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जयंती विशेष : देश के परमाणु उर्जा जनक होमी जहांगीर भाभा और देहरादून के पेड़

Pen Point, Dehradun : भारतीय परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक होमी जहांगीर भाबा की आज जयंती है। 30 अक्‍टूबर 1909 में मुंबई के संपन्‍न पारसी परिवार में उनका जन्‍म हुआ था। शुरू से ही मेधावी रहे भाबा के पिता उन्‍हें इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन भाबा का मन फिजिक्‍स में रमता था, लिहाजा उन्‍होंने भौतिकी को ही अपनाया और दुनिया के नामी भौतिक विज्ञानी कहलाए। एक वैज्ञानिक होने के साथ ही वे एक बेहतरीन कलाकार भी थे। पेंटिंग, संगीत और थियेटर में उनकी खास रूचि थी। कहा जा सकता है कि भाभा ना होते तो भारत का परमाणु कार्यक्रम बहुत देर से शुरू होता। उनकी मेधा और जुनून देश को परमाणु उर्जा के मामले में आत्‍मनिर्भर बनाने के काम आया।

यही वजह थी कि पंडित जवाहर लाल नेहरू से भाभा की काफी नजदीकियां थी। कहा जाता है कि वे उन चंद लोगों में शामिल थे जो नेहरू को भाई कहकर संबोधित करते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब वे पहली बार देहरादून आए तो उनके साथ भारत के जाने माने वैज्ञानिकों का एक दल भी था। जिसमें प्रोफेसर एजीके मेनन और होमी जहांगीर भाभा भी शामिल थे। ये सभी लोग देहरादून के गढ़ी कैंट स्थित सर्किट हाउस में रूके थे। जो कि अब उत्‍तराखंड का राजभवन है। इसी प्रवास के दौरान भाभा की दूरदर्शी सोच को लेकर प्रोफेसर मेनन के हवाले से एक किस्‍सा प्रकाशित हुआ था। जिसके मुताबिक मेनन बताते हैं- “एक बार मैं उनके साथ देहरादून गया था उस समय पंडित नेहरू वहाँ रुके हुए थे। “एक बार हम सर्किट हाउस के भवन से निकल कर उसके ड्राइव वे पर चलने लगे. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप इस ड्राइव वे के दोनों तरफ़ लगे पेड़ों को पहचानते हैं. मैंने कहा इनका नाम स्टरफ़ूलिया अमाटा है”

“भाभा बोले मैं इसी तरह के पेड़ ट्रॉम्बे के अपने सेंट्रल एवेन्यू में लगाने वाला हूँ. मैंने कहा होमी आपको पता है इन पेड़ों को बड़ा होने में कितना समय लगता है, उन्होंने पूछा कितना? मैंने कहा कम से कम सौ साल। उन्होंने कहा इससे क्या मतलब, हम नहीं रहेंगे, तुम नहीं रहोगे लेकिन वृक्ष तो रहेंगे और आने वाले लोग इन्हें देखेंगे जैसे हम इस सर्किट हाउस में इन पेड़ों को देख रहे हैं, मुझे ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि वो आगे के बारे में सोच रहे थे न कि अपने लिए”

उनकी इसी दूरदर्शी सोच ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां दिलाई। इस महान भारतीय वैज्ञानिक के कुछ महत्‍वपूर्ण कामों पर एक नजर-

-होमी जहांगीर भाभा ने 16 वर्ष की उम्र में ही सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उसके बाद गोनविले और कैयस कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने के लिए कैम्ब्रिज गए।

-विदेश से शिक्षा पूरी कर वापस भारत लौटे और 1945 में, उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की। इसी इंस्‍टीट्यूट में भारत के परमाणु कार्यक्रम के लिये शोध की शुरूआत हुई थी।

-1954 में, भाभा ने मुंबई के निकट ट्रॉम्‍बे में एक परमाणु अनुसंधान केंद्र नींव रखी। जिसे बाद में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) नाम दिया गया। भाभा परमाणु ऊर्जा के प्रबल समर्थक थे। 1955 में उन्‍होने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर पहला संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आयोजित किया।

-24 जनवरी, 1966 को जिनेवा के रास्ते में एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। अपनी मृत्यु तक भाभा भारत के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख थे।

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