सेब की बागवानी को कितना फायदा पहुंचाएगी 800 करोड़ की योजना ?
Pen Point, देहरादून : कश्मीर और हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में सेब बागवानी की अपार संभावनाएं हैं। इसी को देखते हुए राज्य सरकार ने विभिन्न जिलों में एक विस्तृत शोध रिपोर्ट के जरिये विशेष योजना बनाकर भारत सरकार को भेजी, जिसे 8 साल के लिए स्वीकृति मिल गयी है। योजना के तहत राज्य में सेब के बगीचों का विस्तार किया जाएगा। जिसके लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। गौरतलब है कि उत्तराखंड में सेब की बेहतर खेती के बावजूद सेब की खेती और इससे जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देने की दिशा में इसे अहम कदम माना जा रहा है।
808 करोड़ की इस योजना में सेब बागवानी के विस्तार के लिए किसानों को 60 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा, जिसमें नए सेब के बगीचे लगाए जाने हैं। इसमें किसान को 40 फीसदी की भागीदारी खर्च करनी होगी। मौजूदा वक्त में उत्तराखंड में ढाई मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन हो रहा है। इसे प्रदेश में करीब 25 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन तक बढ़ाने का अनुमान लगाया गया है।उत्तराखंड में अभी सेब का कुल कारोबार 200 करोड़ रूपये सालाना का है। इसे अगले आठ सालों में 2000 करोड़ रूपये तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। हिमाचल में अभी सेब के बगीचों में कोई अनुदान नहीं है। वहीं जम्मू-कश्मीर में 50 प्रतिशत सेब बगीचों के लिए अनुदान दिया जा रहा है।
उत्तराखंड में इस बीच कुछ सालों में बागवानी को लेकर लोगों में संजीदगी देखने को मिली है। विभिन्न पहाड़ी जिलों में सेब बगीचों में किसानों ने दिलचस्पी दिखा कर अच्छा काम शुरू किया है। जिसका उन्हें फायदा मिल रहा है। इसी को देखते हुए राज्य सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाने का निर्णय लिया और एक विस्तृत शोध रिपोर्ट तैयार कर खास योजना भारत सरकार को भेजी, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इससे किसानों में काफी उत्साह देखा जा रहा है। अगर यह योजना अपने मकसद में कामयाब हो जाती है, तो जैसी उम्मीद जताई जा रही है, वैसे में प्रदेश में विकास और स्वरोजगार की कई और संभावनाओं के द्वार खोलने में यह मददगार साबित हो सकती है।
हालांकि सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि राज्य बनने के इतने सालों तक यह संभावनाशील क्षेत्र उपेक्षित रहा है। राज्य में कई जगहों पर उच्च गुणवत्ता के साथ ही सेब की काफी पैदावार होती रही है। लेकिन उत्तराखंड के सेब को अभी बाजार में पहचान नहीं मिल सकी है। सरकार के तमाम वादों के बाद भी उत्तराखंड का सेब हिमांचल ब्रांड के नाम से बाजार में पहुंच रहा है। हर्षिल के सेब उत्पादक माधव रावत के मुताबिक सेब काश्तकारों को दवाओं और पैकेजिंग से लेकर ट्रांसपोर्टेशन जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। हर सीजन में बड़ी तादाद में सेब ट्रांसपोर्टेशन की कमी के कारण खराब हो जाता है। उद्यान विभाग के रवैये को लेकर किसान हमेशा ही शिकायत करते रहे हैं।