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उत्तराखंड में जमीन खरीदने पर ‘अस्थाई’ रोक, आखिरी हिमालयी राज्य में भी जमीन खरीदना मुश्किल

– 2018 में त्रिवेंद्र सरकार के फैसले के बाद उत्तराखंड इकलौता हिमालयी राज्य था जहां अन्य राज्यों के लोग खरीद सकते थे जमीन, अब पुष्कर सिंह धामी ने लगाई स्थाई रोक
PEN POINT, DEHRADUN : 2024 के पहले ही दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में दूसरे राज्य के लोगांे के कृषि भूमि खरीदने पर फिलहाल रोक लगाने की घोषणा की। मुख्यमंत्री ने साल के पहले दिन कहा कि भू-कानून की प्रारूप समिति अभी अपना काम कर रही, इसलिए फिलहाल यह रोक लगाई गई है। पहली जनवरी को देहरादून में भू-कानून से जुड़ी अहम बैठक में उन्होंने भू-कानून प्रारूप समिति की रिपोर्ट के टेबल न होने तक जिलाधिकारियों को जनपदों में बाहरी राज्यों के लोगांे को कृषि भूमि खरीदने की अनुमति न देने के निर्देश दिए। राज्य में उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा-154 में वर्ष 2004 में किए गए संशोधन के अनुसार, ऐसे व्यक्ति जो उत्तराखंड में 12 सितंबर 2003 से पूर्व अचल संपत्ति के धारक नहीं हैं, उन्हें कृषि व औद्यानिकी के मकसद से भूमि खरीदने के लिए डीएम से अनुमति लेने का प्रावधान है। लिहाजा, जिलाधिकारियों को फिलहाल बाहरी राज्यों के लोगों को जमीन खरीदने की अनुमति न देने को कहा गया है।
उत्तराखंड में बीते दो सालों से ही सशक्त भू-कानून बनाने की मांग की जा रही है। त्रिवेंद्र सरकार में भू-कानून में हुए बदलावों के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर जमीनों की खरीद फरोख्त होने के आरोप लगते रहे हैं। भू-कानून को मजबूत बनाकर राज्य में कृषि भूमि को बिकने से बचाने के लिए समय-समय पर कई संगठन सड़कों पर भी उतर चुके हैं। ऐसे में राज्य सरकार ने 2022 में भू-कानून में संशोधन के लिए समिति का गठन किया था। दिसंबर के अंत में जब मूल निवास और भू-कानून को लेकर बड़ी संख्या में लोग राजधानी में जमा हुए तो उसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार जल्द ही भू-कानून संशोधन पर बड़ा फैसला ले सकती है। 2024 के पहले ही मुख्यमंत्री ने भू-कानून संशोधन प्रारूप समिति की बैठक में समिति की रिपोर्ट टेबल न होने तक बाहरी राज्यों के लोगों के राज्य में कृषि भूमि खरीद पर रोक लगा दी।
अब तक हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड ही इकलौता राज्य था जहां कोई भी भूमि की खरीद फरोख्त कर सकता था। सबसे पहले 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने भू-कानून में संशोधन कर दूसरे राज्य के लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों में 500 वर्गमीटर तक जमीन खरीदने की छूट दी थी। लेकिन, 2007 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर जब भाजपा ने सरकार बनाई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूडी ने नारायण दत्त तिवारी द्वारा भू-कानून में किए गए संशोधन में संशोधन कर इस सीमा को घटाकर 250 वर्गमीटर तक सीमित कर दिया था। लेकिन, 2018 में उद्यमियों को राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए आकर्षित करने के उद्देश्य से तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू-कानून में एक और संशोधन कर किया। 2018 में भाजपा सरकार ने भू कानून के नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया तो मैदानी इलाकों में सीलिंग को भी खत्म कर भूमि विक्रय के सारे रास्ते खोल दिए। इसके बाद से राज्य में लगातार सख्त भू-कानून लागू करने की मांग होने लगी। राज्य में पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर ही भू-कानून लागू करने की मांग की जाने लगी। इसके बाद राज्य सरकार ने भी इसके लिए समिति का गठन किया।
हालांकि, 1 जनवरी को बाहरी राज्यों के निवासियों के लिए राज्य में कृषि भूमि खरीदने पर भले ही रोक अस्थाई हो लेकिन माना जा रहा है कि भू-कानून में संशोधन कर राज्य में जमीन की खरीद फरोख्त के नियमों को सख्त किए जाने की संभावनाएं बताई जा रही है, 1 जनवरी को मुख्यमंत्री के फैसले से इसकी तस्दीक भी होती है कि आने वाले दिनों में भू-कानून में संशोधन कर जमीनों की खरीद बिक्री के लिए कठोर नियम बनाए जा सकते हैं।
अब तक हिमालयी राज्यों में सिर्फ उत्तराखंड ही इकलौता राज्य था जहां जमीन खरीदने पर पाबंदी नहीं थी और कोई भी कितनी भी मात्रा में यहां भूमि खरीद सकता था। लेकिन, मुख्यमंत्री के फैसले के बाद अब उत्तराखंड भी उन राज्यों में शामिल हो गया है जहां जमीन खरीदना बाहरी राज्य के लोगांे के लिए प्रतिबंधित है या फिर मुश्किल है।
उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश जिसकी तर्ज पर राज्य में भू-कानून लागू करने की मांग की जाती है उस हिमाचल प्रदेश में बाहरी राज्य के लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों में संपत्ति खरीदने की अनुमति नहीं है। साल 1972 के भूमि कानून की धारा-118 के प्रभाव में आने के बाद यह प्रतिबंध लागू हुआ। हिमाचल प्रदेश किरायेदारी व भूमि सुधार अधिनियम की धारा-118 के मुताबिक, कोई भी गैर-कृषक या बाहरी राज्य का निवासी हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि नहीं खरीद सकता है. यही नहीं, स्थानीय लोग बाहरी राज्य के लोगों को वसीयत के जरिये भी जमीन का हस्तांतरण नहीं कर सकते हैं। हालांकि, धारा-118 में ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो किसी बाहरी राज्य के व्यक्ति को आधिकारिक सहमति के अनुरोध के बाद हिमाचल प्रदेश में भूमि और संपत्ति दोनों खरीदने की मंजूरी देती हैं।यहां भूमि शब्द का मतलब कृषि योग्य कब्जे वाली या पट्टे पर दी गई जमीन से है। बाहरी राज्य के व्यक्ति को भूमि खरीद के लिए एक आवेदन जमा करना होगा। इसमें उसे कारण बताना होगा कि वह भूमि किस उद्देश्य के लिए खरीद रहा है। राज्य सरकार आवेदक की ओर से उपलब्ध कराई गई सभी जानकारियों की जांच व पुष्टि करने के बाद फैसला लेती है।

