अकाल से मौतों की जानकारी दी गई तो द्वितीय विश्व युद्ध जीतने की कोशिश में लगे चर्चिल ने कहा कि वह तब तक बंगाल अकाल को जानलेवा नहीं मानेंगे जब तक उस अकाल में महात्मा गांधी की मौत न हो जाए।

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