इतिहास : जब टिहरी के राजा सुदर्शन शाह से मिले रानी लक्ष्मीबाई के वकील
Pen Point, Dehradun : भारतीय इतिहास में जॉन लैंग का नाम लंबे अरसे तक गुमनाम रहा। मशहूर लेखक रस्किन बॉंड ने आज की दुनिया से उन्हें रूबरू करवाया। रस्किन ने मसूरी के कैमलबैक के पास उनकी कब्र का पता लगाया। फिर उनके लेखों के संग्रह को तलाशा। 1864 में महज सैंतालीस साल की उम्र में जॉन लैंग दुनिया छोड़ गए थे। लेकिन वकील और पत्रकार के रूप में उन्होंने बड़े कामों को अंजाम दिया। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में जन्मे जॉन लैंग हमेशा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रहे। बतौर वकील उन्होंने सभी केस भारतीयों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़े। कलकत्ता कोर्ट में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के वकील भी रहे। बतौर पत्रकार अपने अखबार मफसलाइट में उन्होंने अंग्रेजों के ही खिलाफ लिखा। 2015 में रस्किन बॉंड ने उनके कुछ लेखों का संग्रह निकाला। जिसमें द हिमालया शीर्षक से एक लेख है। मूल रूप से यह मसूरी से अल्मोड़ा तक की यात्रा का वृत्तांत है।
टिहरी में बारात भोज
जॉन लैंग ने 1835 में तीन साथियों और छह सात कुलियों के साथ यह सफर किया था। मसूरी से पैदल चलते हुए सुआखोली, काणाताल और झड़ीपानी में उन्होंने कैंप किया। हफ्ते भर बाद वे टिहरी पहुंचे। यात्रा वृत्तांत में जॉन टिहरी को एक विशाल गांव लिखते हैं। भागीरथी और भिलंगना के संगम पर यह बसावट कुछ समतल सी जगह पर है। टिहरी में नदी के किनारे एक विशाल पेड़ के पास उनका दल रूका। यहां उन्होंने पेड़ की छांव में एक श्रीनगर से पहुंची एक बारात का जिक्र किया है। जिसमें चावल और मक्खन के साथ एक पूरा भुना हुआ बकरा काटकर पत्तलों में बारातियों को परोसा जा रहा है। खाना पकाने और परोसने का काम ब्राह्मण कर रहे हैं। दुल्हा नौजवान है जबकि दुल्हन आठ दस की लड़की है।
राजा से मुलाकात
जॉन के मुताबिक टिहरी राजा सुदर्शन शाह का घर है। जिनके पुरखे गढ़वाल पर राज करते थे, लेकिन गोरखा आक्रमण ने उन्हें राज्य से बेदखल कर दिया। गोरखों की हार के बाद फिर राजा ने वापसी की और अंग्रेजों से अपने राज्य का एक हिस्सा, कुछ तराई का हिस्सा और पूरा देहरादून हासिल किया। लंढौर और मसूरी को अंग्रेजों ने न्यूनतम किराये पर राजा से लिया है। राजा यूरोपियन लोगों के लिए बड़ा सभ्य है। हमारे टिहरी में पहुंचने की सूचना पर राजा की ओर से एक दल भेजा गया। जो अपने साथ उपहार में बहुत सी खाने की चीजें और कुछ बकरियां लेकर पहुंचा। बताया जाता है कि हिज हाईनेस खुद इस हमसे मिलने पहुंच रहे हैं। कुछ देर बाद राजा का आगमन होता है। जॉन लैंग लिखते हैं कि राजा विशाल काबुली घोड़े पर सवार होकर आए। छोटे कद के फुर्तीले राजा ने बड़ी शालीनता से उनका स्वागत किया। लैंग ने राजा को लिटिल जैंटलमैन भी संबाधित किया। करीब एक घंटे की बातचीत में राजा ने उन्हें गोरखा युद्ध के बारे में बताया। जिसका वह प्रत्यक्षदर्शी रहा। राजा को पंजाब पॉलिटिक्स में बड़ी दिलचस्पी थी। खास तौर पर लेना सिंह तारीफ करते हुए उन्हें मानवता, सभ्यता और गर्व का प्रतीक बताया।
पुल के लिए राजा को इंजीनियर की तलाश
लेख में जॉन बताते हैं कि राजा ने भागीरथी पुल पर बना लकड़ी का पुल भी दिखाया। राजा ने उनसे यहां लोहे का झूला पुल बनाए जाने की जरूरत बताई। लेकिन उन्हें इंजीनियर नहीं मिल रहा है। जबकि वो अंग्रेज सरकार को लिख चुके हैं कि इस पुल के लिए वे हर खर्च वहन करने को तैयार हैं। अभी इस पुल से केवल इंसान ही पार जा सकते हैं, जबकि मवेशियों को नदी के पानी में उतारकर ही दूसरी ओर पहुंचाया जाता है। यह पूछने पर कि उन्हें लोहे के झूला पुल का आईडिया कहां से आया, तो राजा ने बताया कि तस्वीरों की किताब से, इन पहाड़ों में शिकार के लिए पहुंचे एक जेंटलमैन ने उन्हें यह किताब दी थी। दो दिन टिहरी में रूकने के बाद जॉन लैंग और उनका दल आगे श्रीनगर की ओर बढ़ गया।