इन राज्यों में भी नहीं खरीद सकते बाहरी लोग जमीन …
सिक्किम
सिक्किम में सिर्फ सिक्किम के लोग ही जमीन की खरीद बिक्री कर सकते हैं। संविधान का अनुच्छेद-371 एफ सिक्किम को विशेषाधिकार उपलब्ध कराता है। ये अनुच्छेद बाहरी लोगों को सिक्किम में कृषि भूमि या संपत्ति की बिक्री और खरीद पर पाबंदी लगाता है। सिक्किम के जनजातीय क्षेत्रों में केवल आदिवासी ही कृषि भूमि और संपत्ति खरीद सकते हैं। सिक्किम में केवल स्थानीय लोगों को अचल संपत्ति खरीदने की छूट मिलती है। वहीं, आदिवासी क्षेत्रों में सिक्किम के भी केवल आदिवासी ही अचल संपत्ति खरीद सकते हैं। हालांकि, बाहरी लोग औद्योगिक भवन निर्माण के लिए कृषि भूमि खरीद सकते हैं।

अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में भी बाहरी राज्य के लोगों को जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है। लेकिन, राज्य में सरकारी अनुमति के बाद कृषि भूमि हस्तांतरित की जा सकती है। अरुणाचल प्रदेश को 1963 में राज्य बनने के साथ ही विशेषाधिकार के तौर पर अनुच्छेद-371 ए मिला था। इसके मुताबिक, राज्य में बाहरी लोगों को जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है।
पूर्वोत्तर के मिजोरम, मेघालय, मणिपुर में भी भूमि खरीदने के लिए बेहद कड़े नियम है जो दूसरे राज्यों के लोगांे को इन राज्यों में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देते। यहां तक कि मणिपुर जिस हिंसा में जल रहा है उसके पीछे भी मैतई समुदाय को कुकी समुदाय के क्षेत्र में बसने और जमीन खरीदने की अनुमति को लेकर कोर्ट का फैसला है।

 

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