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जयंती विशेष : सावित्रीबाई का वो आखिरी ख़त जिसे पढ़कर कलेजा मुंह को आता है !

Pen Point, Dehradun : 3 जनवरी 1931 को एक मराठी सवर्ण परिवार में जन्‍मी सावित्री की नौ साल की उम्र में शादी कर दी गई थी। लेकिन पढ़ाई और समाज के प्रति जागरुकता को देखते हुए पति ने उन्‍हें स्‍कूली शिक्षा लेने की इजाजत दे दी। आज से 173 साल पहले सावित्री जब स्‍कूल जाती थी तो लोग उन पर पत्‍थर और गंदगी फेंकते थे। लेकिन वह अडिग रही और 1948 में स्‍कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्‍होंने 1949 में पुणे के भिड़ेवाड़ी इलाके में भारत का पहला बालिका स्‍कूल खोला। इस तरह वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनी। दलित जातियों की महिलाओं को शिक्षित करने में उन्‍हें काफी संघर्ष करना पड़ा। शिक्षा और समाज के प्रति अपनी भावनाओं को उन्‍होंने कविताओं और भाषणों के जरिए भी जाहिर किया। वहीं अपने पति ज्‍योतिराव फुले को लिेखे वो तीन अनूठे प्रेम पत्र आज ऐतिहासिक दस्‍तावेज बन गए हैं। उनमें से हम यहां वह आखिरी खत यहां साझा कर रहे हैं, जो मूल रूप से मराठी में लिखा गया था। इस खत में उन्‍होंने महाराष्‍ट्र में अकाल का जिक्र किया है, जिसे पढ़कर किसी का भी दिल बैठ सकता है।   

20 अप्रैल, 1877
ओटुर, जुननर
सच्चाई के अवतार, मेरे स्वामी ज्योतिबा,
सावित्री आपको प्रणाम करती है!

वर्ष 1876 चला गया है, लेकिन अकाल नहीं है – यह सबसे अधिक भयानक रूपों में रहता है. लोग मर रहे हैं, जानवर भी मरकर ज़मीन पर गिर रहे हैं. भोजन की गंभीर कमी है जानवरों के लिए कोई चारा नहीं. लोग अपने गांवों को छोड़ने के लिए मजबूर हैं. कुछ लोग अपने बच्चों, उनकी युवा लड़कियों को बेच रहे हैं और गांवों को छोड़ रहे हैं. नदियां, नाले और जलाशय पूरी तरह से सूख गए हैं – पीने के लिए पानी नहीं. पेड़ मर रहे हैं – पेड़ों पर कोई पत्तियां नहीं. बंजर भूमि हर जगह फटी है सूरज कर्कश है मनो फफोले पड़ जायेंगे, भोजन और पानी के लिए रोते हुए लोग मरकर जमीन पर गिर रहे हैं. कुछ लोग जहरीला फल खा रहे हैं, और अपनी प्यास बुझाने के लिए अपने मूत्र को पी रहे हैं. वे भोजन और पीने के लिए रोते हैं, और फिर मर जाते हैं.

हमारे सत्यशोधक स्वयंसेवकों ने लोगों को जरूरत के मुताबिक भोजन और अन्य जान बचाने की सामग्री देने के लिए समितियों का गठन किया है. उन्होंने राहत दस्तों का भी गठन किया है.

भाई कोंडज और उनकी पत्नी उमाबाई मेरी अच्छी देखभाल कर रहे हैं ओटुर शास्त्री, गणपति सखारन, डूंबेर पाटिल, और अन्य आपसे मिलने की योजना बना रहे हैं. यह बेहतर होगा यदि आप सातारा से ओतूर आते और फिर अहमदनगर जाते.

आपको आर. बी. कृष्णजी पंत और लक्ष्मण शास्त्री को याद होंगे. उन्होंने प्रभावित क्षेत्र में मेरे साथ कूच की और पीड़ितों को कुछ मौद्रिक सहायता प्रदान की.

साहूकार स्थिति का शोषण कर रहे हैं. इस अकाल के परिणामस्वरूप कुछ बुरी बातें हो रही हैं दंगे शुरू हो रहे हैं. कलेक्टर ने इस बारे में सुना और स्थिति पर काबू करने के लिए आए. उन्होंने अंग्रेज़ पुलिस अधिकारियों को तैनात किया, और स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश की. पचास सत्यशोधकों को पकड़ा गया है. कलेक्टर ने मुझे बात करने के लिए आमंत्रित किया. मैंने कलेक्टर से पूछा कि अच्छे स्वयंसेवकों को झूठे आरोपों के साथ क्यों पकड़ा गया है और बिना किसी कारण के गिरफ्तार किया गया है. मैंने उनसे तुरंत उन्हें रिहा करने के लिए कहा. कलेक्टर काफी सभ्य और निष्पक्ष थे. वे अंग्रेज़ सैनिकों पर नाराज़ हुए और कहा, “क्या पाटिल किसानों ने लूटमार की? उन्हें फ़ौरन आज़ाद करो” कलेक्टर लोगों की की तकलीफ से आहत थे. उन्होंने तुरन्त चार बैल का गाड़ियों पर खाना (जोवार) भिजवाया.

आपने गरीबों और जरूरतमंदों के लिए उदार और कल्याणकारी कार्य शुरू किया है, मैं भी जिम्मेदारी से काम करना चाहती हूँ. मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि मैं हमेशा आपकी मदद करती रहना चाहती हूँ इस ईश्वरीय कार्य में जो अधिक से अधिक लोगों की सहायता करे.

मैं और अधिक लिखना नहीं चाहती,

आपकी अपनी,
सावित्री

(इस पत्र को अ फॉरगॉटन लिबेरेटर, द लाइफ एंड स्ट्रगल ऑफ़ सावित्राबाई फुले, ब्रज रंजन मणि, पामेला सरदार द्वारा संपादित की गयी पुस्तक से साभार लिया गया है)

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