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डेढ़ सौ साल पहले पौड़ी के गडोली गांव में उगती थी बेहतरीन चाय

Pen Point, Dehradun : पौड़ी शहर से कुछ ही दूरी पर है गडोली गांव। इस गांव में इसाई समुदाय के चौफीन लोग रहते हैं। चौफीन का चाय से क्या रिश्ता है यह बात बाद में होगी, पहले बात करते हैं गडोली की चाय पर। दरअसल, अंग्रेजों को गढ़वाल और कुमाउं के पहाड़ चाय की खेती के लिये एकदम मुफीद नजर आए। लिहाजा ब्रिटिश राज में सन् 1835 में अल्मोड़ा से इसकी शुरूआत की गई। लेकिन शुरूआत में चाय की खेती के की खास जानकारी भारत में उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में अंग्रेजों ने चीन से कुछ विशेषज्ञ बुलाए। जिससे चाय उत्पादन में बढ़ोत्तरी के बाद ही गुणवत्ता भी बेहतर हो गई। इससे उत्साहित ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन हैडलस्टन ने पौड़ी के पास बगीचे तैयार किये। जिसमें आसी वांग नाम के एक चीनी विशेषज्ञ की मदद ली गई। गडोली गांव में चाय की फैक्ट्री खुली और इससे बेहतरीन गुणवत्ता वाली चाय का उत्पादन होने लगा। ये चाय जब इंग्लैंड पहुंची तो इसे काफी तारीफ मिली। उस समय गडोली की चाय सात रूपए किलो तक बिकती थी। जो उस वक्त के हिसाब से काफी उंची कीमत थी। चाय फैक्ट्री में गडोली गांव के लोग काम करते थे और इसका मालिकाना हक अंग्रेजों के पास ही था। इसके अलावा गढ़वाल में ग्वालदम में एक और बड़ा चाय बागान आकार ले चुका था। एचजी वाल्टन के ब्रिटिश गढ़वाल गजेटियर के मुताबिक सन् 1897 में गढ़वाल में 25.7 क्विंटल चाय का उत्पादन किया। लेकिन 1907 में यह घटकर 19.4 क्विंटल रह गईं।

इसी दौरान कुमाउं में भी बड़े चाय बागान विकसित हुए। लेकिन असम और दार्जिलिंग की तरह गढ़वाल और कुमाउं में चाय की खेती परवान नहीं चढ़ सकी। जबकि गुणवत्ता में यहां की चाय देश के अन्य हिस्सों से बेहतर मानी जाती रही। कुमाउं में कौसानी समेत कुछ अन्य टी स्टेट आजादी के बाद भी बने रहे और अब यहां चाय की खेती स्थिति और बेहतर हुई है। लेकिन गढ़वाल में लोगों ने चाय की खेती से मुंह मोड़े रखा। लिहाजा गढ़वाल में आज चाय की व्यावसायिक खेती ना के बराबर है।

गडोली की चाय और चौफीन
चाय की खेती में मदद करने गढ़वाल आने वाले पहले चीनी चाय विशेषज्ञ एएसआई वोंग थे। असी वोंग जन्म से बौद्ध थे और उन्होंने गढ़वाल में एक हिंदू महिला से शादी की थी। उनके बेटों के बपतिस्मा लेने के बाद उनके परिवार को चौफिन का उपनाम मिला। उनके पोते हैरी एनसाइन चौफिन ने श्द चौफिन्स ऑफ गढ़वाल शीर्षक से एक पारिवारिक इतिहास लिखा है, जिसे उनकी बेटी डोरेन चौफिन चौधरी ने प्रकाशित किया है। लेखक देवेंद्र कुमार बुड़ाकोटी के एक लेख में बताया गया है कि अप्रैल 2013 में हैरी एनसाइन चौफिन द्वारा लगभग पचास साल पहले लिखी गई एक पांडुलिपि, द चौफिन्स ऑफ गढ़वाल का प्रकाशन हुआ। यह पुस्तक चौफिन परिवार का एक पारिवारिक संग्रह और संस्मरण है, जिसका पहला सदस्य 1857 के विद्रोह के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक चाय विशेषज्ञ के रूप में गढ़वाल क्षेत्र में चाय बागान लगाने के लिए आया था। जाहिर है कि आज चौफीन लोग विभिन्न क्षेत्रों में देश को सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन यह किताब न सिर्फ उनके बल्कि उस दौर के पौड़ी और उसके आस पास के इतिहास को समेटे हुए है।

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