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जिस लंका को राम ने जीता था वहां कैसे मनाई जाती है दिवाली?

Pen Point, Dehradun : माना जाता है कि लंका विजय के बाद जब भगवान राम लक्ष्‍मण ओर सीता वापस अयोध्‍या पहुंचे तो उनके स्‍वागत में दीपावली का पर्व मनाया गया। समय के साथ यह पर्व पूरे भारतवर्ष में मनाया जाने लगा। आज अयोध्‍या में भव्‍य राम मंदिर लगभग बन चुका है और वहां भव्‍य दीपावली मनाई जा रही है। लेकिन श्रीराम ने जिस लंका को जीता था वहां भी दीपावली का पर्व मनाया जाता है। खास बात ये है कि भारत में समय के साथ दीपावली महंगा त्‍यौहार हो गया है। लेकिन लंका में सादगी और श्रद्धा के साथ ये पर्व मनाया जाता है।

आज भी श्रीलंका में रामायण युग से जुड़ी कई जगहें है। इस देश में बड़ी संख्या में हिन्दू रहते हैं। यहां लोग दिवाली को लैम क्रियॉन्ग  के नाम से मनाते हैं। जिसमें लोग पटाखे फोड़ने के बजाय, केले के पत्तों से बने दीपक जलाकर अपना पर्व मनाते हैं। यहां दिवाली का तरीका थोड़ा अलग है, लोग लैंपों में मोमबत्तियां, एक सिक्का और धूप रखते हैं और फिर इसे नदी में प्रवाहित कर देते हैं है। थाई कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने की पूर्णिमा के दिन यहां दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।

श्रीलंका में इस त्‍यौहार पर सार्वजलिक अवकाश रहता है और प्रमुख रूप से तमिल समुदाय इसे मनाता आया है। नए कपड़े, उपहार के आदान प्रदान के साथ ही लोग हिंदू मंदिर जाते हैं। हिंदुओं द्वारा आशीर्वाद के लिए व घर से सभी बुराइयों को सदा के लिए दूर करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को तेल के दिए जलाकर आमंत्रित किया जाता है। श्रीलंका में जश्न के अलावा खेल, आतिशबाजी, गायन और नृत्य, व भोज आदि का अयोजन किया जाता है।

श्रीलंका के अलावा थाईलेंड में भी दीपावली को लैम‍ क्रियांग के रूप में ही मनाया जाता है। वहां भी यह पर्व श्रीलंका में मनाए जाने वाले त्‍यौहार से मिलता जुलता ही है। इसके अलावा एशिया के अधिकांश देशों का रामायण से संबंध होने के कारण दीपावली पर्व मनाने की परंपरा रही है। दुनिया में जहां भी भारतीय लोगों की मौजूदगी है वहां हर जगह दीपावली का पर्व मनाया जाता है। लिहाजा कहा जा सकता है कि यह पर्व आज पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है।

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