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जिसने दुनिया की छत तिब्‍बत पर चढ़ने की राह दिखाई

आज है महान मानचित्रकार, सर्वेयर और यात्री पंडित नैन सिंह रावत की पुण्‍यतिथि

PEN POINT देहरादून: हाथ में सौ मनकों की कंठी, जेब में कंपस और थर्मामीटर लिए पंडित नैन सिंह रावत ने पूरा तिब्‍बत नाप लिया था। उस बर्फीले बियावान में मौसम ही एक बाधा नहीं था बल्कि तिब्‍बत में विदेशियों के आने की मनाही थी। पकड़े जाने पर मौत की सजा तय थी। लेकिन इस दुरुह सफर में पंडित नैन सिंह रावत के कदम कहीं नहीं डिगे। यही वजह है कि दुनिया को तिब्‍बत से रूबरू कराने का श्रेय उन्‍हीं को जाता है। दरअसल, उन्‍नीसवीं सदी में अंग्रेज भारत का नक्‍शा तैयार कर चुके थे। अब उनकी नजर तिब्‍ब्‍त पर थी जिसे फॉरबिडन लैंड पुकारा जाता था। तब तिब्‍बत में विदेशियों की आवाजा‍ही प्रतिबंधित थी और पहुंचने के रास्‍ते भी बेहद कठिन। ऐसे में अंग्रेजों ने तिब्‍बत जा सकने वालों की खोज शुरू की। आखिरकार, उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के 33 साल के नैन सिंह रावत और उनके चचेरे भाई मानी सिंह के रूप में ये तलाश पूरी हुई। मुन्‍स्‍यारी तहसील के मिलम गांव में जन्‍मे नैन सिंह के पिता आजीविका के लिए भारत तिब्‍बत व्‍यापार से जुड़े थे। जिस कारण नैन सिंह को भी तिब्‍बत में कुछ जगहों पर जाने का मौका मिला। इस दौरान उन्‍होंने तिब्‍बती भाषा भी सीखी, जो बाद में उनके लिए काफी मददगार साबित हुई।

जीटीएस अभियान के सदस्‍य बने

जीटीएस यानी ग्रेट ट्रिगनोमेट्रिक सर्वे के लिए दोनों भाईयों को देहरादून लाया गया। यहां उन्‍हें दो साल की ट्रेनिंग के बाद मिशन पर भेजा गया। तब दुरी नापने के यंत्र काफी बड़े होते थे, ऐसे में न यंत्रों को साथ लेकर जाना असंभव था। क्‍योंकि ऐसे में पकड़े जाने का पूरा डर था। इसीलिए दोनों भाईयों को तापमान नापने के लिए थर्मामीटर और छोटा कंपस दिया गया। 1863 में दोनों भाई सफर पर निकले। नैन सिंह काठमांडू के रास्‍ते तिब्‍बत पहुंचे और वहां बौद्ध भिक्षुओं के साथ घुल मिल गए। जबकि कश्‍मीर के रास्‍ते तिब्‍बत पहुंचने की कोशिश में मानी सिंह असफल रहे।

दुनिया को बताई ल्‍हासा की ऊंचाई

नैन सिंह रावत ने ही सबसे पहले दुनिया को बताया कि ल्‍हासा समुद्रतल से कितनी ऊंचाई पर है। उसके अक्षां'Pen Pointश और देशांतर भी दर्ज किए और ब्रहृमपुत्र नदी के साथ पूरब की तरफ 800 किमी की पैदल यात्रा की। इस यात्रा के जरिए ही लोगों को पता लगा कि स्‍वांग पो और ब्रह्मपुत्र एक ही नदी है। तिब्‍बत के अनसुलझे और अनदेखे रह‍स्‍यों से भी उन्‍होंने बाकी दुनिया को अवगत कराया। सतलज और सिंह नदी के उद्गम के बारे में सबसे पहले बताने का श्रेय भी उन्‍हें ही जाता है।

सोने की खदानों तक पहुंचे

1867-68 में नैन सिंह उत्‍तराखंड के चमोली जिले में माणा पास होते हुए तिब्‍बत के थोक जालुंग पहुंचे। जहां सोने की खदानें मौजूद थी। इसके बाद 1873 में उन्‍होंने शिमला से लेह यारकंद की यात्रा की। उनकी अंतिम और महत्‍वपूर्ण यात्रा 1874-75 में लद्दाख से ल्‍हासा और वहां से असम की थी। इस यात्रा के दौरान वे ऐसी जगहों तक पहुंचे जहां पहले किसी इंसान के कदम नहीं पड़े थे।

अक्षांश दर्पण किताब लिखी

यात्राओं के दौरान नैन सिंह डायरी लिखते थे। जिनमें मानचित्र से संबंधी जानकारियों के साथ ही अलग अलग संस्‍मरण दर्ज करते। पढ़ने लिखने की इसी रूचि के कारण अक्षांश दर्पण नाम की पुस्‍तक भी लिखी। जो आधुनिक विज्ञान की महत्‍वपूर्ण पुस्‍तकों में शामिल है। इसी विद्वता के कारण उन्‍हें पंडित नैन सिंह रावत कहा गया।

अपने कामों से पाए बड़े सम्‍मान

अंग्रेज हुकूमत ने उनके कामों को काफी सराहा। इनाम के रूप में उन्‍हें बरेली के पास तीन गांवों की जागीरदारी दी गई थी। वहीं ब्रिटिश राज ने उन्‍हें कं‍पेनियन और इंडियन ऐम्‍पायर की उपाधि दी। एशिया का मानचित्र तैयार करने में उनका योगदान सर्वाधिक माना जाता है। रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी ने उन्‍हें स्‍वर्ण पदक देकर सममानित किया। भारतीय डाक विभाग ने 4 जून 2027 को उन पर डाक टिकट जारी किया था।

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